कहा गया है कि पुरुषार्थी जहां भी रहता है, वह चमकता ही रहता है। उसके लिए स्थितियां-परिस्थितियां मायने नहीं रखती हैं। वह हर परिस्थितियों से लड़ना और जूझना जानता है और हर बाजी जीतना जानता है। ऐसा ही कुछ हाल है, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का। अजीत डोभाल को भारत सरकार ने विपरीत परिस्थितियों वाली जितनी भी जिम्मेदारियां दीं, अजीत डोभाल ने उन्हें बखूबी निभाया। अब अजीत डोभाल के नेतृत्व में भारत ने अगस्ता वेस्टलैंड मामले में कथित बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल का प्रत्यर्पण करने में भी सफलता हासिल कर ली है। एनएसए डोभाल की इस सफलता के मौके पर आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ ऐसे किस्से जो उनकी शौर्यगाथा के से भरे पड़े हैं।
कौन हैं अजीत डोभाल
अजीत डोभाल उत्तराखंड के पौडी गढ़वाल से हैं। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर की मिलिट्री स्कूल से पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया। पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद वे आईपीएस की तैयारी में लग गए। केरल कैडर से 1968 में वो आईपीएस के लिए चुन लिए गए। वे 1972 में भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी से जुड़े। एनएसए डोभाल भारत के ऐसे एकमात्र नागरिक हैं, जिन्हें शांतिकाल में दिये जाने वाले दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल एक ऐसे अधिकारी हैं जो बहुत ही दमदार तरीके से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। अजीत डोभाल ढेरों ऐसे खतरनाक और असाधारण कारनामों को अंजाम दे चुके हैं, जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के किस्से याद आ जाते हैं। भारतीय सेना द्वारा म्यांमार में सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बना एनएसए डोभाल ने देश के शत्रुओं को सीधा और साफ संदेश दे दिया था कि, अब भारत आक्रामक रवैया अपना चुका है।
डोभाल के कार्यकाल के कुछ साहसिक कारनामें
किस्सा-1
एक बार उन्होंने भारतीय सेना के एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान एक गुप्तचर की भूमिका निभाई थी। गुप्तचर बनकर उन्होंने भारतीय सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई थी। उनकी जानकारियों की मदद से वह सैन्य ऑपरेशन सफल हो सका था। इस दौरान उन्होंने एक ऐसे पाकिस्तानी जासूस की भूमिका निभाई थी, जिसने खालिस्तानियों का विश्वास जीत लिया था। इसके बाद उन्होंने उनकी तैयारियों की जानकारी सेना को मुहैया करवाई थी।
किस्सा-2
बात 1999 की है। उस समय इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 को काठमांडू से हाईजैक कर लिया गया था। उस समय एनएसए अजीत डोभाल को भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार बनाया गया था। बाद में, इस फ्लाइट को कंधार ले जाया गया था और यात्रियों को बंधक बना लिया गया था।
किस्सा-3
डोभाल ने कश्मीर में भी उल्लेखनीय काम किया है। उन्होंने उग्रवादी संगठनों में घुसपैठ कर ली थी। उसके बाद उन्होंने उग्रवादियों को ही शांतिरक्षक बनाकर उग्रवाद की पूरी धारा को ही मोड़ दिया था। यही नहीं, उन्होंने कूका पारे नाम के एक प्रमुख भारत-विरोधी उग्रवादी को अपना सबसे बड़ा सहायक बना लिया था।
किस्सा-4
बात अस्सी के दशक की है। उस दौर में डोभाल उत्तर पूर्व में सक्रिय रहे। उस समय ललडेंगा की अगुआई में मिजो नेशनल फ्रंट ने हिंसा और अशांति फैला रखी थी। फिर डोभाल ने मोर्चा संभाला। उस बार तो डोभाल ने गजब ही कर दिया था। उन्होंने ललडेंगा के 7 में से 6 कमांडरों का विश्वास जीत लिया था। नतीजा यह हुआ कि ललडेंगा को मजबूरी में भारत सरकार के साथ शांति विराम का विकल्प चुनने पर विवश होना पड़ा।
किस्सा-5
यह 1991 का दौर था। इस समय खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट ने उत्पात मचा रखा था। उस समय डोभाल ने खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहरण किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की योजना बनाई थी। डोभाल ने इस मिशन को भी लक्ष्य तक पहुंचाया था।
किस्सा-6
पूर्वोत्तर में सेना पर हमला हुआ था। हमले के बाद एनएसए डोभाल ने सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई। योजना जोखिम भरा थी। डोभाल के नेतृत्व में भारतीय सेना ने सीमा पार म्यांमार में कार्रवाई कर दी। कार्रवाई में सेना ने उग्रवादियों को मार गिराया गया। भारतीय सेना ने म्यांमार की सेना और एनएससीएन खाप्लांग गुट के बागियों के सहयोग से ऑपरेशन चलाया था, जिसमें करीब 30 उग्रवादी मारे गए थे।
इन तमाम जिम्मेदारियों के अलावा डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां भी संभाली हैं। यहां तक कि, डोभाल ने करीब एक दशक तक खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा को भी लीड किया। एनएसए अजीत डोभाल 30 मई 2014 से इस पद पर हैं। डोभाल भारत के पांचवे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं।