एमपी में बीजेपी को सिर्फ 4337 वोट और मिल जाते तो सूबे में चौथी बार मुख्यमंत्री बनते शिवराज

मध्यप्रदेश शिवराज

PC: Hindustan

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को जो विपक्ष पिछले 13 सालों से सत्ता से नहीं हटा पाया, उस ‘मामा’ की नैया इस बार के विधानसभा चुनावों में नोटा ने डुबो दी। दरअसल, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 की हर एक असेंबली सीट पर जीत और हार के अंतर का विश्लेषण किया जाए तो सामने आता है कि, बीजेपी को सिर्फ 4,337 वोट और मिल जाते तो शिवराज सिंह चौहान चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री होते। आप यकीन नहीं कर पाएंगे लेकिन यह सच है कि, सिर्फ 4337 वोटों ने प्रदेश में शिवराज सिंह से सत्ता छीन ली है।

मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। इस बार के चुनाव में बीजेपी को जहां 109 सीटें मिलीं तो वहीं कांग्रेस को 114 सीटें मिल गई। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश विधानसभा की 10 सीटें ऐसी रहीं, जहां जीत और हार का अंतर 1,000 वोट से भी कम रहा। बेहद ही करीबी मुकाबले वाली इन 10 सीटों में से सिर्फ 3 पर ही भाजपा की जीत हुई है और बाकी 7 सीटों पर कांग्रेस विजयी रही। भाजपा को जिन सीटों पर 1000 से कम वोट के अंतर से कांग्रेस ने हराया उन सभी सीटों पर नोटा को दिए गए वोट भाजपा और कांग्रेस के बीच हार के अंतर से ज्यादा थे। जिन सात सीटों पर कांग्रेस के हाथों भाजपा को केवल 1000 से कम वोटों से हार का सामना करना पड़ा है, अगर हम उन सभी सीटों पर हार और जीत के आंकड़ों को जोड़ लें तो यह कुल 4,337 वोट बैठता है। यानी, भाजपा को अगर 4,337 वोट और मिल जाते तो उसे ये सातों सीटें भी मील जाती और यह पार्टी बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटों के जादुई आंकड़े को छू लेती। ऐसा होता तो लगातार 4 बार मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड शिवराज सिंह के नाम हो जाता।

मध्यप्रदेश में मामला कितना करीबी था, उसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि, यहां 18 सीटें ऐसी रहीं, जहां हार-जीत का अंतर 2,000 वोट से कम था। इसी तरह 30 सीटों पर तो हार-जीत का अंतर 3,000 से भी कम रहा। जबकि 45 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत का अंतर 5,000 से कम था।

दूसरी तरफ नोटा ने बीजेपी का जमकर नुकसान किया है। क्योंकि ये नोटा वोट  किसी और के वोट नहीं, बल्कि नाराज बीजेपी समर्थकों के ही थे। ये नाराज बीजेपी समर्थक बीजेपी से एससी-एसटी ऐक्ट और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर नाराज थे। दूसरी तरफ ये कांग्रेस को वोट सपने में भी नहीं कर सकते थे। ये बात कांग्रेस को पता थी। इन लोगों द्वारा नोटा का बटन दबाने से सीधा फायदा कांग्रेस को मिला। मध्यप्रदेश की कई विधानसभा सीटों में हार-जीत का अंतर से नोटा कहीं ज्यादा था। यानी अगर नोटा/नाराज बीजेपी समर्थक नोटा को वोट न करते तो बीजेपी जीत जाती। अब शिवराज सिंह को 4337 वोट खलेंगे या नहीं लेकिन इतना तो तय है कि जनता को अपने मामा की कमी 5 सालों तक जरूर खलेगी।

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