अलवर में दो दिन पहले एक रैली को संबोधित करते हुए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, “बजरंगबली एक ऐसे लोक देवता हैं, जो स्वयं वनवासी हैं, निर्वासी हैं, दलित हैं, वंचित हैं।” मुख्यधारा की मीडिया में योगी के इस बयान को लेकर बहुत हो-हल्ला हो रहा है। वो आरोप लगा रहा हैं कि, योगी ने हनुमान जी को सीधे-सीधे दलित बता दिया है। वास्तव में योगी की इस टिप्पणी पर बड़े पैमाने पर भ्रम फैलाया गया है, जिसके फलस्वरूप ब्राह्मण महासभा ने इस बयान को लेकर सीएम योगी को कानूनी नोटिस भी भेज दिया है।
#WATCH: UP CM Yogi Adityanath says in Rajasthan's Alwar, "Bajrangbali ek aise lok devta hain, jo swayam vanvasi hain, nirvasi hain, Dalit hain, vanchit hain. Bharatiya samudaye ko Uttar se leke Dakshin tak, purab se paschim tak, sabko jodne ka kaam Bajrangbali karte hain".(27.11) pic.twitter.com/5AdyrmMXQN
— ANI (@ANI) November 29, 2018
यूपी के सीएम ने खुद महंत होने के बावजूद भी हनुमान जी को इस तरह संबोधित क्यों किया, इसे समझने के लिए हमें दो चीजें जाननी होगी। पहला ‘दलित’ शब्द की उत्पत्ति का इतिहास और दूसरा हनुमान जी की जीवन कहानी। आइए पहले ‘दलित’ शब्द को समझते हैं।
दलित शब्द की उत्पत्ति का इतिहास
‘दलित’ एक संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ विभाजित या खंडित होता है। प्राचीन भारतीय इतिहास में इस शब्द का उपयोग किसी जाति या समुदाय के लिए कभी नहीं किया गया है। जो समुदाय अलग-अलग बिखरे हुए रहते हैं, उन्हें ही ‘दलित’ कहा जाता है। सन् 1935 में अर्थशास्त्री और सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर ने ‘दलित’ शब्द की परिभाषा में सभी निचली जाति के वंचित लोगों को शामिल करने का आग्रह किया था। उसके बाद से ही भारत में यह शब्द तेजी से चलन मे आया।
आइए अब हनुमानजी की जीवन कहानी के बारे में जानते हैं
मारुतस्य औरसः श्रीमान् हनुमान् नाम वानरः |
वज्र संहननोपेतो वैनतेय समः जवे || १-१७-१६
सर्व वानर मुख्येषु बुद्धिमान् बलवान् अपि |
‘पवन देवता के पुत्र हनुमान अद्भुत साहस वाले और अमर हैं। वे गति में विनाता के पुत्र गरुड के समान हैं। इसके साथ ही सभी वानर प्रमुखों में वे सबसे शक्तिशाली और बुद्धिमान हैं।’
वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के जीवन के बारे में बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु मानव अवतार लेकर धरती पर आते हैं तो बहुत से दूसरे देवता भी उनकी सहायता के लिए विभिन्न रूपों में अवतार लेते हैं। हनुमान जी का जन्म भी भगवान विष्णु के 7 वें अवतार श्रीराम की सहायता के एकमात्र उद्देश्य के लिए हुआ था। किंतु हनुमान जी की अपनी एक जीवन कहानी भी है। उनका जन्म वानर राज केसरी और माता अंजना से हुआ था। केसरी, बाली के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक थे। बाली वानर साम्राज्य के राजा थे, जिन्होंने किष्किंधा से अपने राज्य पर शासन किया था। केसरी, बाली के बडे भाई सुग्रीव के भी बहुत अच्छे मित्र थे।
बाद में बाली और सुग्रीव के बीच भयानक शत्रुता हो गई, जिसके कारण सुग्रीव को किष्किंधा से भागना पड़ा। सुग्रीव ने बाली से बचने के लिए एक ऋषि के आश्रम में शरण ली। इस ऋषि का बाली को श्राप था, जिस कारण वह उस आश्रम में नहीं आ सकता था। केसरी, उनके बेटे हनुमानजी, राजा जामवंत भालू के साथ ही कई प्रमुख वानर सरदार भी सुग्रीव के साथ ही चले आए थे। वहीं से सुग्रीव, हनुमान और दूसरे वानर सरदारों के निर्वासन का समय शुरु हुआ था।
भले ही हनुमानजी जन्म से एक राजकुमार थे लेकिन वे बाद में निर्वासी हो गए थे। हनुमान जी को जंगल में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था, इसलिए वे वनवासी हुए। हनुमानजी राजा की संपत्ति और परिषद में पद के हकदार थे, लेकिन यह सब उनसे छिन गया था, इसलिए वे वंचित भी हो गए थे।
लेकिन क्या हनुमानजी दलित भी थे? अगर दलित शब्द की आधुनिक राजनैतिक परिभाषा देखें तो वे बिल्कुल नहीं थे। यदि हम दलित शब्द की पौराणिक परिभाषा के अनुसार देखते हैं तो पाएंगे कि हनुमानजी एक ऐसे समुदाय से थे जो बार-बार अपना स्थान बदलता रहा। सुग्रीव व बाली की दुश्मनी के कारण वानर प्रमुखों को विभाजित होकर रहना पड़ा था। ये वानर प्रमुख बाली और सुग्रीव के दो ग्रुपों में भी बंट गए थे। वानरों के बीच यह लड़ाई तब खत्म हुई जब श्रीराम ने बाली का वध कर सुग्रीव को फिर से उसका राजपाठ दिलाया।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि, मुख्यमंत्री योगी को आधुनिक समय के अनुसार शब्दों को चुनने में थोड़ा और सावधान रहना चाहिए था, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि, योगी बहुत ही धार्मिक व्यक्ति हैं और वे हनुमान जी के लिए श्रदा के साथ ही बात कर रहे थे। मुख्यमंत्री योगी ने राजनैतिक रैली में धार्मिक अर्थ में इस शब्द का उपयोग करके गलती की, जिसे मिडिया द्वारा बिना व्याख्या के ज्यों का त्यों ले लिया गया। श्रीकृष्ण को रणछोड़ कहा जाता है। रणछोड़ यानी जो युद्द के मैदान को छोड़ कर भाग जाए, लेकिन श्रीकृष्ण के लिए यह शब्द डरपोक के पर्याय के रूप में प्रयोग नहीं होता है। श्रीकृष्ण ने यहां जो किया वह कूटनीति थी।
मीडिया ने सीएम योगी के बयान को बिना संदर्भ के ही प्रसारित किया और दलित शब्द की पौराणिक परिभाषा को प्रस्तुत ही नहीं किया क्योंकि संभवतः वे बीजेपी और सीएम योगी के लिए अपनी नफरत से बहुत अंधे हो गए हैं या शायद उनके पास सोचने-समझने लायक बुद्दि की कमी है। वे एक बहुत ही धार्मिक संदर्भ लिए हुए वाक्य का मतलब भी नहीं निकाल पाए।