कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए कितना भी जद्दोजहद कर लें लेकिन प्रधानमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा पर हर बार कोई न कोई क्षेत्रिय या छोटे दल पानी फेर जाता है। इस मामले में ममता बनर्जी, मायावती और अखिलेश यादव सबसे आगे रहते हैं। एक बार फिर से कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आई है। दरअसल, डीएमके नेता एमके स्टालिन ने 2019 में महागठबंधन की ओर से पीएम पद के लिए प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी के नाम का समर्थन कर दिया। उनके समर्थन करते ही विपक्षी दलों में मानों खलबली सी मच गई। ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया से ये साफ पता चल गया कि वो कांग्रेस अध्यक्ष का समर्थन करने के मूड में बिल्कुल भी नहीं हैं। इसका उदाहण ममता बनर्जी की उस प्रतिक्रिया से देखा जा सकता है जिसमें वो तीन राज्यों में मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होने जा रही हैं।
दरअसल अभी हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस तीन राज्यों (राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़) में अपने मुख्यमंत्री बनाने में सफल रही। आज इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली जाएगी। कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में ममता बनर्जी, मायावती व अखिलेश समेत तमाम क्षेत्रीय दलों के नेताओं को आमंत्रित किया था। कांग्रेस अध्यक्ष इस समारोह के बहाने क्षेत्रीय दलों की सवारी करके प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब पाले बैठे थे लेकिन ममता बनर्जी ने उनके ख्वाबों पर पानी फेर दिया। उन्होंने इस आयोजन में न जाने का निर्णय लिया है।
बता दें कि इससे पहले भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कई बार कांग्रेस को समर्थन देने से पीछे हटने के संकेत दिए हैं। वहीं इस बार की बात करें तो इस बार केवल ममता बनर्जी ही नहीं, बसपा व सपा प्रमुख यानी मायावती और अखिलेश ने भी शपथ ग्रहण समारोह में न जाने का निर्णय लेकर ममता के झटके को और भी धार दे दिया। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पीएम पद के उम्मीदवार के नाम पर अन्य दलों के ऐसे पीछे होने से साफ पता चलता है कि एमके स्टालिन जैसे कुछ नेताओं को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर क्षेत्रीय दल राहुल गांधी के नाम का समर्थन नहीं करने वाले हैं।
हालांकि एमके स्टालिन का राहुल गांधी को समर्थन करने के पीछे एक कारण ये भी झलकता है कि दोनों ही नेताओं को राजनीति विरासत में मिली है। दोनों ही नेता राजनीति में जमीन से उठने की बजाय हेलीकॉप्टर से उतरे हैं। दोनों ही पार्टियां जनता की एक बजाय परिवार की पार्टियां कही जाती हैं। ऐसे में दोनों पार्टियां एक दूसरे को पसंद करें, ये स्वभाविक है।
हालांकि ममता, मायावती और अखिलेश जैसी पार्टियां बीच-बीच में कांग्रेस को झटका देते रहते हैं। वैसे इसके पीछे अखिलेश और मायावती के खुद के स्वार्थ भी छिपे हैं। ममता के मायावती के मन में भी कहीं न कहीं प्रधानमंत्री पद के महत्वाकांक्षा दबी है, जिसे खुलकर कहने में वो संकोच कर रहे हैं। हल ही में विपक्षी पार्टियों की एक बैठक हुई थी उसमें भी अखिलेश यादव और मायावती ने हिस्सा नहीं लिया था। इसके अलावा राहुल गांधी का नेतृत्व को न स्वीकार करने के पीछे राजनीति क्षेत्र में उनका कम अनुभव और पार्टी में उनका कमजोर नेतृत्व भी है। कांग्रेस पार्टी इन पार्टियों पर दबाव बनाने का भी प्रयास करती है और यही वजह है कि ममता बनर्जी राहुल गांधी के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा नहीं चाहती हैं। ऐसे में एक बात तो निश्चित तौर पर दिखती हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का समर्थन कोई नहीं करने वाला है और न ही वो राहुल गांधी का नेतृत्व चाहते हैं।