चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस कर्जमाफी की घोषणा करना शुरू कर देती हैं। किसानों को लुभाकर वोट लेने के लिए पार्टियां कई तरह के लुभावने वादे करने लगती हैं और कांग्रेस इसमें सबसे आगे रहती है। कई बार कर्जमाफी का लालच देने का उन्हें फायदा भी मिला है। जैसा कि अभी हाल ही में कांग्रेस ने तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता हथियाने में कामयाबी पाई है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि जब से बीजेपी की सरकार आई है, किसानों की स्थिति में सुधार हुए हैं।
दरअसल, अगर ध्यान से देखें तो हम पाते है कि चुनावों से पहले कांग्रेस किसानों को भड़काती है। उनके सामने गलत आंकड़े पेश करके उन्हें भ्रमित करती है कि देश में किसानों की बहुत दयनीय स्थिति है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उसके बाद चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं द्वारा किसानों को उकसाकर आंदोलन करवाती है। फिर चुनाव में कर्जमाफी करने का वादा करके खुद को किसानों की शुभचिंतक और किसानों की हितैषी कहती है।
हालांकि, अगर हम किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों की बात करें तो पाते हैं कि बीजेपी की सरकार में ये स्थिति बिल्कुल उलट है। दरअसल, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से साल 20016 के आसपास तक किसानों की आत्महत्या में तेजी से गिरावट आई है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट की मानें तो पिछले कुछ वर्षों में किसानों द्वारा आत्महत्या करने के प्रयासों में तेजी से कमी आई है। रिपोर्ट में साफ-साफ दर्शाया गया है कि 2016 में किसानों द्वारा किए गए आत्महत्या की संख्या पिछले 16 सालों में सबसे कम है। रिपोर्ट में यहां तक कहा है कि इन वर्षों में किसानों द्वारा आत्महत्या करने की संख्या घटकर महिलाओं द्वारा पारिवारिक विवादों के चलते आत्महत्या करने की संख्या से भी आधी हो गई है। इसके बावजूद लेफ्ट मीडिया और कांग्रेस समेत विपक्षी दल किसानों की स्थिति दयनीय बता-बताकर देश में किसानों के मुद्दे पर राजनीति करते आ रहे हैं। वो देश में ऐसी अफवाह फैला रहे हैं कि बीजेपी के शासन में किसानों का बहुत बुरा हाल है।
हालांकि, वास्तविकता कुछ और है। अगर हम आंकड़ों की मानें तो किसानों के आत्महत्या के पीछे का कारण गरीबी नहीं है। एक सर्वे में पता चलता कि महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश जैसे संपन्न राज्यों से कहीं कम किसान उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में आत्महत्या किए हैं। ये आंकड़ा बताता है कि किसानों की आत्महत्या पिछले वर्षों में घटी तो है ही, इसके अलावा जिन किसानों ने आत्महत्या की है उनके इस कदम के पीछे का कारण गरीबी नहीं बल्कि दूसरे कारण रहे हैं। महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले किसानों की बात करें तो वहां 10 में से 6 किसानों के पास 4 एकड़ से भी अधिक जमीन है। ऐसे में ये कहना कि भारत में किसान सूखे की मार से या फसल खराब होने से परेशान है इसलिए आत्महत्या कर रहे हैं तो ये सच नहीं है। रिपोर्ट की मानें तो आज के समय में सरकार द्वारा लाये गये कई योजना, सब्सिडी आदि से किसान पहले से ज्यादा बेहतर स्थिति में है और इन योजनाओं से उन्हें काफी सहारा मिल रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में, गांवों में बिक्री की मात्रा और मूल्य दोनों शहरी बिक्री की तुलना में काफी तेजी से बढ़ी हैं और खपत वृद्धि वर्तमान में 9.7 प्रतिशत के साथ मजबूत स्थिति में है।
ये आंकड़े साफ बताते हैं कि किसानों की स्थिति में पिछली सरकारों की तुलना में तेजी से सुधार हुए हैं। मोदी सरकार में किसानों द्वारा आत्महत्या के लिए उठाए गए कदमो में तेजी से कमी तो आई ही है, इसके अलावा किसानों की स्थिति में तेजी से सुधार भी हुए हैं।