कहां चूक हो गयी? ऐसा क्या हुआ कि पासा ही पलट गया और जीत की जगह भारतीय जनता पार्टी को हिंदी बेल्ट में हार का सामना करना पड़ा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनावी नतीजों ने बीजेपी समर्थकों को काफी निराश किया। बीजेपी के लिए 11 दिसंबर का दिन नतीजों के लिहाज से काफी बेकार रहा। साल 2014 से लेकर आज तक में ये बीजेपी के इकोसिस्टम के लिए एक बड़ा झटका है।
दुर्भाग्य की बात तो ये है कि इन चुनावों में हार का विश्लेष्ण करना काफी कठिन हो रहा है। सुबह से शुरू हुई मतगणना शाम तक चलती रही कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस आगे पीछे हो रही थी। टक्कर के इस मुकाबले में मुख्यधारा की मीडिया में भी ससपेंस बना रहा कि आखिर किस पार्टी का पलड़ा भारी है। अंततः शाम तक आंकड़े साफ़ हो गये। राजस्थान में कांग्रेस जीती और मध्य प्रदेश में बहुमत के अंकों से कुछ कदम दूर रह गयी। हालांकि, दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी मजबूत विपक्ष बनकर उभरी है।
तेलंगाना की बात करें तो यहां चंद्रशेखर राव का दबदबा बना रहा। नतीजों में टीआरएस ने 88 सीट पर जीत दर्ज कर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया और केसीआर गुरुवार को एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ लेंगे। काफी संघर्ष के बाद तेलंगाना अलग राज्य बना तब वो वो इस राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। पिछले चार सालों से वो यहां विकास के कार्यों में जुटे हैं। इस बार चुनाव में मिली बंपर जीत से ये साफ होता है कि जनता केसीआर के नेतृत्व से काफी खुश है। शायद केसीआर इस तथ्य से वाकिफ थे तभी तो उन्होंने टीडीपी और कांग्रेस के गठबंधन को उतना महत्व नहीं दिया बस अपने कार्यों पर भरोसा किया। टीडीपी को इस चुनाव में मिली हार से ये भी स्पष्ट हो गया कि कोई क्षेत्रीय पार्टी एक से ज्यादा राज्य में अपना दबदबा नहीं बना पाती है।
मिजोरम की बात करें तो ये पूर्वोत्तर में इकलौता ऐसा राज्य था, जहां कांग्रेस की सरकार थी लेकिन अब पूर्वोत्तर ने कांग्रेस को एकदम से उखाड़ फेंका है। कांग्रेस को मिजोरम में भी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। जबकि पहली बार मिजोरम के सियासी इतिहास में पहली बार बीजेपी का खाता खुला है। आखिरकार पूर्वोत्तर कांग्रेस मुक्त बन गया है। साल 2013 में मिजोरम विधानसभा चुनाव में 34 विधानसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस को इस बार सिर्फ 6 सीटें ही मिली हैं।
नतीजों को दखें मध्य प्रदेश और राजस्थान बीजेपी के लिए सबसे झटका नहीं था बल्कि जहां भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ा झटका लगा वो था छत्तीसगढ़ राज्य। राजस्थान में सत्ता विरोधी लाहर है और भारतीय जनता पार्टी को कम सीटें मिलेंगी और मध्य प्रदेश के चुनावी नतीजों को लकर थोड़ा ससपेंस जरुर था लेकिन किसी ने भी छत्तीसगढ़ में बीजेपी की इतनी बड़ी हार की उम्मीद नहीं की थी। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की लोकप्रियता सबसे ऊपर रही है। यहां तक कि कांग्रेस के स्थानीय नेता भी उनकी लोकप्रियता के आगे कहीं नजर नहीं आते हैं। चावल वाले बाबा के नाम से मशहूर रमन सिंह का ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रियता का पैमाना सबसे ऊपर रहा है। यहां तक कि विपक्ष भी उनका लोहा मानता है फिर भी प्रचार में कमी कहां रह गयी? इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल है। जमीनी स्तर पर सत्ता विरोधी लहर थी लेकिन न ही मुख्यधारा मीडिया और ही बीजेपी को इस बात की भनक लगी। यहां तक कि कांग्रेस को भी उम्मीद नहीं थी कि उसे छत्तीसगढ़ में इतनी बड़ी जीत मिलेगी। वास्तव में बीजेपी राज्य में सत्ता विरोधी लहर को बहनाप ही नहीं पायी और न ही जनता की नब्ज पकड़ पायी नतीजा ये हुआ बीजेपी को राज्य में हार का सामना करना पड़ा।
