कहा गया है आदर्श की बड़ी-बड़ी बातें करना मात्र पर्याप्त नहीं होता है। उन आदर्शों को चरित्र में उतारना भी जरुरी होता है। ये बातें कई जाने-माने लोगों पर कई बार बिलकुल खरी उतरती हैं। इस बार हम बात करने जा रहे हैं जाने मानें पत्रकार राजदीप सरदेसाई की। एक इंटरव्यू में राजदीप सरदेसाई ने 2001 में देश के सबसे बड़े मंदिर यानी संसद पर हुए हमले की आप बीती बता रहे थे।
इंटरव्यू में राजदीप बता रहे थे कि शुक्रवार का दिन था। संसद में ज्यादा लोग नहीं थे। हमारे कैमरामैन संसद के पास एक पार्क में मौज कर रहे थे। राजदीप ने कहा कि संसद में हम घुसे ही थे कि इसी बीच गोलियों की आवाज सुनाई दी। हमारे कैमरामैन ने कहा सर यहां से चलिए लेकिन हमने कहा, नहीं। हमने अपने कैमरामैन से कहा कि संसद का गेट बंद कर दो। ताकि इस अवसर को केवल हम कवर कर सकें।
आश्चर्य की बात ये है कि ये सब बताते हुए राजदीप सरदेसाई के चेहरे पर बिल्कुल भी खेद नहीं था। जबकि ये दिन देश के लिए काला दिन था। हमारे लिए खुली चुनौती थी। लोकतंत्र के मंदिर पर हुए इस हमले में दिल्ली पुलिस के 6 जवान, संसद के 2 सुरक्षाकर्मी और 1 माली मारा गया था। पूरे देश के लिए ये दिन सहमा देने वाला था लेकिन फिर भी अपनी इस बेहूदी हरकत पर राजदीप बड़े गर्व और खुद को सुपर इंटेलिजेंट दिखाने का भ्रम पाल रखा है। ये सब बताते समय खुशी और हंसी से उनकी आँखों में चमक रही थी।
राजदीप यहीं नहीं रुके। वो आगे बोलते गए। उन्होंने आगे कहा कि हम पत्रकार तो गिद्ध होते हैं। हम ऐसे अवसर को ढुढ़ते रहते हैं। यानी ऐसे अवसर हमारे भोजन होते हैं। ये बताते हुए राजदीप की आखें खुशी से चमक रही थीं। अब ऐसे में राजदीप जी से ये बात कौन कहे कि पत्रकारिता की खुराक के लिए और भी ढेरों अवसर मिलते रहते हैं। एक पत्रकार के जीवन में बहुत अवसर आते हैं। फिर भी आपको देश की सुरक्षा से संबंधित इतने गंभीर मुद्दे और अवसर पर अपनी पत्रकारिता चमकने की सूझी थी! उन्हें कौन बताए कि आप बात-बात पर लोकतंत्र और नागरिकों के अधिकारों का राग अलापते फिरते हैं तो हमें भी अच्छा लगता है लेकिन, उस समय आपको ये याद क्यों नहीं आया कि हमारे संविधान में नागरिकों के कुछ मूल कर्तव्य भी निर्धारित किए हैं। देश हर नागरिक से कुछ अपेक्षाएं रखता है। उन्हीं नागरिक कर्तव्यों में से एक ये भी है कि देश का नागरिक होने के कारण हम देश की सुरक्षा से नहीं खेल सकते। उस समय आपने मात्र टीआरपी बटोरने के लिए ऐसा किया, उससे देश को कितना बड़ा घाव मिल सकता था! उस दिन देश पर कितना बड़ा प्रहार हुआ था, आपको पता है!
शायद नहीं पता है। तभी तो आप इतने विश्वास के साथ बता रहे हैं। खुशी से चहक रहे हैं। आपको खुशी होगी कि उस दिन आपके शो को जबरदस्त टीआरपी मिली होगी। वो दिन आपके पत्रकारिता के चमकने का दिन था। आपने देश की सुरक्षा को दांव पर लगाकर मौके को बखूबी भुना भी लिया। काश आपने कभी अपने नागरिक होने के कर्तव्य को भी निभाने के लिए कुछ किया होता। वास्तव में आपने आज की पत्रकारिता के गिरते स्तर को सामने रखा है।