मोदी सरकार द्वारा गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में 10 प्रतिशत आरक्षण वाला 124वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी बहुमत से पास हो गया। एक ओर जहां लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 326 में से 323 वोट पड़े थे तो वहीं कल यानी बुधवार को राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 172 में से 165 वोट पड़े। बता दें कि वर्तमान में लोकसभा में कुल 543 जबकि राज्यसभा में 245 सदस्य हैं। इस तरह से ये बिल अब संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया। अब इस बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही ये संविधान का रुप ले लेगा। इसके बाद विधि मंत्रालय इस नये संविधान के लिए नोटीफिकेशन जारी करेगा।
ये विधेयक जितनी आसानी से पारित हो गया, इसका रास्ता उतना आसान नहीं था। विपक्षी दलों ने इस बिल को रोकने की तमाम कोशिशें की लेकिन लोकसभा चुनाव नजदीक देखते हुए उनकी एक भी तरकीब काम नहीं आई। लोकसभा चुनाव नजदीक देखते हुए विपक्षी दल नहीं चाहते थे कि वो सवर्णों को नाराज करें। जिसके चलते विपक्षी दलों ने सदन में बिल के समर्थन में खूब हंगामा किया लेकिन वोट देते समय ना नहीं कर पाए।
बिल के विरोध में गुजरात के कांग्रेस नेता जिग्नेश मेवाणी ने कहा कि संविधान संशोधन करवाकर बीजेपी और आरएसएस आने वाले समय में एससी/एसटी आरक्षण को खत्म करवाकर केवल आर्थिक आधार रखेगी। जिग्नेश मेवाणी ने ट्विट किया कि, “RSS के लोगों से बात हुई है, भाजपा 10% ग़रीबों को आरक्षण क्यों दे रही है? पता चला वो बेहद ख़तरनाक है। RSS जाति आरक्षण के हमेशा से ख़िलाफ़ रही है। अभी पहले चरण में संविधान संशोधन करके आर्थिक आधार शुरू करेंगे। फिर SC, ST और OBC का सारा आरक्षण ख़त्म करके केवल आर्थिक आधार रखेंगे”। जिग्नेश मेवाणी के इस ट्विट को अरविंद केजरीवाल ने भी समर्थन करते हुए री-ट्वीट किया। जो ये बताता है कि ये सबके सब इस बिल के विरोध में थे लेकिन चुनाव नजदीक देखते हुए उनसे विरोध करना उचित नहीं समझा। वहीं दूसरी ओर सपा के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव ने मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए।
कांग्रेस ने तो यहां तक कहा कि इस बिल में कुछ भी नया नहीं है। ये हमारे घोषणापत्र से चोरी किया गया है। अब ऐसे में कांग्रेस के ऊपर सवाल उठते हैं कि आखिर इतने सालों तक जब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी तब उस समय कांग्रेस को सवर्णों की याद क्यों नहीं आई। बता दें कि सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का प्रस्ताव नरसिम्हा राव सरकार में ही लाया गया था लेकिन तब से 2014 तक कांग्रेस सत्ता में तो रही लेकिन उसे सवर्णों की याद नहीं आई। अब जब ये बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हो चुका है तो कांग्रेस को सवर्णों की याद आने लगी है और दो रुख सामने रख रही है।
एक तरफ कांग्रेस ने एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ जनता को भड़कती है तो मोदी सरकार पर सवर्ण विरोधी पार्टी होने का आरोप लगाती है। दूसरी तरफ जब बीजेपी सवर्णों के लिए काम कर रही है तो इसे आरएसएस की साजिश बता रही है। कांग्रेस ने इसे एससी/एसटी ऐक्ट को खत्म करने की तैयारी बताया।
इस तरह से ये बिल पास भले ही पारित हो गया है लेकिन कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी समेत तमाम विपक्षी दलों का मुखौटा जरूर हटाने का काम किया है।