इन पांचों राज्य में मध्य प्रदेश के नतीजों ने पल पल सभी की धड़कने बढ़ाने का काम किया। कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी आगे ये खेल शाम तक चलता रहा। सबसे ज्यादा वक्त मध्य प्रदेश के मतगणना में ही लगे। हालांकि, मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी की लहर से ज्यादा स्थानीय नेताओं के प्रति जनता की बेरुखी के कारण हार मिली। फिर भी राज्य में सालों से सत्ता में रहे शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में बीजेपी के वोट शेयर कांग्रेस से ज्यादा रहे।
राजस्था एक ऐसा राज्य हैं जहां हर पांच साल पर सरकार बदलती रही है। यहां वसुंधरा के नेतृत्व से पार्टी के नेताओं में नाराजगी थी और जनता से कम जुड़ाव भी वसुंधरा की हार की वजह बना। पार्टी भी इस बात को जानती थी कि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी को कम सीटें मिलेंगी। जैसे जैसे रुझान आने लगे बीजेपी ने जबरदस्त वापसी की और कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी। यही नहीं भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सीटें भी मिली। यही नहीं राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की हार के पीछे बागी नेताओं की नाराजगी भी बड़ी वजह है।
इससे बीजेपी को क्या सीख लेनी चाहिए?
छत्तीसगढ़ को छोड़ को छोड़ दें तो बीजेपी की हालत मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगभग एक जैसी थी। जिससे भारतीय जनता पार्टी को सीख लेनी चाहिए।
सबसे बड़ी सीख ये है कि पार्टी के मतदाता आधार को हलके लेने की गलती न करें। केंद्र की मोदी सरकार और इन तीनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने विकास के कई कार्य किये ऐसे में विकास का मुद्दा हार की बड़ी वजह नहीं हो सकता है जिससे बीजेपी के मतदाताओं ने पार्टी से दूरी बनाई। हां, राम मंदिर के लिए अध्यादेश हो सकता है। राम मंदिर निर्माण के प्रति बीजेपी के ढुलमुल रवैये से पार्टी को नुकसान हुआ। जिस तरह से कांग्रेस ने नर्म हिंदुत्व का कार्ड खेला बीजेपी विकास का कार्ड खेल रही थी लेकिन वो ये बाजी हार गयी। इस पार्टी के नेता मानते हैं कि एलपीजी कनेक्शन, घर, और बिजली बांटने व नक्सलियों का सफाया आदी कर देने से ही वो चुनावों में बढ़त पा लेगी। किंतु इस पार्टी के समर्थक कांग्रेस समर्थकों की तरह अंध भक्त नहीं हैं। वो चाहते हैं कि, उनकी पार्टी राम मंदिर, कश्मीरी पंडितों, अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए के लिए भी ठोस कदम उठाए। बीजपी समर्थको लग रहा है कि, हिंदुत्व के मुद्दे पर उनकी पार्टी नर्म पड़ रही है। उनके मन में सवाल है कि, लोकसभा में बीजेपी को बहुमत है और राज्यसभा में भी यह सबसे बड़ी पार्टी है, फिर भी राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश नहीं ला रही रो इसी के गुस्से में बीजेपी के मतदाताओं ने अधिकतर नोटा का बटन दबाया।
वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान ही एक बेहतरीन प्रशासक हैं। वसुंधरा को ‘महारानी सीएम’ तो शिवराज को सवर्ण विरोधी और किसान विरोधी के रूप में चित्रित किया गया। जबकि तथ्य ये है कि भारत की राजनीति में शिवराज ने जितना किसानों के लिए किया है उतना शायद ही किसी राजनेता ने किया होगा। मंदसौर में बीजेपी की जीत इसी का उदाहरण हैं जहां पिछले साल जून में किसान आंदोलन ने मध्य प्रदेश में शिवराज को किसान विरोधी के रूप में पेश किया गया था लेकिन नतीजे बिलकुल विपरीत रहे। यहां भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई। कमल नाथ के तुष्टिकरण वाले वीडियो के सामने आने के बाद बीजेपी को लगा अब कांग्रेस के हाथ से बाजी निकल गयी है लेकिन यहां स्थिति का मुल्यांकन ही उल्टा पड़ गया।
एक और बात सभी को ये लग रहा था कि राहुल गांधी बीजेपी के लिए शीर्ष प्रचारक का काम करेंगे लेकिन लगता है जनता ने इस विचार की भी ऐसी की तैसी करने में जरा भी वक्त नहीं लगाया। बीजेपी ने भी इसे बड़ी गंभीरता से लिया। मुख्य धरा की मीडिया और अन्य राजनीतिक विश्लेषकों ने मां लिया कि यूपी के सीएम योगी, पीएम मोदी को ही स्टार प्रचारक और पार्टी की जीत के लिए ट्रम्प कार्ड बताया और कहा कि इससे बीजेपी को फायदा होगा। हालांकि, बीजेपी ने प्रचार के अलावा सत्ता विरोधी लहर को सही तरीके से नहीं मापा और नतीजा पक्ष में नहीं रहा।
क्या कभी देश कांग्रेस मुक्त बनेगा ?
