एक तरफ देश 26/11 के पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों द्वारा दिए गए कभी भी न भुला पाने वाले घाव से आज तक नहीं उभर पाया। दूसरी तरफ कांग्रेसी नेता नवजोत सिंह सिद्दू पाकिस्तान पहुंच गए। यही नहीं वहां जाकर सिद्धू एक बार फिर से पाक सेनाध्यक्ष से गलबहियां कर रहे हैं। दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच बने करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास समारोह में पाकिस्तान से पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्दू को निमंत्रण मिला था। जिसमें पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह तो नहीं गए लेकिन सिद्धू तपाक से पाकिस्तान पहुंच गए। यही नहीं, सिद्धू पाकिस्तान जाकर पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद वाजवा से गले मिलने के साथ ही भारत सरकार पर हमला भी बोल दिया। जबकि अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को पाक के निमंत्रण पर पुनर्विचार करने की नसीहत भी दी थी लेकिन सिद्धू ने उनकी एक नहीं सुनी और पाक के लिए रवाना हो गये जिससे अमरिंदर सिंह सिद्धू से नाराज हो गये हैं. सिधु के इस कदम से एक बार फिर से पंजाब कांग्रेस में दोफाड़ की स्थिति देखने को मिल रही है। दरअसल पाकिस्तान में 28 नवंबर यानी आज करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास होने वाला है। इस समारोह में सिद्दू को भी निमंत्रण भेजा गया था लेकिन सिद्धू शिलान्यास से एक दिन पहले ही वहां पहुंच गए। लाहौर पहुंचने पर सिद्धू ने कहा कि, ये कॉरिडोर दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध की नींव रखेगा। सिद्धू ने खुद को श्री गुरुनानक के शांति का दूत भी बताया।
इस दौरान पाकिस्तानी सेनाप्रमुख कमर जावेद वाजवा से पिछले दौरे में गले मिलने पर सफाई देते उन्होंने हद ही पार कर दी। सिद्धू ने कहा, पाक आर्मी चीफ से गले मिलना राफेल डील जैसा नहीं था। इससे पहले इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में बाजवा से गले लगने पर उठे विवाद से सिद्धे ने कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि मैंने पाक सेना प्रमुख को पहचाना ही नहीं। अब वो वहां जाकर पाक सेना प्रमुख से गले मिलकर अपनी खुशी जाहिर करने से नहीं चूंक रहे।
उधर सिद्धू की इन हरकतों से पंजाब के मुख्यमंत्री काफी नाराज हो गये हैं जिससे कांग्रेस में दोफाड़ की स्थिति बन गयी है. अब कांग्रेस के सामने ये मुश्किल खड़ी हो गयी है कि वो किसका समर्थन करेगी। इस मामले पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने अपने बयान में कहा, “अपनी पिछली यात्रा के दौरान कॉरिडोर को लेकर वो सोशल मीडिया पर चर्चा में आये थे, अब पाकिस्तान जाकर फिर से लाइमलाइट में आने की कोशिश उनकी प्रवृत्ति के अनुरूप है। उनके लिए ये उसी कार्यक्रम में आगे की पहल है। बात की जाए अमरिंदर सिंह की तो वो राज्य के मुखिया के साथ-साथ एक पूर्व सैनिक वाला भी रवैया रखते हैं।“ इस बयान से कांग्रेस में उभरती असमंजस की स्थिति साफ़ झलक रही है।
