रमन सिंह की हार छत्तीसगढ़ के लिए बड़ा नुकसान है

छत्तीसगढ़ रमन सिंह

PC: kalingatv

1 नवंबर 2000 को देश के 26वें राज्य के रुप में जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ तो यहां की स्थिति बहुत खराब थी। मध्यप्रदेश से टूट कर अस्तित्व में आया छत्तीसगढ़ कई मामलों में बेहद पिछड़ा था। नए राज्य में पहली बार हुए चुनाव में तो कांग्रेस को बहुमत मिली। कांग्रेस की ओर से अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उनका ये सफर 5 वर्ष पूरा नहीं कर सका। जोगी 3 साल तक ही सीएम रहे। उसके बाद हुए अगले चुनाव में बीजेपी को बहुमत मिला। बीजेपी ने डॉक्टर रमन सिंह को सीएम बनाया। तब से अब तक डॉक्टर रमन सीएम रहे।  

डॉक्टर सिंह लगातार 15 सालों तक सीएम रहने वाले बीजेपी के इकलौते सीएम हैं लेकिन समन सिंह का ये करियर और राह जितना आसान नजर आता है उतना आसान नहीं था। सत्ता संभालते समय रमन सिंह को विरासत में एक ऐसा राज्य मिला था, जो नक्सली आतंक, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भुखमरी जैसे ढेरों चुनौतियों से जूझ रहा था। राज्य में गरीबी इस कदर थी कि राज्य की बड़ी जनसंख्यो दो जून की रोटी तक की व्यवस्था नहीं कर पा रही थी। इन तमाम चुनौतियों के बावजूद डॉक्टर सिंह पीछे हटने या हताश होने वालों में से नहीं थे। उन्होंने सीएम की कुर्सी संभालते के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। रमन सिंह राज्य के विकास में कुछ यूं लग गए मानों वो इन चुनौतियों से लड़ने की कसम खा चुके हों।

राजनीति में जाति धर्म भी बहुत मायने रखता है। कई नेता तो बिना काम किए मात्र अपनी जाति के दमपर ही अपनी राजनीति चमका लेते हैं लेकिन रमन सिंह इस जातिय राजनीति के मामले में बेहद गरीब थे। बता दें कि छ्त्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है, जहां लगभग 45% दलित/एससी/एसटी और 49% ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग है। वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में मात्र 3% सवर्ण हैं। इतने विपरीत जातिय समीकरण के बावजूद राजपूत समाज से आने वाले एक नेता को अगर 15 सालों तक जनता पलकों पर बिठाए है तो आप समझ सकते हैं कि वो नेता कोई आम नेता नहीं होगा।

जमीनी वास्तविकता भी यही है। रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ की जनता के लिए काम भी ऐसा किया है कि जनता उन्हें प्यार-दुलार देती रही है। रमन सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए पीडीपी यानी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन स्कीम शुरू किया। इस योजना के तहत हर गरीब परिवार को 1 रुपये प्रति किलो की दर से चावल मिलने लगे। ये रमन सिंह की इच्छा शक्ति की ही देन थी कि जिस छ्त्तीसगढ़ को साल 2004 में एनसीईआरटी ने नेशनल अचीवमेंट सर्वे में देश के सबसे पिछड़े राज्य में जगह दी थी, इसी सर्वे में मात्र 3 सालों के बाद छ्त्तीसगढ़ ने छलांग लगाते हुए 19वां स्थान हासिल किया।

रमन सिंह यहीं नहीं रुके, उन्होंने छत्तीसगढ़ में गरीबों, दलितों के उत्थान के लिए तमाम जनप्रिय और गरीबी उन्मूलन योजनाएं शुरू किए। राज्य में मुख्यमंत्री तीर्थ योजना के जरिए उन्होंने संतों और तीर्थयात्रियों की समस्याओं को दूर किया तो वहीं दूसरी ओर सरस्वती सायकिल योजना से उन्होंने लड़कियों को साइकिल वितरित करके लड़कियों को पढ़ने-लिखने के लिए प्ररित किया। रमन सिंह की चरण पादुका योजना को भला कौन भुला सकता है। इस योजना के तहत उन्होंने गरीबों और जरूरतमंदों को जूते वितरित किए। यही नहीं, रमन सिंह के समय में छत्तीसगढ़ एससी/एसटी के लिए 20 सूत्रीयों योजना लागू करने वाला पहला राज्य बना। रमन सिंह के विकास का कारवां यही नहीं रुका, छत्तीसगढ़ को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव विकास मॉडल का सबसे बड़ा पुरस्कार मिला।

तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह का विकासरथ बढ़ता ही जा रहा था। उनके शासनकाल में राज्य औद्योगिक क्षेत्र में विकास के हाईवे पर पहुंच गया। देश के दूसरे राज्यों के लोग छ्त्तीसगढ़ में रोजगार ढूंढ़ने आने लगे। जो छत्तीसगढ़ अपने लिए दो जून की रोटी तक की व्यवस्था नहीं कर पा रहा था, वो अब देश को रोजगार देने लगा। छत्तीसगढ़ के स्टील प्लांट, पॉवर प्लांट सब रमन सिंह की ही देन हैं। 2016 में दिए गए एक इंटरव्यू में रमन सिंह ने कहा था, “जब मैंने सत्ता संभाली थी तो राज्य कई समस्याओं से जूझ रहा था। 2003 में राज्य का बजट 7000 करोड़ था जो अब 78000 करोड़ तक पहुंच चुका है।“ रमन सिंह ने भावुक होकर कहा था कि, छत्तीसगढ़ एक समय देश का सबसे पिछड़ा राज्य था लेकिन आज मेरा छत्तीसगढ़ बड़ी-बड़ी कंपनियों और औद्यौगिक कंपनियों को आकर्षित कर रहा है।“ रमन सिंह के शासन में ही छत्तीसगढ़ की नई राजधानी न्यू रायपुर देश की पहली ग्रीनफील्ड सिटी जबकि दुनिया की पहली इंटीग्रेटेड सिटी बनी।

ये तमाम उपलब्धियां हैं जो रमन सिंह की मेहनत के दम पर छत्तीगढ़ को हासिल हुए। अपने इन्हीं कार्यों के दम पर रमन सिंह 15 वर्षों तक लगातार सत्ताविरोधी लहर को मात देकर उस राज्य के मुख्यमंत्री रहे, जहां जातीय समीकरण के मामले में वो दूर-दूर तक नहीं ठहरते थे। ये रमन सिंह की लोकप्रियता की ही देन थी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ की 11 लोगसभा सीटों में से बीजेपी को 10 सीटों पर जीत मिली। ये रमन सिंह की कर्मठता और लोकप्रियता ही थी कि छत्तीसगढ़ की बहुसंख्यक पिछड़े तबके की जनता ने अजीत जोगी को नकारकर सवर्ण राजपूत रमन सिंह को प्यार व दुलार दिया लेकिन दुर्भाग्य से अबकी बार रमन सिंह को जीत नहीं मिली। ऐसे में निराश होने की जरूरत नहीं है। जनता को जल्दी ही अपना नेता खोने का आभास होगा। जनता जल्द ही अपने इस नेता को याद करेगी क्योंकि इस नेता ने 15 वर्षों तक लगातार छ्त्तीसगढ़ को अपने घर की तरह सींचा है। खुद का तपाया था। खुद को समर्पित किया था। हालांकि, हार और जीत का सिलसिला चलता रहता है और इस हार से रमन सिंह जरुर ही हरा के कारणों की समीक्षा करेंगे और अगली बार पूर्ण बहुमत के साथ राज्य में वापसी करेंगे।

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