कांग्रेस के आते ही राजस्थान और मध्यप्रदेश में यूरिया संकट से त्रस्त हुए किसान

यूरिया खाद मुरैना किसान

PC: Dainik Bhaskar

चुनाव से पहले सभी पार्टियां किसानों की हितैषी बनती हैं। किसानों के लिए बड़े-बड़े वादे करती हैं लेकिन चुनाव बीतने के बाद किसान फिर किसी न किसी परेशानी से जूझता हुआ नजर आता है। ऐसी ही स्थिति इस समय राजस्थान और मध्यप्रदेश में बन गई है। चुनाव से पहले जो कांग्रेस बढ़-चढ़कर किसानों का मुद्दा उठा रही थी, उसी की सरकार में अब किसानों को यूरिया नहीं मिल पा रहा है। रबी की फसल की बुआई का सीजन होने के कारण किसान हलाकान हैं। यहां तक कि, यूरिया संकट से जूझ रही कई जगहों पर तो किसानों को पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ रही हैं।

दरअसल, यह रबी की फसल की बुआई का समय किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस समय किसान गेहूं, आलू, चना, मटर, सरसों जैसी तमाम फसलों की बुआई करते हैं। ये फसलें ही ज्यादातर किसानों की आय का मुख्य श्रोत भी होती हैं, जिससे वो साल भर अपना जीवकोपार्जन करते हैं। इन फसलों के उत्पादन के लिए यूरिया खाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसी स्थिति में यह खाद न मिलने से पूरी खेती चौपट होने का खतरा बना रहता है।

मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों राज्यों में किसान यूरिया केन्द्रों पर कतारों में दिनभर खड़े रहकर खाद मिलने की बाट जोह रहे हैं। उसके बाद भी उन्हें “खाद की कमी है”, “खाद खत्म हो गई” यह कहकर लौटाया जा रहा है। यूरिया खाद की किल्लत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, मध्य प्रदेश के विदिशा में यूरिया वितरण केंद्रों पर किसान तीन-तीन दिन तक कतार में खड़े रह रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद यूरिया खाद की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने से उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ रहा है। एक किसान ने बताया, “हमें हलाकान तो तब होना पड़ता है, जब घंटों इंतजार कराने के ‘बाद’ हमें बताया जाता है कि यूरिया खत्म हो गया। आप लोग जाइए।” किसानों का कहना है कि उन्हें उनकी जरूरत का केवल 10 % खाद ही मिल पा रहा है। आक्रोशित किसानों ने कहा “इन दिनों हमें यूरिया खाद के लिए रात दिन दुकानों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, फिर भी यूरिया नहीं मिल पा रहा है। चुनाव होते ही किसान हाशिए पर आ गए हैं।” इस संकट से त्रस्त दोनों राज्यों के किसान विद्रोह पर उतर आए हैं।

राजस्थान ओर मध्यप्रदेश में कई जगहों पर किसानों पर पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करने की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि मध्यप्रदेश में लगभग एक दर्जन जिलों के कलेक्टरों ने पत्र लिखकर सरकार को बताया है कि, अगर जल्द ही यूरिया की व्यवस्था नहीं कराई गई तो कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है।

वहीं प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि, “मध्य प्रदेश में रबी के सीजन में यूरिया की कमी को लेकर जिस तरह हाहाकार मचा है, उसके लिए केंद्र सरकार दोषी नहीं है, न ही केंद्र सरकार ने मप्र का कोटा घटाया है। केंद्र के आईएफएमएस नाम के पोर्टल पर रोजाना की खपत और स्टॉक की जानकारी अपलोड करना होता है। मप्र ने इसे अपडेट ही नहीं किया, जिसके चलते केंद्र सरकार ने यूरिया सप्लाई नहीं किया।”

अधिकारियों ने बताया कि, दिसंबर के महीने में 4 लाख टन यूरिया की मध्यप्रदेश को डिमांड थी, लेकिन सिर्फ सवा लाख टन ही भेजा गया है। इसके कारण रायसेन समेत कई जगहों पर तीन दिनों से किसानों का प्रदर्शन और चक्काजाम जारी है। विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए पुलिस ने कई जगहों पर किसानों पर बल प्रयोग किया है।

राजस्थान में भी यूरिया संकट की स्थिति कुछ ऐसी ही है। अधिकारियों ने बताया कि, राजस्थान में 6 दिसंबर को यूरिया की अंतिम रैक आई थी। उसके बाद से सीएफसीएल यानी ‘चंबल फर्टिलाइजर्स केमिकल्स लिमिटेड’ से कम मात्रा में यूरिया सप्लाई हो रहा था। इसी वजह से यूरिया की किल्लत हो गई है। किसानों की मानें तो बारां और बूंदी जिलों में हालत बेहद खराब हो गए हैं। आंकड़ों के अनुसार अभी तक मात्र 1 लाख, 39 हजार मीट्रिक टन यूरिया आया है।

राजस्थान में अफसरों का कहना है कि, “पोर्टल पर वही स्टॉक एंट्री अपडेट होती है जो पीओएस मशीन द्वारा की जाती है। हम बिना पीओएस के खाद बेच रहे हैं इसलिए केंद्र सरकार के पास स्टॉक की सही जानकारी नहीं है। मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा दिल्ली में केंद्रीय उर्वरक मंत्री से बातचीत के बाद जल्द ही प्रदेश को 12 रैक यूरिया मिलने की उम्मीद है।” ये सारी स्थितियां बताती हैं कि दोनों राज्यों ने केन्द्र को सही और पूरी जानकारी नहीं पहुंचाई जिसके चलते राज्य के किसानों को इतनी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

बता दें कि, ये वही परेशान किसान हैं, जिनकी समस्याओं पर मौजूदा विपक्ष को घेरकर कांग्रेस सत्ता पर सवार हुई है। अब ऐसे में सवाल उठने स्वभाविक हैं कि, क्या कांग्रेस के पास केवल समस्याओं और कमियों को गिनाने का हुनर मात्र है या उसके पास कुछ नए ‘फ्यूचर विजन’ भी हैं। केवल समस्याएं गिनाकर सत्ता पाना बड़ी बात नहीं है। वो तो हर पार्टी कर लेगी। खुद के पास भी परिस्थितियों से निपटने के कुछ विजन, प्लान और जज्बे होने चाहिए जो फिलहाल अभी तक कांग्रेस में नहीं दिखे हैं।

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