हालांकि, गौर करें तो स्थिति एकदम साफ़ है कांग्रेस को अमरिंदर सिंह का समर्थन करना चाहिए जो देश के दुश्मन के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर कांग्रेस सिद्धू पर नकेल क्यों नहीं कसती है? अगर कांग्रेस सिद्धू की इन हरकतों पर रोक नहीं लगा सकती तो इसका साफ मतलब है कि कहीं न कहीं कांग्रेस सिद्धू के समर्थन में है। फिर भी उसे डर है कि खुलकर बोलने से कहीं देश की जनता और पंजाब सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नाराज न हो जायें। और अगर ऐसा है तो ये सवाल उठना भी स्वभाविक है कि क्या कांग्रेस मात्र अपनी सरकार बनाने के लिए पाकिस्तान से गलबहियां करने को तैयार है। वैसे भी चाटुकारिता की हद पार करते-करते सिद्दू कांग्रेस में अब तक वो ओहदा हासिल कर चुके हैं जहां से वो कांग्रेस के चेहरे के रूप में दिखते हैं। जबकि सिद्धू ने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसके लिए उन्हें वाह वाही मिले।
बार-बार पाकिस्तान में जा-जाकर ऐसा करते हुए शायद सिद्धू और कांग्रेस ये भूल चुके हैं कि वो उस देश के सेनाध्यक्ष से गले मिल रहे हैं और अपने देश की सरकार पर निशाना साध रहे हैं जो आतंकियों का वित्तपोषण करता है, जो आईएसआई जैसी खूफिया एजेंसियों के माध्यम से भारत में साजिशें रचता है।
आखिर कांग्रेस कब समझेगी कि आंतरिक राजनीति, आपसी मतभेद, पक्ष-विपक्ष की राजनीति अपने देश के भीतर ही रहे तो अच्छी लगती है। जब हम बाहर जाकर अपने ही देश के भीतर की खूफिया जानकारियां, मतभेद, देश के प्रधानमंत्री समेत तमाम लोगों से मतभेद बाहर जाहिर करके आते हैं तो हमारी आंतरिक कमजोरी दूसरे देशों की खूफिया एजेंसियों की ताकत बन जाती हैं।
आखिर कांग्रेस और सिद्धू को ये याद क्यों नहीं आया कि अभी कुछ दिनों पहले ही पंजाब में ही एक धार्मिक स्थल पर आईएसआई वालों द्वारा हमले कराए जाने की पुष्टि हुई थी। आखिर कांग्रेस को ये क्यों नहीं याद आता कि अभी एक दिन पहले ही देश ने 26/11 में मारे गए देश के निर्दोष लोगों को याद किया था। आखिर सिद्धू को ये याद क्यों नहीं आया कि उरी हमले से पहले भी भारत-पाक के बीच शांति की पहल हुई थी, फिर भी उरी में पाकिस्तान ने कायरतापूर्ण हरकत की थी।
इससे पहले भी जब पूरा देश एक पूर्व प्रधानमंत्री (अटल बिहारी वाजपेई) के देहांत पर शोक में डूबा था तो उस समय भी सिद्धू ने पाकिस्तान में जाना ज्यादा जरूरी समझा था। उन्हें वहां का भोजन खूब पसंद आ रहा था। भारत लौटते ही उन्होंने पाकिस्तान की तारीफों के पुल बांध दिए थे। यही नहीं सिद्धू ने पाक को दक्षिण भारत से बेहतर साबित कर दिया था। सिद्धू ने कहा था, “आप पाकिस्तान में कहीं भी यात्रा कर लो, वहां न तो भाषा बदलती है, न ही खाना बदलता और न ही लोग बदलते हैं, जबकि दक्षिण भारत में जाने पर भाषा से लेकर खानपान तक सब कुछ बदल जाता हैं। आपको दक्षिण भारत में रहने के लिए अंग्रेजी या तेलुगु सीखनी पड़ेगी, लेकिन पाकिस्तान में ऐसा जरूरी नहीं है”
ऐसे में शांति की पहल की दुहाई देने वाली कांग्रेस और सिद्धू आखिर ये क्यों भूल गए कि जिस शांति की बात वो कर रहे हैं, उनसे पहले कई शांति दूतों द्वारा इसकी पहल बखूबी की जा चुकी है। पाकिस्तान को अगर शांति और प्रेम की भाषा समझ में आती तो सीमा पर पहले ही शांति स्थापित हो चुकी होती। क्या कांग्रेस और सिद्धू के पास इस बात का जवाब है कि इससे पहले केंद्र में लंबे समय तक कांग्रेस की ही सरकार थी। फिर कांग्रेस पाकिस्तान के साथ शांति स्थापित क्यों नहीं करा पाई। ज्यादातर आतंकी हमले भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार रहते समय ही हुए थे। शांति की ये पहल उस समय आपने क्यों नहीं की थी। और अगर की थी तो पाकिस्तान नहीं माना होगा। और अगर पाकिस्तान माना नहीं तो अब, जब आम चुनाव नजदीक हैं तो पाकिस्तान को मनाने की इतनी तड़प का क्या मतलब है।