पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को एक तोहफा देने जा रहे हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सबसे लंबे रेल-सड़क पुल का उद्घाटन करेंगे। इस पुल के बन जाने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि, अरुणाचल प्रदेश से लगती चीन की सीमा तक पहुंचना आसान हो जाएगा। बता दें कि, असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने इस पुल का नाम बोगीबील है। इसकी लंबाई 4.94 किलोमीटर है। ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित डिब्रूगढ़ जिले को यह बोगीबील पुल अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगते धेमाजी जिले के सीलापथार से जोड़ता है।
मोदी इस पुल का उद्घाटन 25 दिसंबर को करेंगे। इस दिन को सुशासन दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस पुल की आधारशिला 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने रखी थी। हालांकि इसका निर्माण कार्य अप्रैल 2002 में ही शुरू हुआ था। बता दें कि, तत्कालीन प्रधानमंत्री जब अटल बिहारी वाजपेयी ने रेल मंत्री नीतीश कुमार के साथ इसका शिलान्यास किया था।
इससे पहले कई बार पुल के निर्माण कार्य के पूरे होने की तारीख रखी गई। लेकिन पुल का निर्माण कार्य पूरा होने की कई तारीखें फेल हुई। अंतत: इस साल 3 दिसंबर को इस पुल पर से पहली मालगाड़ी ट्रेन गुजारी गई। बोगीबील पुल में तीन लेन की सड़क और दो रेलवे ट्रैक की सुविधा है। सूत्रों की मानें, तो इस पुल के निर्माण से अरुणाचल प्रदेश में चीन की लगती सीमा तक पहुंचना बहुत आसान हो जाएगा। इस पुल से सैन्य सामान पहुंचाने में भी सहुलियत होगी।
बता दें कि, भारत और चीन के बीच लगभग चार किलोमीटर की सीमा लगती है। डिब्रूगढ़ और अरुणाचल प्रदेश के बीच की 500 किलोमीटर की दूरी है। लेकिन इस पुल के बन जाने से यह दूरी 100 किलोमीटर कम हो जाएगी। यह पुल पूरी तरह से वेल्डेड है। इस पुल का निर्माण विदेशी अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से किया गया है।
गौरतलब है कि, भारत ने अरुणाचल प्रदेश के सीमाई इलाकों में साजो-सामान पहुंचाने में सुधार की योजना तैयार की है और बोगीबील उन्हीं ढांचागत परियोजनाओं का हिस्सा है। इनमें ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट पर ट्रांस अरुणाचल हाईवे तथा मुख्य नदी और इसकी सहायक नदियों जैसे दिबांग,लोहित,सुबनसीरी और कामेंग पर नई सड़कों तथा रेल लिंक का निर्माण भी शामिल है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि, सामरिक दृष्टिकोण से इस पुल का बड़ा महत्व है। बोगीबील पुल के बन जाने से सेना को काफी मदद मिलेगी। बता दें कि, उत्तर-पूर्व में तैनात जवानों को उचित सड़कों व पुलों की व्यवस्था न होने से तरह-तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ता था। जबकि दूसरी तरफ चीन आए दिन अपनी हरकतें जारी किए रहता है। इसका उदाहरण अभी पिछले साल भारत-चीन के बीच डोकलाम पर हुए तनाव से देखा जा सकता है। लेकिन अब इस पुल के बन जाने से एक ओर जहां आवागमन, व्यापार और देश के अन्य हिस्सों से सामानों को लाना-ले जाना सुलभ होगा तो वहीं दूसरी ओर सेना के जवानों का हौसला भी बढ़ेगा।