राष्ट्रीय राजनीति में ब्रांड राहुल और ब्रांड मोदी के साथ-साथ एक और बड़ा ब्रांड है, और वह है ब्रांड शिवराज। चुनाव नतीजे आने के बाद भी कोई इस बात को नकार नहीं सकता। मंगलवार को घोषित हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजों से यह साफ हैं कि, भले ही बीजेपी प्रदेश में सत्ता बनाने में सफल होती नहीं दिख रही है लेकिन, शिवराज सिंह चौहान का जादू आज भी सूबे के लोगों में बरकरार है। नतीजों के अनुसार इस बार के चुनावों में भी शिवराज सिंह चौहान की पार्टी को सूबे में सबसे ज्यादा वोट शेयर मिला है। सबसे ज्यादा सीटों वाली और सरकार बनाने के करीब कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर भी बीजेपी से कम ही रहा है।
चुनाव आयोग द्वारा जारी नतीजों के अनुसार मध्यप्रदेश में कुल 230 सीटों में से कांग्रेस को 114, बीजेपी को 109, बीएसपी को 2, समाजवादी पार्टी को 1 और निर्दलियों को 4 सीटें मिली है। वोट शेयर की बात करें, तो बीजेपी को सबसे ज्यादा 41 पर्सेंट और कांग्रेस को 40.9 पर्सेंट वोट शेयर मिला है। मध्य प्रदेश में वोट शेयर ज्यादा होने के बावजूद आखिरकार बाजी कांग्रेस के हाथ लगी है। मध्यप्रदेश में बीजेपी 15 सालों से सत्ता में थी। ऐंटी-इनकंबेंसी के अंडरकरंट और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा किसानों के कर्जमाफी के वादे ने यहां कांग्रेस को जीत के करीब पहुंचा दिया और इस तरह मुद्दत बाद, सूबे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को खुलकर जश्न मनाने का मौका मिला है।उधर संख्याबल के आगे झुकते हुए शिवराज सिंह चौहान ने जोड़-तोड़ के किसी भी कदम से इंकार करते हुए अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंपने का फैसला कर लिया है।
शिवराज सिंह चौहान ने अपने 13 सालों के कार्यकाल में जन कल्याणकारी योजनाओं की बदौलत जनता के बीच अपनी अलग इमेज बनाई है। सूबे की जनता खुद कहती है कि, शिवराज सरकार ने व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक, हर मोड़ पर कुछ न कुछ देने के लिए योजनाएं बनाई है। सड़क, पानी व बिजली के मामले में शिवराज ने प्रदेश को काफी आगे ले गए। उन्होंने ही एक बीमार राज्य को विकास की दौड़ में शामिल कराया है।
शिवराज ऐसे ही मामा के रूप में जनता के बीच लोकप्रिय नहीं हैं। चौहान ने यहां सूबे के हर तबके को छुआ है और हर घर में कुछ न कुछ दिया है। वास्तव में उनकी यहां छवि एक ‘मैं हूं न’ वाले सीएम की बनी है, जो सबसे मीठा बोलते हैं और हमेशा जनता के बीच रहते हैं। यही कारण है कि प्रदेश में एंटी इनकंबेंसी फेक्टर के बावजूद उन्हें सबसे ज्यादा वोट शेयर मिला है।
भले ही सरकार बनाने में नाकामयाब रहें लेकिन शिवराज अपनी सरकार की उपलब्धियों से संतुष्ट हैं। उनका मानना है कि, राज्य की जनता की उन्होंने पूरी ईमानदारी से सेवा की है। परिणाम घोषित होने से पहले भी उन्हें पूरा भरोसा था कि, जनता एक बार फिर उन्हें राज्य की सत्ता की बागडोर सौंपने का फैसला करेगी। उनका लक्ष्य मध्य प्रदेश को विकसित राज्यों में अग्रणी बनाना था।
चुनाव प्रचार के समय भी शिवराज का विजन एकदम साफ था। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि, “सिंचाई के मामले में अब हम मंझली योजनाओं पर काम कर रहे हैं ताकि सिंचाई का रकबा और बढ़े। लघु उद्योगों को हम और विस्तार दे रहे हैं ताकि इनसे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ सकें। एजुकेशन हब हम प्लान कर रहे हैं, उसमें भी ऐसे संस्थान लाए जाएंगे जो युवाओं को उनकी भविष्य की जरूरतों के मुताबिक तैयार कर सकें। हमारा जोर बड़े शहरों के आसपास सैटेलाइट टाउनशिप विकसित करने पर है। प्रदेश की सभी बड़ी सड़कें ठीक हो गई हैं और हमारा लक्ष्य टोले-मजरे तक की सड़कों को दुरुस्त करने का हैं। 17 हजार मेगावॉट बिजली की उपलब्धता का प्लान हमारे पास तैयार है। इसके बाद हम वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोतों पर काम कर रहे हैं। इसके चलते जावद में 400 मेगावॉट का और राजगढ़ में भी एक बड़ा सोलर हब हम तैयार करवा रहे हैं। पवन ऊर्जा के भी कुछ क्षेत्र हमने चिन्हित किए हैं, जिन पर काम चल रहा है।” इस तरह चौहान सूबे को देश के अग्रणी राज्यों की पंक्ति में ले जाने के लिए संकल्पबद्द दिखाई देते थे।
शिवराज की लोकप्रियता का बड़ा कारण यह है कि, वे जनता के सुख-दुख में हमेशा उनके बीच बने रहते हैं। मध्यप्रदेश के किसी भी क्षेत्र का कोई जवान अगर बॉर्डर पर शहीद हो जाता है, तो उसकी शव यात्रा में शिवराज कांधा देते हुए सबसे आगे दिखाई देते हैं। सूबे के किसी भी विधायक के यहां खुशी या गम का अवसर हो, शिवराज वहां सबसे पहले होते हैं। किसान आंदोलन हो, तीर्थ दर्शन हो, सुस्त कलेक्टर-कमिश्नर बदलने हों, लाडली-लक्ष्मी हो या भावांतर, शिवराज हर जगह उपस्थित होते हैं। सूबे के टोले-मजरे से लेकर श्यामला हिल्स की पहाड़ियो तक उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी हुई है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान पिछले 13 सालों से वन मैन शौ चलाते आ रहे थए और 2018 के विधानसभा चुनावों में भी उनकी पार्टी को सूबे में सबसे ज्यादा वोट शेयर मिला है। इससे स्पष्ट है कि, शिवराज एक ब्रांड है और लोग उन्हें पसंद करते हैं।
शिवराज पिछले 15 सालों में बनी अपनी मामा की छवि के साथ जनता का विश्वास जीत रहे थे। लेकिन उनकी इस कोशिश में कुछ उनके अपने ही सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आते दिखे। सूबे में ‘ मामा तुझसे बैर नहीं, तेरे लोगों पर ऐतबार नहीं’ जैसे नारे भी सुनने को मिले थे। इससे स्पष्ट है कि, सूबे में एंटी इनकंबेंसी तो थी लेकिन वह स्थानीय नेताओं के लिए थी। शिवराज सिंह चौहान इससे अछूते थे और अछूते ही रहे। यही कारण है कि आज भी वे एक ब्रांड बने हुए हैं।