इसी साल 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर की सुनवाई टालते हुए जनवरी में सुनवाई का फैसला सुनाया था। कोर्ट के फैसले के बाद से चारों तरफ से अध्यादेश लाने की मांग तेज हो गयी जबकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं लेकिन यहां शिव सेना जिस तरह से राम मंदिर को लेकर अचानक से मुखर हो गयी है उसपर कई सवाल खड़े होते हैं। सवाल ये कि अचानक से शिवसेना को राम मंदिर मुद्दा इतना क्यों भा रहा है? क्या इस मुद्दे के पीछे है कोई बड़ी रणनीति? क्या वो इस मुद्दे के जरिये महाराष्ट्र में बीजेपी को बैकफूट पर लाना चाहती है? सवाल कई हैं और इनके जवाब भी हैं लेकिन उससे पहले हमें 1992 के बाबरी विध्वंस और आज के हालातों की गहराई में जाना होगा।
6 दिसंबर 1992 को हजारों की संख्या में अयोध्या पहुंचे करसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढाह दिया था तब शिव सेना प्रमुख बल ठाकरे ने आगे आ कर इसकी जिम्मेदारी ली थी। उस समय बीजेपी और शिवसेना साथ थे लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि शिवसेना बीजेपी पर हमला करने का एक अवसर नहीं छोड़ती है। दोनों कहने के लिए तो साथ लेकिन जिस तरह शिवसेना के मुखपत्र सामना में दिए अपने एक साक्षात्कार में भारतीय जनता पार्टी को घेरने का प्रयास किया था वो उद्धव ठाकरे की बड़ी रणनीति का खुलासा करता है।
Humne 17 minute mein Babri tod di, to kanoon banane mein kitna time lagta hai?Rashtrapati Bhawan se lekar UP tak BJP ki sarkar hai. Rajya Sabha mein aise bahot sansad hai jo Ram mandir ke saath khade rahenge,jo virodh karega uska desh mai ghumna mushkil hoga:Sanjay Raut,Shiv Sena pic.twitter.com/62zlo0eZJ5
— ANI (@ANI) November 23, 2018
यही नहीं शिवसेना सांसद संजय राउत भी राम मंदिर के लिए कानून बनाने की मांग करते हुए बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने अपने एक बयान में कहा, “हमने 17 मिनट में बाबरी तोड़ दी, तो कानून बनाने में कितना समय लगता है? राष्ट्रपति भवन से लेकर यूपी तक बीजेपी की सरकार है। राज्यसभा में ऐसे बहुत सांसद हैं, जो राम मंदिर के साथ खड़े रहेंगे। जो विरोध करेगा, उसका देश में घूमना मुश्किल होगा।” उनका ये बयान भी तब आया है जब शिवसेना ने राम मंदिर निर्माण के लिए अपनी मुहीम तेज कर दी है। इससे पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा था कि, “हर किसी के खाते में 15 लाख रुपये देने की तरह ही क्या राम मंदिर भी बीजेपी का एक चुनावी जुमला है?”
