सोहराबुद्दीन मामले में विशेष सीबीआई अदालत के फैसले ने एक बार फिर से कांग्रेस की बदले की राजनीति का खुलासा किया है। इस मामले में देश की सबसे पुरानी पार्टी ने बदले की राजनीति में मुख्य दोषियों को दरकिनार कर नेताओं को फंसाने का षड्यंत्र रचा था। 21 दिसंबर को सीबीआई की विशेष अदालत ने 350 पृष्ठों वाले फैसले में केंद्रीय जांच एजेंसी पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत का कहना है कि मुठभेड़ की जांच पहले से ही सोचे समझे गए एक सिद्धांत के साथ कई राजनीतिक नेताओं को फंसाने के मकसद से की गई थी। विशेष सीबीआई न्यायाधीश एसजे शर्मा ने 21 दिसंबर को मामले में 22 आरोपियों को बरी करते हुए 350 पृष्ठों वाले फैसले में ये टिप्पणी की। इस दौरान अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया और तीन मौतों पर दुःख भी जताया।
सीबीआई की विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा, “ये साफ तौर पर जाहिर होता है कि सीबीआई सच्चाई का पता लगाने की बजाय पहले से सोचे समझे गए एक खास और पूर्व निर्धारित सिद्धांत को स्थापित करने के लिए कहीं अधिक व्याकुल थी।“ इससे साबित होता है सीबीआई ने जो भी जांच की उसमें दोषियों से ज्यादा नेताओं को फंसाने के मकसद से की थी। इसका मतलब साफ़ है जांच राजनीति से प्रेरित थी और बीजेपी अध्यक्ष अध्यक्ष अमित शाह की छवि को खराब करने के लिए कांग्रेस ने ये चाल चली थी।
सीबीआई की विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा, “मेरे समक्ष पेश किए गए तमाम सबूतों और गवाहों के बयानों पर करीब से विचार करते हुए मुझे ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि सीबीआई जैसी एक शीर्ष जांच एजेंसी के पास एक पूर्व निर्धारित सिद्धांत और पटकथा थी, जिसका उद्देश्य राजनीतिक नेताओं को फंसाना था।” ये शर्मनाक है कि नेताओं को फंसाने के लिए सीबीआई ने साक्ष्य गढ़े और आरोप पत्र में गवाहों के बयान के साथ छेड़छाड़ भी किये। फैसले में ये भी कहा गया है कि, “इस तरह सीबीआई ने उन पुलिसकर्मियों को फंसाया, जिन्हें किसी साजिश के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।“
गौरतलब है कि सोहराबुद्दीन का एनकाउंटर यूपीए सरकार के समय में हुआ था। TADA कोर्ट में सोहराबुद्दीन को दोषी ठहराया गया था। उसके यहां 80 एके 47 और सैकड़ों हैंड ग्रेनेड मिलने की पुष्टि भी हुई थी। इनका इस्तेमाल सुरक्षा बलों के खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना थी। ये सभी प्रतिबंधित और घातक हथियार मध्यप्रदेश में स्थित उसके एक फर्म में पाए गए थे। उस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी।
सोहराबुद्दीन के कथित फर्जी एनकाउंटर मामले में अवसरवादी कांग्रेस पार्टी ने प्रतिशोध की राजनीति शुरु कर दी। मामला कोर्ट में गया। कोर्ट में कांग्रेस ने इस मुद्दे को ये कहकर मोड़ दिया कि ये एक फेक एनकाउंटर है। कांग्रेस ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की। इस मामले की नए सिरे से सीबीआई जांच कराई गई। मामले में जांच कांग्रेस के इशारे पर की गई थी। इस जांच में सीबीआई के सहारे भाजपा नेताओं को टारगेट किया गया। वास्तव में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर असली या नकली इसकी जांच करने से ज्यादा सीबीआई इस मामले का लिंक गुजरात से जोड़ने में व्यस्त थी। मतलब ये कि सीबीआई ने बिना जांच के ही इसे फर्जी एनकाउंटर मान लिया था। जब इस मामले की जांच पूरी हुई तो अमित शाह को दोषी ठहराया गया। उस समय अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे। फिर अमित शाह को गिरफ्तार किया गया लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने शाह को रिहा कर दिया जिससे कांग्रेस के किये कराए पर पानी फिर गया।
अमित शह पर जितने भी आरोप लगाये गये थे उसके सबूत नहीं थे जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था। जब इस मामले के रिकार्ड्स और दस्तावेजों को खंगाला गया तो पाया गया कि अमित शाह को फंसाने की साजिश सीबीआई के दो अधिकारियों ने ही रची थी और ये दो अधिकारी हैं संदीप तामगड़े और अमिताभ ठाकुर। इन्हीं दोनों अधिकारियों ने अमित शाह पर लगे आरोपों की जांच की कमान संभाली थी। इस मामले के मुख्य जांच अधिकारी संदीप तमगड़े ने अपने एक बयान में सीबीआई अदालत से कहा था कि सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह और तीन अन्य आईपीएस अधिकारियों के हाथ होने की संभावना है। पर जांच अधिकारी संदीप तमगड़े के पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं था जो ये साबित करे कि इस मामले में अमित शाह का हाथ था। वास्तव में ये दोनों अधिकारी अमित शाह को किसी न किसी बहाने मामले में घसीटने की कोशिश कर रहे थे। पहले भी माननीय न्यायालय ने भी खुले शब्दों में इस मामले को राजनीति से प्रेरित बताया था। अब हाल के कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर से इस मामले में सीबीआई की किरकिरी कर दी है। वास्तव में राजनीतिक खुन्नस के चलते किसी व्यक्ति विशेष को मामले में घसीटा गया। इन्हीं दोनों अधिकारियों के दावों पर कांग्रेस ने खूब हल्ला मचाया।
अमित शाह पर लगे आरोपों को अलग-अलग अदालतें पहले ही खारिज कर चुकी हैं। उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं पाए गए। अब जबकि 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक है तो कांग्रेस इस मामले को फिर से हवा देने की कोशिश की रही है। हालांकि, सीबीआई की विशेष अदालत ने कांग्रेस की इस प्रतिशोध की राजनीति पर अपने फैसले से विराम लगा दिया है। इसके साथ ही ये भी साबित हो गया है कि कांग्रेस सीबीआई के मामलों में अपने शासनकाल में दखल देती थी और अब जब मोदी सरकार है तो अपने किये के आरोप वर्तमान सरकार पर मढ़ रही है।