शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश की नई कांग्रेस सरकार की कर्ज माफी को छलावा बताते हुए गुरुवार को कहा था कि, आधी-अधूरी कर्ज माफी की घोषणा राज्य के किसानों के साथ घोर अन्याय है। साथ ही शिवराज ने ट्विटर पर लिखा था, ‘‘31 मार्च 2018 तक का टाइम बैरियर लगाकर, छन्नी लगा कर आधी-अधूरी कर्ज माफी की घोषणा मेरे प्रदेश के किसान भाइयों-बहनों के साथ घोर अन्याय है।” उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस को ऐसे छलावे से दूर रहना चाहिए लेकिन, ये वो ठीक से जान ले कि मैं सोया नहीं हूं, मैं जाग रहा हूं और मेरी पैनी नज़रें उन पर ही हैं।” कमलनाथ सरकार पर कही गई शिवराज की यह बात सही ही साबित हो रही है। दरअसल, मध्यप्रेदश में कांग्रेस की कर्जमाफी घोषणा की शर्ते कुछ इस प्रकार हैं कि, इससे मध्यप्रदेश के 90 हजार किसान तो शुरुआत में ही महरूम हो गए हैं। प्रदेश के इन किसानों पर कर्जमाफी की घोषणा का कोई फायदा नहीं होगा और इन्हें खुद ही अपना कर्ज चुकाना होगा, नहीं तो इनकी जमीन गिरवी ही रहेगी।
बता दें कि, सरकार ने कर्जमाफी की घोषणा में अल्पावधि कृषि ऋण माफ करने का बात कही है। सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव केसी गुप्ता ने भी कहा है कि, कर्जमाफी के आदेश अल्पावधि कृषि ऋण के लिए ही हैं। जबकी सूबे के 90 हजार किसानों ने मध्यावधि या दीर्घावधि कर्ज लिया हुआ है। अर्थात यह कर्ज किसानों द्वारा कृषि उपकरण खरीदने जैसे कामों के लिए उठाया गया है। 30 जून 2018 की स्थिति देखें तो मध्यप्रदेश के इन किसानों पर 38 जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों का करीब 2 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। अब कांग्रेस की कर्जमाफी की घोषणा के बाद भी यह कर्ज किसानों के लिए संकट बना हुआ है।
बता दें कि, किसानों द्वारा यह कर्ज नहीं चुका पाने से हालत यह हो गई कि, जो बैंक दूसरों को कर्ज देते थे, अब वे खुद ही कर्जदार हो गए हैं। हालात यहां तक आ गए कि, सरकार को इन बैंकों को बंद करने का फैसला लेना पड़ा। मध्यप्रदेश में किसानों को खेती के लिए जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों के अलावा जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक कर्ज देते थे। 2009 तक बैंक ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक से कर्ज लेकर किसानों को खूब कर्ज बांटा। किसानों ने भी कर्जमाफी होने की आस में कर्ज चुकाना बंद कर दिया था। इसके बाद ये बैंक कभी नहीं संभल पाए। इन बैंकों ने कर्ज देना बंद कर दिया और वसूली जारी रखी। इस वसूली के लिए मूलधन चुकाओ और ब्याज माफ कराओ जैसी योजना भी बैंकों द्वारा लाई गई लेकिन इसका भी कोई खास असर नहीं हुआ। इन बैंकों का एक लाख आठ हजार किसानों के ऊपर साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज निकल रहा था। बाद में हालत यह हो गई कि बैंकों के लिए वेतन बांटना और अन्य खर्च जुटाना भी मुश्किल हो गया।
सहकारिता विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसानों की एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन बैंकों के पास गिरवी रखी हैं। हालत यह है कि, ये किसान दूसरे किसी बैंक से कर्ज भी नहीं ले सकते हैं। इन किसानों को उम्मीद थी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कर्जमाफी की घोषणा का फायदा उन्हें भी मिलेगा पर ऐसा नहीं होगा। उधर, सरकार बैंकों को बंद करने का निर्णय भी कर चुकी है। अब इन किसानों के साथ मुसीबत यह है कि, इन्हें कर्ज चुकाना ही होगा वरना कड़ी कार्रवाई भी हो सकती है।
ग्रामीण विकास और जिला सहकारी कृषि बैंकों की कर्ज की स्थिति इतनी दयनीय है कि, विदिशा के सवा आठ हजार से ज्यादा किसानों पर 208 करोड़ रुपये बकाया हैं। भिंड के 4 हजार 900 किसानों पर 137 करोड़, सागर के साढ़े चार हजार किसानों पर 45 करोड़, सीहोर के 35 सौ से ज्यादा किसानों पर 110 करोड़ और छिंदवाड़ा के डेढ़ हजार किसानों पर 35 करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं 17 करोड़ रुपये टीकमगढ़ के नौ सौ किसानों पर बकाया है। ऐसे में सूबे के ये 90 हजार किसानों की जमीनें कमलनाथ द्वारा कर्जमाफी की घोषणा करने के बावजूद भी गिरवी ही रहने वाली है।