उत्तराखंड में ‘क़ानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका’ के चलते सारा अली खान और सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म केदारनाथ के रिलीज़ पर रोक लगा दी गयी है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सतपाल महाराज की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इसी समिति की सिफारिश के बाद राज्य सरकार ने फिल्म केदारनाथ पर रोक लगाने का फैसला किया है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा, “हमने कल ये फिल्म देखी थी और हमने अपना सुझाव दिया कि वैसे तो कला को अभिव्यक्ति मिलनी चाहिए लेकिन उसके साथ-साथ हमें ये भी देखना होगा कि हमारे ज़िलों में कहीं इस फिल्म से क़ानून व्यवस्था ख़राब तो नहीं होती है।”
सतपाल महाराज ने आगे कहा, “हमारी कमेटी ने सीएम को सिफारिश भेज दी है। फैसला किया गया कि कानून व्यवस्था की समीक्षा की जानी चाहिए। हमने जिला मजिस्ट्रेट से शांति बनाए रखने को कहा है। सभी ने फैसला किया है कि केदारनाथ फिल्म को बैन किया जाना चाहिए। फिल्म राज्य में हर जगह बैन हो गई है।” पवित्र शहर के महत्व पर प्रकाश डालते हुए महाराज ने कहा, ‘केदारनाथ देश के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है इसलिए हम फिल्म का विरोध करने वाले समूह की भावनाओं का सम्मान करते हैं।’ बता दें कि केदारनाथ फिल्म को लेकर उत्तराखंड में विभन्न हिंदूवादी संगठनों ने विरोध ओरादार्ष्ण किया था और कहा था कि इस फिल्म में जरिये हिंदुओं की आस्था और पवित्र धाम केदारनाथ की छवि को धूमिल करने का दृश्य है। विरोध प्रदर्शन और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए राज्य सरकार ने फिल्म को प्रतिबंधित करने के एक उचित फैसला लिया है। महाराज ने साफ़ कर दिया कि लोग इस पवित्र स्थान पर मोक्ष प्राप्त करने के लिए आते हैं इसीलिए फिल्म का नाम, ‘क़यामत और प्यार’ रखना चाहिए था। सतपाल महाराज यही यही नहीं रुके उन्होंने आगे कहा, “जब ये लोग फिल्म बनाने के लिए केदारनाथ आते हैं, मदद मांगते हैं। हमें कुछ पता नहीं होता लेकिन जब ये लोग वहां जाकर ऐसी फिल्म बनाते हैं, तो इनका छुपा एजेंडा पता लगता है।
उत्तराखंड के एडीजी कानून-व्यवस्था अशोक कुमार ने कहा कि इस फिल्म पर देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, उधम सिंह नगर, पौड़ी, नैनीताल, तोहरी और अल्मोढ़ा जिलों में प्रतिबंध लगाया गया है। केदारनाथ के शूटिंग के दौरान से ही विवाद रहा है। बता दें कि उत्तराखंड के केदारनाथ फिल्म की शूटिंग गौरीकुंड, त्रियुगीनारायण, सोनप्रयाग, रामबाडा, चोपता और केदारनाथ धाम में की गई थी। दिलचस्प बात ये है कि रुद्रप्रयाग समेत शूटिंग हुए इलाकों में ऑपरेशनल सिनेमा हॉल नहीं है। इसका मतलब साफ़ है कि बैन कुछ ही स्थानों पर नहीं बल्कि ऑटोमेटिकली कई अधिकतर इलाकों में लग गया है।
वास्तव में फिल्म पर लगे प्रतिबंध ने भविष्य के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है। कई बार ऐसा समय आया है जब फिल्में और उनकी कहानी के पीछे एजेंडा छुपा होता है। ये फिल्में सभ्यता और संस्कृति की वास्तविक झलक की जगह उन चीजों को परदे पर दिखाते हैं जिसमें इनका व्यक्तिगत हित छुपा होता है। ऐसे में उत्तराखंड सरकार का ये फैसला सराहनीय है जिसने बॉलीवुड के लेफ्ट लिबरल और हिंदुफोबिया तत्वों पर करारा जवाब दिया है। ये फिल्म जून 2013 की केदारनाथ धाम में आई आपदा पर आधारित थी लेकिन इसकी कहानी हिंदू फोबिक पर आधारित रही। केदारनाथ धाम देश ही नहीं बल्कि विदेश में रहने वाले करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है लेकिन जिस तरह से फिल्म में दृश्य दिखाए गये हैं और फिल्म के संवादों को रखा गया है वो सनातन समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करता है।
ये फिल्म न सिर्फ 2013 में आई आपदा के पीड़ितों का उपहास करती है बल्कि छद्म धर्मनिरपेक्षता के प्रयास को भी दर्शाती है। वास्तव में इस फिल्म में आपदा के दृश्यों को सही तरह से पेश ही नहीं किया गया है और न ही फिल्म में सनातन समुदाय के लोगों की भावनाओं को तवज्जों दी गयी है। उत्तराखंड सरकार ने राज्य में फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर सही फैसला किया है।