मध्य प्रदेश में 3 दिनों में होंगे चुनाव, बीजेपी की ये रणनीति बदलेगी सियासी समीकरण

मध्य प्रदेश बीजेपी

मध्य प्रदेश में मतदान होने में बस 3 दिन ही बचे हैं। ऐसे में सूबे में उठा-पटक तेज हो गयी और सियासी पारा बढ़ता ही जा रहा है। एक के बाद एक सियासी पटखनी खाने वाले विपक्षी दलों के पास चुनाव में उतरने और गिरते पड़ते खुद को चुनावी सीजन में जनता के बीच जिंदा रखने का बस एक ही रास्ता बचा था, ‘गठबंधन’। हालांकि जनता इसे ‘ठगबंधन’ नाम दे चुकी है लेकिन, अब कथित गठबंधन के ये रास्ते भी ब्लॉक होते नजर आ रहे हैं। इसकी झलक अभी से दिखनी शुरू हो गयी है।

दरअसल,मध्य प्रदेश में बसे पहले बसपा ने कांग्रसे को ‘झटका’  दिया था फिर सपा ने भी कांग्रेस को ‘झटका’  दिया लेकिन विपक्षी दलों का आपस में ‘झटकों’ का ये दौर बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा है। ‘झटकों’ के इसी क्रम में अब मध्य प्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने सपा को ‘झटका’  देते हुए ‘बाय-बाय’ कह दिया है। सपा के साथ गठबंधन से अलग होते हुए पार्टी नेता संजय यादव ने साफ तौर पर कहा है कि सपा ने गठबंधन का धर्म नहीं निभाया। जो ये साफ दर्शाता है कि सपा, बसपा और कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां सत्तासुख भोगने मात्र के लिए गठबंधन करती हैं। देश की जनता के प्रति ये अपना कोई भी उत्तरदायित्व नहीं समझती हैं।    

इससे पहले मध्‍य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अगले 3 दिनों की रणनीति बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देर रात भाजपा कार्यालय पहुंचे। इस दौरान पार्टी के राजनैतिक विशेषज्ञों ने अगले तीन दिनों का समीकरण तैयार किया। सपा- गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी गोंडवाना के उम्मीदवारों को अपनी ओर करने की रणनीति बना रही है। सूत्रों की मानें तो गोंडवाना का भी बीजेपी के प्रति सम्मान और रुझान बढ़ता दिख रहा है।

दूसरी तरफ बीजेपी प्रदेश के असंतुष्ट, बागी और निराश नेताओं को भी अपने खेमे में लाने में लग गई है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक इन 3 दिनों में सारे नाराज लोगों को सक्रिय करने का लक्ष्य रखा गया है। भाजपा की तैयारी है कि गोंडवाना नेताओं की उन सीटों पर विशेष मदद ली जाए जहां भाजपा प्रत्याशी थोड़ी कमजोरी स्थिति में है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में जिन राज्यों की सीमाएं लगती हैं जैसे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों से पार्टी ने पड़ोसी राज्यों के नेताओं कार्यकर्ताओं को बुलाया है।

इसका मकसद सीमावर्ती इलाकों में जातिगत समीकरणों को साधना है। सीमावर्ती इलाकों में दोनों राज्यों के बीच रिश्ते नाते से लेकर तमाम सामाजिक व्यापारिक संबंध वाले लोगों को भाजपा के पक्ष में लगाया जा रहा है।

बता दें कि इससे पहले भी विपक्षी दलों समेत पार्टियों में भी भीतरी मतभेद, मनमुटाव, सीटों के बटवारे को लेकर खींचातानी, असंतोष और नाराजगी राजस्थान में भी सामने आ चुकी हैं। जिसके कारण वहां भी बीजेपी की लहर चल पड़ी है।

ऐसे में मध्य प्रदेश में एक बार फिर से बीजेपी को जबरदस्त पेनाल्टी शूट आउट करने का मौका मिल गया है। इसके अलावा एक के बाद एक विपक्षी पार्टियों के चुनाव से पहले ढेर होने और बीजेपी के मजबूत हुआ है जो बताता है कि जनता का भी बीजेपी के प्रति विश्वास अटल हुआ है। खबरों की मानें तो जनता का भी कहना है कि बीजेपी ही प्रदेश और देश में जनता के प्रति प्रतिबद्ध और एक स्थिर सरकार बना पाएगी। पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं और मतदातोओं का तो कहना है कि बीजेपी को विधानसभा चुनाव की चिंता छोड़कर अब 2019 के आम चुनाव की तैयारी में लग जाना चाहिए।  

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