तीन राज्यों में सत्ता में पाने के बाद कांग्रेस ने एक बार फिर से वैसी ही हरकत की है, जैसी उससे उम्मीद थी। राजस्थान में गहलोत की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने एक बार फिर से बदले की राजनीति की दर्शाई है। दरअसल, राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने सभी सरकारी दस्तावेजों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर हटवाने का आदेश दे दिया है। ये आदेश बुधवार को जारी कर दिया गया है। पिछले साल 29 दिसंबर को इस मामले पर चर्चा हुई थी और बुधवार को इसकी घोषणा भी कर दी गयी।
इस आदेश के तहत राज्य के सभी राजकीय विभागों, निगमों, बोर्ड एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं के लेटर पैड पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर का ‘लोगो’ का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। इस आदेश के बाद अब इस ‘लोगो’ का इस्तेमाल किसी भी सरकारी दस्तावेजों में नहीं किया जाएगा।
बता दें कि दीनदयाल उपाध्याय आरएसएस विचारक और भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक हैं। दीनदयाल उपाध्याय मानते थे कि आजादी के बाद भारत का विकास का आधार अपनी भारतीय संस्कृति हो न की अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गयी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा में हुआ था। दीनदयाल उपाध्याय जब 1937 में कानपुर में सनातन धर्म कॉलेज से बीए की पढ़ाई के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए। वहां उनकी मुलाकात आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार से हुई। प्रचारक बनने से पहले उन्होंने 1939 और 1942 में संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद ही उन्हें प्रचारक बनाया गया था। दिसंबर, 1967 में वह जनसंघ के अध्यक्ष बने। दीनदयाल उपाध्याय भारतीय विचारक, अर्थशाष्त्री, समाजशाष्त्री, इतिहासकार और पत्रकार भी थे। उनके हिंदी के भाषणों और लेखों के तीन क्लेक्शन पब्लिश हैं और उनके नाम हैं, ‘राष्ट्रीय जीवन की समस्या’ या ‘द प्रोब्लेम्स ऑफ़ नेशनल लाइफ’, 1960; एकात्म मानववाद’, या ‘इंटरनल हुमानिज्म’, 1965; और राष्ट्र जीवन की दिशा, या ‘ द डायरेक्शन ऑफ़ नेशनल लाइफ’ 1971. इनमें से एकात्म मानववाद काफी मशहूर है जो भारत में अलग-अलग धर्मों को समान अधिकार दिए जाने की बात कहता है।
बताया जाता है कि 10 फरवरी, 1968 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ से सियालदह एक्सप्रेस में पटना जाने के लिए सवार हुए थे लेकिन जब ट्रेन रात करीब सवा दो बजे मुगलसराय स्टेशन पर पहुंची तो उनको ट्रेन में नहीं पाया गया। उनकी बॉडी को रेलवे स्टेशन के पास पटरियों पर पाया गया। रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई उनकी मौत की गुत्थी आज तक सुलझ नहीं पायी। कुछ लोग इसे राजनीतिक साजिश के नजरिए से भी देखते हैं। जो भी हो, आज तक उनकी मौत के वास्तविक कारणों से पर्दा नहीं उठ सका है। 2017 में भी कई राजनेताओं ने उस मामले की फिर से जांच करने की मांग की है।
ऐसे में, दीनदयाल उपाध्याय के सम्मान में शुरू किये गये ‘लोगो’ को कांग्रेस हटवा रही है। ये सीधे तौर पर बदले और नफरत की राजनीति करने में संलिप्त हो गई है। बता दें कि ये पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस ने ऐसी हरकत की है, उसके पहले भी कांग्रेस ने राजस्थान और मध्यप्रदेश में पूर्ववर्ती भारतीय जनता पार्टी द्वारा शुरू की गई योजनाएं बंद कर चुकी है।
अभी हाल ही में मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस सरकार ने सर्किट हाउस में लगी प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर हटवा दी, जबकि सचिवालय में होने वाले राष्ट्रगीत पर भी रोक लगा दी। वहीं राजस्थान में दीनदयाल उपाध्याय का ‘लोगो’ हटाए जाने से पहले कांग्रेस ने वसुंधरा राजे सरकार में शुरू की गई भामाशाह योजना जैसी जनप्रिय योजना बंद कर चुकी है। जिसे लेकर कांग्रेस की काफी आलोचना भी हो चुकी है। अब एक बार फिर से कांग्रेस ने सभी सरकारी दस्तावेजों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर हटाने का आदेश देकर अपनी मानसिकता का परिचय दिया है। वास्तव में कांग्रेस को सिर्फ गांधी नाम से जुड़े ‘लोगो’ मार्ग, योजना आदि ही पसंद आते हैं इसके अलावा किसी और बड़े नेता या देशभक्त को कोई सम्मान मिले तो कांग्रेस को ये बात रास नहीं आती।