पांच राज्यों में चुनावी संग्राम चरम पर है। एक और जहां राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी चरण शुरू हो चुके हैं तो वहीं दूसरी ओर मिजोरम और तेलंगाना में चुनावी रंग चढ़ने की तैयारियां हो रही हैं। इसी चुनावी समर का शंखनाद करते हुए बीजेपी ने मिजोरम के सभी 40 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है। मिजोरम में इन 40 सीटों के लिए कुल 201 उम्मीदवार मैदान में हैं। यहां 29 नवंबर को एक चरण में वोटिंग होगी जबकि मतगणना 11 दिसंबर को होगी।
पूर्वोत्तर के 7 राज्यों में से मिजोरम इकलौता ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस की सरकार है। यहां कांग्रेस पिछले 10 सालों से सत्ता में है। ऐसे में भाजपा की अब अगली रणनीति एक के बाद एक राज्यों शिकस्त खाती कांग्रेस को मिजोरम की सत्ता से भी बेदखल करके कांग्रेस मुक्त उत्तर-पूर्व बनाने की है। ऐसे में बीजेपी का उद्देश्य होगा कि वहां वो किंग न सही तो किंग मेकर जरूर बनें। यही वजह है कि भाजपा मिजोरम में मुख्य विपक्षी दल एमएनएफ से गठबंधन करने की योजना बना रही है।
बता दें कि कांग्रेस के कुछ नेता पहले से ही पार्टी छोड़कर बीजेपी और एमएमएफ का दामन थाम चुके हैं। पूर्व मंत्री डॉ. बी डी चकमा ने हाल ही में कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। जिसके कारण एक ओर जहां कांग्रेस का हौसला बढ़ा है तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी का हौसला सातवें आसमान पर है। जबकि विधानसभा अध्यक्ष हाईपे ने भी टिकट न मिलने से रुष्ट होकर बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
बता दें कि इससे पहले भी बीजेपी ने त्रिपुरा में जबरदस्त अप्रत्याशित ढंग से सत्ता में वापसी की थी और लेफ्ट के किले को उखाड़ फेंका था जबकि कर्नाटक में भी तेजी से उभरकर बहुमत से थोड़ा सा चूक गई। इस चुनाव में एक ओर कांग्रेस जहां राफेल, नोटबंदी जैसे घिसे पिटे मुद्दों के दम पर सत्ता की लड़ाई लड़ने की तैयारी में है। जबकि दूसरी तरफ बीजेपी के पास सत्ता विरोधी लहर और विकास के तमाम मुद्दे हैं। राज्य में ढांचागत विकास की कमी और शराबबंदी के फैसले को वापसे लेने से लोगों के मन में कांग्रेस के प्रति नाराजगी भी कांग्रेस को ले डूबने वाली है। बता दें कि राज्य में शराब के कारण पिछले दिनों कई लोगों की मौत हुई है इसके अलावा राज्य में सड़कों की दशा भी बहुत खराब है।
इसके अलावा यहां पार्टी को चुनावों में योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक बनाने का फायदा भी मिल सकता है। पिछले चुनावों में उनके हिंदू चेहरे को खूब पसंद किया गया था। इस बार भाजपा ने एक बार फिर से उन्हें मैदान में उतारा है। इसके अलावा भारतीय राजनीति का चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह समेत खुद प्रधानमंत्री इन चुनावों के दौरान माहौल की देखरेख कर रहे है। प्रधानमंत्री और अमित शाह की रैलियां भी कांग्रेस को एक और राज्य में सत्ता से दूर करने में सहायक होंगी। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा भी चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगे। स्पष्ट रूप से जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी राज्य में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए काम कर रही है उसे देखकर तो यही लगता है कि वो यहां किंग नहीं भी बन पाई तो किंग मेकर तो जरुर बनने में कामयाब होगी।