यदि हम साल 1992 और आज की बात करें तो मोदी लहर और फडणवीस के कार्यों की वजह से महाराष्ट्र में बीजेपी की पकड़ शिवसेना के मुकाबले काफी मजबूत हुई है जो शिवसेना को बिलकुल रास नहीं आ रहा है। यहां तक कि वो कई बार ये तक दिखाने का प्रयास करती है कि वो दोनों साथ में चुनाव नहीं लड़ेगे और महाराष्ट्र में भी उनका गठबंधन टूट जायेगा। हालांकि, वो ऐसा करते नहीं है क्योंकि वर्ष 2015 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने अकेले चुनाव लड़ा था तब बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन राज्य में सत्ता कायम करने के लिए दोनों पार्टियां एक बार फिर से एक साथ आयी थीं। इन नतीजों से शिव सेना को ये बात समझ आ गयी कि बीजेपी पहले की तरह कमजोर नहीं रही ऐसे में अकेले चुनाव लड़ने पर उसकी पकड़ और कमजोर हो जाएगी। यही वजह है शिवसेना भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जहर तो उगलती है लेकिन साथ नहीं छोड़ती है।
शिवसेना के मन में भारतीय जनता पार्टी के लिए कड़वाहट भर चुकी है क्योंकि राज्य में बीजेपी का सीएम पद का उम्मीदवार ही मुख्यमंत्री पद पर विराजमान है जोकि शिवसेना को रास नहीं आ रहा। ऐसे में वो अब राम मंदिर मामले में अचानक से सक्रीय हो गयी है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राम मंदिर पर अचानक से सालों बाद शिवसेना की सक्रियता के पीछे कई कारण हो सकते हैं। लोकसभा चुनाव पास आ रहे हैं और इस मुद्दे को भुना कर शिवसेना बीजेपी को बैकफुट पर लाना चाहती है ताकि भारतीय जनता पार्टी राज्य में सीटों के साथ समझौता करने के लिए तैयार हो जाये। गौर करें तो समझ आयेगा कि जिस तरह से साल 2014 में कांग्रेस राम मंदिर के मुद्दे और सत्ता विरोधी लहर की वजह से सत्ता से बाहर हुई थी अब ऐसा ही कुछ शिवसेना भी करने का प्रयास कर रही है या यूं कहें कि वो बीजेपी पार्टी से राम मंदिर मुद्दा ही छीन लेना चाहती है। आज जिस तरह से शिवसेना इस मुद्दे को लेकर मुखर है उससे तो यही लगता है कि अब ये मुद्दा शिव सेना का बन गया है।
Shiv Sena chief Uddhav Thackeray reaches Ayodhya today for a two-day visit. Shiv Sena will hold an event in the city tomorrow over the matter of #RamTemple. pic.twitter.com/C8G28fbgNH
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) November 24, 2018
आज अयोध्या में उद्धव ठाकरे अपनी पत्नी और बेटे के साथ पहुंचे हैं। अयोध्या में शिवसेना के कार्यकर्ता मंदिर निर्माण को लेकर ‘पहले मंदिर फिर सरकार’ जैसे नारे लगा रहे हैं। अयोध्या के बाद वो वाराणसी भी जायेंगे जो पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। अगर उनकी ये यात्रा सफल होती है और उन्हें जनता से अच्छा रेस्पॉन्स मिलता है तो वो उत्तर प्रदेश में भी सीटों के लिए अपना दांव पेश कर सकते हैं। इससे साफ़ है कि उद्धव ठाकरे की कोशिश लोकसभा चुनाव से पहले हिंदुत्व का कार्ड खेलकर बीजेपी से उसके हिंदू मतदाता आधार छिनना ।
वास्तव में राम मंदिर का मुद्दा शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का सिर्फ राजनीति में खुद को एक बार फिर से मजबूती के साथ स्थापित करना है । वास्तव में वो इस बात को आसानी से पचा नहीं पा रहे कि गठबंधन की सरकार में उनका प्रभाव अब पहले की तरह नहीं रहा इसलिए वो बार-बार एक बड़े सहयोगी की तरह राज्य में गठबंधन सरकार में हावी होने की पूरी कोशिश की है। वो बालासाहेब की तरह ही महाराष्ट्र की राजनीति में हावी होने की पूरी कोशिश करते रहे हैं लेकिन ऐसा करने में वो असफल रहे हैं क्योंकि बालासाहेब सिद्धांतों के पक्के थे वहीं, उद्धव ठाकरे पार्टी के मूल सिद्धांत से भटक गए हैं। इसका उदाहरण मराठा आन्दोलन के दौरान भी देखा गया था। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना पार्टी जो कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में जानी जाती है अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के तहत अब मुसलमानों के 5 फीसदी आरक्षण की मांग की थी। ये दुखद है कि अपने लाभ के लिए तुष्टिकरण की राजनीति के बाद शिव सेना राम मंदिर मामले पर राजनीति कर रही है।