अपने सहयोगी पार्टियों को सम्मानजनक सीट देना और गठबंधन में सभी को अहमियत देने की बात हो तो शायद भारतीय जनता पार्टी का नाम सबसे ऊपर होगा। ये हम यूं ही नहीं कह रहे बल्कि जिस तरह से बिहार में बीजेपी ने सहयोगी दलों के लिए अपनी जीती हुई सीटें छोड़ रही है वो शायद ही किसी राष्ट्रीय पार्टी ने कभी किया होगा। अपने सहयोगी दलों की मांग को स्वीकार कर उन्हें सम्मानजनक सीटें दे रही है बीजेपी। दरअसल, बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 6 सीटें लोक जनशक्ति पार्टी को दे दी गयी हैं। पिछले कुछ दिनों से खबरें थी कि राम विलास पासवान बिहार में एनडीए से सीटों के बंटवारे को लेकर नाराज चल रहे हैं और सम्मानजनक सीटों की मांग कर रहे हैं ऐसे में वो पासवान एनडीए का साथ छोड़ सकते हैं। हालांकि, अमित शाह ने अपनी नीतियों से विपक्ष के इस इन दावों पर पानी फेर दिया।
लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए बैठक हुई इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, बिहार के सीएम नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी के नेता राम विलास पासवान ने प्रेस कांफ्रेंस कर सीटों के बंटवारे को लेकर जानकारी दी। इसमें भारतीय जनता पार्टी ने जेडीयू को 17 और लोक जनशक्ति पार्टी को 6 सीटें दी हैं। वहीं बीजेपी के पास 17 सीटें हैं। इस बंटवारे में वित्त मंत्री अरुण जेटली की भूमिका भी अहम रही। सूत्रों की मानें तो अरुण जेटली बिहार के नेताओं से भलीभांति परिचित हैं और उन्होंने अमित शाह को सीट बंटवारे को लेकर सलाह दी थी। अरुण जेटली ने रामविलास पासवान के साथ पहले मीटिंग की थी फिर उन्होंने शाह को रामविलास पासवान की पार्टी को 6 लोकसभा सीटों के अलावा 1 राज्यसभा सीट देने के लिए कहा। शाह ने भी इसे स्वीकार कर लिया। इस तरह से बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर मनमुटाव की खबरें एक बार फिर से धरी की धरी रह गयीं। यहां शाह और अरुण जेटली की भूमिका ने बिहार में एक बेहतरीन गठबंधन का उदाहरण पेश किया है। नीतीश कुमार ने सीटों के बंटवारे पर मीडिया से बातचीत में कहा कि एनडीए मजबूती के साथ लोकसभा चुनाव जीतेगी। वहीं लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया पासवान ने सम्मानजनक सीटों के लिए अमित शाह का धन्यवाद किया।
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बिहार में 30 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 22 पर जीत हासिल की थी इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी के विपरीत अपने गठबंधन के सहयोगियों को बराबर की हिस्सेदारी दी जो कोई बड़े दिल वाला संगठन और नेता ही कर सकता है। जबकि कांग्रेस पार्टी चुनाव से पहले सपा और बसपा से गठबंधन नहीं किया था क्योंकि वो जहां जीत रही थी वहां सीटों का बंटवारा नहीं चाहती थी लेकिन जहां हार रही थी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन चाहती थी। यही वजह है कि क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया था। हालांकि, ये क्षेत्रीय पार्टियां ही थीं जिन्होंने मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का साथ दिया लेकिन बाद में कांग्रेस को उसी की भाषा में जवाब भी दिया। खेत्रिय पार्टियों ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अगर कांग्रेस ने अपने अहंकार को किनारे कर क्षेत्रीय पार्टियों को महत्व दिया होता तो शायद उसे उत्तर प्रदेश में आउट नहीं किया गया होता। खैर, कांग्रेस के विपरीत बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों को महत्व दिया और सम्मानजनक सीटें भी दीं। वास्तव में बिहार में बीजेपी ने संगठन विस्तार के साथ-साथ गठबंधन धर्म निभाने की कला को महत्व दिया है।
बता दें कि हाल ही में हिंदी बेल्ट के तीन राज्य हारने के बाद से बीजेपी कमजोर है की खबरें मीडिया में खूब दिखाई जा रही थीं लेकिन अब बीजेपी ने बता दिया है कि बिहार में एनडीए मजबूत स्थिति में है। वहीं, बिहार में कांग्रेस पिछले कई दशकों से हाशिये और है जबकि आरजेडी के अध्यक्ष लालू यादव इन दिनों चारा घोटाले मामले में रांची स्थित बिरसा मुंडा जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं। तेजस्वी और तेजप्रताप यादव ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ की लड़ाई में फंसे हुए हैं।
बिहार में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी ने अब राजद और कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेर दिया है। इस सफल गठबंधन का फायदा भाजपा को लोकसभा चुनाव में जरुर होगा।