सबसे बड़ी बात यदि कांग्रेस मुक्त भारत बनाना है तो कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास से कुछ सीख लेनी चाहिए जिसने सालों देश पर शासन किया। वो भारत की राजनीति में सबसे बड़ी खिलाड़ी रही है। यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि वो किस तरह से अपने विपक्षी को आंकती है और निशाना बनाती है। हालांकि, बीजेपी ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से देश की सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत की है लेकिन कहीं तो कुछ कमी जरुर है जिससे दूर करने की जरूरत है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार को पद्म विभूषण क्यों दिया गया? हमारे देश की सेना जब आतंकियों से लड़ रही थी तो एनडीटीवी पर लगाया गया एक दिन का प्रतिबंध क्यों हटाया गया? यूपीए के शासनकाल में हुए घोटालों के लिए अब तक बड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? इस तरह की लापरवाई की राजनीति में कोई जगह नहीं है क्योंकि यहां कब कौनसा मुद्दा हावी पड़ जाये और बाजी पलट जाए कोई नहीं जानता।
इन विधानसभा चुनावों से भले ही कांग्रेस को संजीवनी मिल गयी हो और अस्तित्व पर खतरा कुछ देर के लिए तल गया हो लेकिन पीएम मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना अभी टूटा नहीं है। जिस तरह से मोदी शाह की जोड़ी ने पूर्वोत्तर राज्यों से कांग्रेस का सफाया किया है जल्द ही भारत के अन्य राज्यों से भी कांग्रेस का सफाया जरुर होगा। देश की सबसे पुरानी पार्टी पहले से ओडिशा और उत्तर प्रदेश राज्य से साफ़ हो चुकी है। इसमें कोई शक नहीं है कि इन तीनों ही राज्यों में बीजेपी को हार से बड़ा झटका लगा है लेकिन अभी भी बीजेपी अपने सफल रणनीतियों से भविष्य में जरुर इस हार को जीत में बदल देगी।
इसका 2019 के आम चुनाव पर क्या असर होगा?
साल 2019 के आम चुनाव में विधान सभा चुनाव का असर तो होगा ही लेकिन ये कहना गलत होगा कि बीजेपी हार जाएगी। हां इस जीत से कांग्रेस का थोडा आत्मविशवास जरुर बढ़ा है और बीजेपी को एक सीख मिली है। सबसे बड़ी बात इससे महागठबंधन पर क्या असर पड़ेगा। हालांकि, तेलंगाना में ये फ्लॉप साबित हुआ। फिर भी बीजेपी एक बार फिर से कोई भी लापरवाही नहीं बरत सकती है। उसे जमीनी स्तर पर अपनी तैयारी को और मजबूत करना होगा सतह ही तीनों ही राज्य में प्रदेश की इकाइयों को और मजबूत करना होगा। हार की समीक्षा करनी होगी। कहां कमी रह गयी और क्या गलतियां हुईं उसमें सुधार करना होगा। ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस तरह की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा और एक बार फिर से वो जबरदस्त मजबूती के साथ सत्ता में फिर से लौटेगी।