प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शुक्रवार को रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े तीन लोगों के ठिकानों पर छापे मारे। ईडी ने रक्षा सौदों में कुछ संदिग्धों द्वारा कथित तौर पर कमीशन लिए जाने और विदेशों में अवैध संपत्ति रखने के मामले में ये छानबीन की। एंजेसी की जांच में पहली बार वाड्रा के सहयोगियों का नाम रक्षा सौदों में कथित तौर पर कमीशन लेने से जोड़ा गया है। हर बार की तरह इस बार भी कांग्रेस ने इस छापेमारी को बीजेपी की बदले की कार्रवाई बताया और विरोध प्रदर्शन किया।
ईडी द्वारा यह छापेमारी सुखदेव विहार, नई दिल्ली, बेंगलुरू और नोएडा में वाड्रा के सहयोगियों के यहां की गई। ईडी से जुड़े सूत्रों ने कहा कि, “वाड्रा की कंपनियों के दो कर्मचारियों और एक अन्य व्यक्ति के ठिकानों की छानबीन की गई। इन लोगों ने संदिग्ध तौर पर रक्षा सौदों से कमीशन प्राप्त किये और उस राशि का इस्तेमाल विदेशों में अवैध संपत्तियों की खरीद में किया।” न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, शनिवार सुबह कांग्रेस नेता जगदीश शर्मा के यहां भी जांच एजेंसियां छापेमारी के लिए पहुंची। छापे में, कई दस्तावेजों को जब्त किया गया है और शर्मा को ईडी द्वारा पूछताछ के लिए अपने साथ भी ले जाया गया। रॉबर्ट वाड्रा ने इस छापे को राजनीतिक षड़यंत्र करार दिया। लेकिन यहां सवाल यह है कि, अगर सबकुछ ठीक है तो वाड्रा और कांग्रेस पार्टी इतनी डरी हुई क्यों हैं।
इस छापे से आहत कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “मोदी सरकार के दिन अब पूरे हो गए हैं, पर निरंकुश बादशाह पर बादशाहत ऐसी चढ़ी है कि, नियम-कानून-संविधान सब पांव तले रौंद रहे हैं। वो अपनी तय हार से लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं, इसलिए इस मंत्र पर चल रहे हैं, रेड करवाओ और बीजेपी की हार से ध्यान भटकाओ।”
आई-टी विभाग द्वारा 2016 में रक्षा डीलर संजय भंडारी और उनके सहयोगियों के यहां छानबीन की गई थी। इस छापे से रक्षा सौदों से संबंधित कुछ संवेदनशील दस्तावेजों का पता लगा था। इन जांचों से विभाग को वाड्रा के सहयोगियों और संजय के सचिव के बीच ईमेल एक्सचेंज होने के बारे में पता लगा था। हालांकि, वाड्रा और उनके वकील ने संजय भंडारी के साथ किसी भी संबंध से इंकार कर दिया है। लेकिन तथ्यों पर बात करें तो कहानी कुछ और ही है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, संजय भंडारी ने यूपीए सरकार के दौरान हथियार सौदों को नौकरशाहों के माध्यम से बुरी तरह प्रभावित किया था। भंडारी की कंपनी ओआईएस का एक बुरा ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। ओआईएस वर्चुअल रूप से 2017 में बंद हो गया और भंडारी फरवरी 2017 में जांच शुरू होने के बावजूद लंदन चले गए। वास्तव में तो मई 2016 में ही भंडारी के खिलाप गंभीर आरोप सामने आ गए थे। गांधी परिवार और कांग्रेस ओआईएस के बुरे ट्रैक रिकॉर्ड के बावजूद उससे इतना महत्वपूर्ण सौदा करने के लिए कैसे तैयार थी, यह हर किसी को चौंकाता है। दरअसल, इसकी एकमात्र वजह यही है कि, ओआईएस ने ‘गांधी परिवार’ के दामाद के साथ निकटता साझा की थी।
गौरतलब है कि, बीकानेर में भूमि सौदों से संबंधित मनी-लॉंडरिंग के मामले में ईडी द्वारा पहले ही वाड्रा पर शिकंजा कसा हुआ है। इस मामले में उन्हें तीन बार समन जारी हो चुका है लेकिन उन्होंने पिछले दो नोटिसों पर खुद जाने के बजाय अपने प्रतिनिधियों को भेज दिया। यह स्पष्ट है कि, यूपीए सरकार में रॉबर्ट वाड्रा को कभी भी कोई डर नहीं था। कांग्रेस सरकार के समय ऐसी किसी भी जांच के बारे में सोचने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी,
पिछले हफ्ते से ईडी ने रॉबर्ट वाड्रा के संदेहास्पद वित्तीय लेन-देन पर नकेल कसी है और ये छापे यूपीए कार्यकाल में हुए घोटालों के रहस्यों को उजागर करने का काम करेंगे । घोटालों के आरोपों में सरकार के हालिया अभियान में रॉबर्ट वाड्रा, क्रिश्चियन मिशेल, पी चिदंबरम, यहां तक कि नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया और राहुल गांधी के नाम सामने आना इस बात का संकेत दे रहे हैं कि सरकार किसी भी अपराधी को नहीं बक्शना चाहती।