11 दिसंबर, 2018 को राजस्थान विधानसभा चुनावों का नतीजा घोषित किया गया था। इसमें कांग्रेस पार्टी को जनता ने सबसे ज्यादा सीटें दी और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर से सीएम पद पर नियुक्त हुए। बता दें कि, अशोक गहलोत पर 2008 से 2013 तक मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार और अपने चेहतों को लाभ पहुंचाने के आरोप लगे थे। उनके बेटे वैभव का नाम भी उस समय खूब उछला था। अब जब वे सत्ता में हैं, तो ये आरोप एक बार फिर सुर्खियों में बने हुए हैं।
अशोक गहलोत की पिछली सरकार के खिलाफ लगे आरोपों में ओम मेटल्स, ट्राइटन होटल और अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत से जुड़े मामले भी शामिल हैं। गहलोत के पिछले कार्यकाल के दौरान उन कंपनियों में अनियमितताओं और गड़बड़ियों के आरोप सामने आए, जिन कंपनियों में वैभव गहलोत कार्यरत थे।
दरअसल, साल 2006 में ओम मेटल्स कंपनी में वैभव गहलोत कानूनी सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे, इसमें उनका मासिक वेतन सिर्फ 10,000 रुपये था। ओम मेटल्स मुख्य रूप से जल विधुत परियोजनाओं के निर्माण कार्य से संबंधित है। श्याम सिंह राठौड़ द्वारा 2013 में दायर की गई एक शिकायत में आरोप लगाया गया था कि, राजस्थान सरकार द्वारा कालिसिंध नदी पर बांध के निर्माण के लिए निविदा आमंत्रित करने के फैसले को गहलोत सरकार के सत्ता में आने के बाद उलट दिया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि, ओम मेटल्स समूह को लाभ पहुंचाने के लिए निविदा रद्द कर दी गई थी और ओम मेटल्स को अनुबंध देना सुनिश्चित करने के लिए नियमों और शर्तों को बदल दिया गया था। पहले बांध के निर्माण की लागत का अनुमान 267.74 करोड़ रुपये लगाया जा रहा था लेकिन बाद में यही अनुबंध ओम मेटल्स को 457.21 करोड़ रूपये में दिया गया, जो कि पहले तय की गई लागत से लगभग 190 करोड़ रुपये ज्यादा था। हालांकि, सीबीआई अदालत ने 2017 में शिकायतकर्ता द्वारा दायर कथित वित्तीय अनियमितताओं की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद निचली अदालत ने भी शिकायत को खारिज कर दिया था।
कालीसिंध बांध परियोजना के प्रोजेक्ट के दो महीने बाद ओम मेटल्स को एक और प्रोजेक्ट दिया गया। यह जयपुर और भीलवाड़ा के बीच 200 किलोमीटर राजस्थान राजमार्ग का विस्तार था जिसका अनुबंध 250 करोड़ में दिया गया। वहीं बीजेपी ने यह भी आरोप लगाया था कि, ओम मेटल्स ग्रुप की सहायक कंपनी एसपीएमएल इंफ्रा को प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं लागत में वृद्दी करके दी गईं। साथ ही आरोप लगाया गया था कि, कंपनी द्वारा तय समयसीमा में टारगेट पूरा करने में विफल होने के बावजूद जुर्माना बंद हो गया था।
इसके अलावा 2014 में ओम मेटल्स का जयपुर में एक संपत्ती से संबंधित विवाद भी सुर्खियों में रहा था। इस संपत्ती विवाद में वैभव गहलोत का नाम बार-बार उछलता रहा था। पुलिस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि, ओम मेटल्स के निदेशकों के साथ अशोक गहलोत की निकटता और कंपनी में वैभव गहलोत का सहयोग होने से सरकारी अधिकारियों ने ‘दबाव और प्रभाव’ में परियोजना को मंजूरी दी थी।
इसी तरह एक मामला ट्रिटन होटल के साथ जुड़ा हुआ है। 2009 में वैभव गहलोत ने यहां कानूनी सलाहकार के रूप में ज्वाइन किया था। उनके ज्वाइन करने के एक महीने बाद ही राज्य सरकार ने कंपनी को 10 हजार वर्ग भूमी का उपयोग करने की इजाजत दे दी। इसके बाद ट्राइटन होटल के कारोबार में तेजी से वृद्दि हुई थी। वहीं वैभव ने 2008 में सनलाइट टूर्स एंड ट्रेवल्स नाम से एक कंपनी शुरू की थी और 2010 में उन्होंने कंपनी के आधे हिस्से को ट्राइटन होटल के निदेशक रतन कांत शर्मा को बेच दिया था।
स्पष्ट है कि, गहलोत के पुराने कार्यकाल के दौरान, वैभव को बहुत फायदा हुआ। जिस कंपनी में भी वैभव गए उस कंपनी को विशेष रूप से लाभ पहुंचाया गया। अब जब एक बार फिर अशोक गहलोत राज्य में मुख्यमंत्री हैं और सूबे में कांग्रेस की सरकार है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वह संयोग क्या एक बार फिर से दिखाई देगा या इस बार गहलोत सरकार अपनी पिछली गलतियों को नहीं दोहराएगी।