राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम 11 दिसंबर को आएंगे लेकिन नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर सचिन पायलट और अशोक गहलोत गुट में खींचतान शुरू हो गई हैं। दोनों गुटों के नेताओं ने इसके लिए बकायदा लॉबिंग शुरू कर दी है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अपने ग्रुप के संभावित विधायकों से संपर्क साध रहे हैं। सात दिसंबर को वोटिंग पूरी होने से पहले ही अशोक गहलोत दिल्ली पहुंचे गए थे। वहीं सचिन पायलट देर रात दिल्ली पहुंचे। विधायक दल की बैठक में कौनसा विधायक किसका समर्थन करेगा इसे लेकर दोनों खेमे सक्रिय हो गए। कुछ संभावित विधायकों ने दोनों नेताओं ने खुद टेलीफोन पर संपर्क किया है।
इस बीच शनिवार को जयपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष और सिविल लाइन विधानसभा से चुनाव लड़ रहे प्रताप सिंह खाचरियावास का एक वीडियो वायरल हो गया। इस वीडियो में गहलोत और पायलट के बीच का विवाद साफ नजर आ रहा है। वायरल हुए वीडियो में खाचरियावास कह रहे हैं, “हमारे नेता राहुल गांधी हैं, वह जो कहेंगे वह फैसला हमें मंजूर होगा। मैंने समाचार पत्रों में पढ़ा कि, गहलोत साहब ने मुख्यमंत्री पद के लिए पांच लोगों के नाम दिए हैं। वह सीनियर लीडर हैं, मैं उनका सम्मान करता हूं लेकिन इस बारे में वह फैसला नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर राहुल गांधी और विधाई समिति फैसला लेगी।“ खाचरियावास खुलकर सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने के पक्ष में हैं। उनका कहना है कि, 5 सालों तक जिस नेता ने संघर्ष किया है, सीएम का पद उसे ही मिलना चाहिए।
बता दें कि, खाचरियावास पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट के काफी करीबी माने जाते हैं। सीएम वसुंधरा के खिलाफ राजस्थान में हुए कई आंदोलनों में वे पायलट के साथ ही खड़े नजर आए हैं। खाचरियावास के इस वीडियो के बाद से गहलोत खेमे में हलचल बढ़ी हुई नजर आ रही है। राजस्थान कांग्रेस में सीएम चेहरे को लेकर अंदर खाने ही रस्साकशी हो रही है। विधायक दल की बैठक में कौन किसका समर्थन करेगा इसे लेकर दोनों गुट सक्रिय हो गए हैं। दोनों के समर्थक अपने-अपने नेता के लिए पिच तैयार करने लगे हैं। वहीं खबरों के अनुसार, दोनों गुट के लोग योग्य निर्दलियों के भी संपर्क में हैं। कांग्रेस के ये दोनों गुट अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए इतने उतावले हैं कि, वे मतगणना का भी इंतजार नहीं करना चाहते। दरअसल, जिन एग्जिट पोल्स के दावों पर कांग्रेस चुनाव जीतने का दम भर रही है, वे विश्वसनीय है ही नहीं।
इन चुवावों में लगभग 10 करोड़ मतदाता वोट देने निकले जबकि एग्जिट पोल्स में 20-30 हजार सैंपल से जनता का रुख तय किया जाता है तो इन्हें कैसे विश्वसनीय माना जाए? दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि, एग्जिट पोल का मतलब चुनाव के बाद किया गया सर्वे यानि इसमें वही मत शामिल किये जाने चाहिए जिन लोगों ने वोट डाले हैं लेकिन अगर चुनाव के पहले के सैंपल को लेके किया गया सर्वे तो ओपिनियन पोल ही कहलायेगा। जबकि ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में जमीन आसमान का अंतर होता लेकिन हमें एग्जिट पोल के नाम पर ओपिनियन पोल का हफ्तों पुराना सैंपल को परोसा जा रहा है। अब जरा सोचिये चुनाव खत्म होने के कुछ मिनटों में एग्जिट पोल दिखाया जा रहा है तो इतनी बड़ी तयारी कुछ मिनटों में कैसे कर ली गयी? क्या ये सैंपल वोटर्स से लिए गए हैं या हफ़्तों पहले के ओपिनियन से लिए गए हैं?
अब आते है इनकी विश्वसनीयता पर, याद कीजिये जनवरी 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के वक्त मीडिया ने यही तरीका आजमाया था क्योंकि वो राजनीतिक दृष्टी से एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रदेश है वहां के चुनाव देश का राजनीतिक समीकरण बदलने का दम रखते हैं। इसीलिए 1 महीने पहले तक मीडिया मायावती की बसपा को 180 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बता रही थी। वहीं चुनाव के पहले तक राहुल-अखिलेश के गठबंधन की सरकार बना रही थी लेकिन नतीजे ऐसे की जिसने सारे ओपिनियन और एग्जिट पोल की हवा निकाल कर रख दी और नतीजे आने पर बीजेपी अकेले 324 सीटों के साथ प्रचंड जनादेश लेकर सरकार बनाती दिखी। कुछ यही हाल 2004 में हुआ था जब अटल बिहारी सरकार वापसी लगभग तय मानी जा रही थी और इसपर मीडिया के एग्जिट पोल ने मुहर भी लगा दी थी और नतीजे एकदम विपरीत हैं।
ऐसे में कांग्रेस का एग्जिट पोल्स पर इतना भरोसा जताना उसकी हड़बड़ाहट ही है। सीएम पद की रेस में लगे सचिन पायलट और अशोक गहलोत को कम से कम 11 दिसंबर तक का इंतजार तो कर ही लेना चाहिए। ऐसा ना हो कि, एग्जिट पोल्स धरे के धरे रह जाएं और राजस्थान में एक बार फिर कमल खिल जाए।