अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडीस (88) की मंगलवार की सुबह निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के मैक्स अस्पताल में आखिरी सांस ली। वो कुछ दिनों से स्वाइन फ्लू से पीड़ित थे। उनके निधन से देश में शोक की लहर है। विदेश में रह रहे फर्नांडीस के बेटे के वापस आने के बाद ही उनका संस्कार किया जाएगा। फर्नांडीस राजनीति के जाने माने नेता हैं। वो समता पार्टी के संस्थापक, एनडीए के संयोजक, पत्रकार और अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाल चुके हैं। 1967 से 2004 तक 9 लोकसभा चुनाव लड़ने वाले जॉर्ज फर्नांडीस ने कई सरकार विरोधी आंदोलन चलाए थे जिसके बाद से वो लोगों के चहेते बन गये थे और कांग्रेस की आंख का काँटा बन गये थे।
जॉर्ज फर्नांडीस का जन्म 3 जून 1930 को मैंगलोर के मैंग्लोरिन-कैथोलिक परिवार में जॉन जोसेफ फर्नांडीस के घर हुआ था। उनका जीवन काफी मुश्किलों भरा था। 1949 में वो मैंगलोर छोड़ मुंबई गये और यहां वो एक समाचार-पत्र में प्रूफरीडर का काम करने लगे। इस दौरान वो फुटपाथ पर रहा करते थे और चौपाटी स्टैंड की बेंच पर सोया करते थे कभी कभी उन्हें जमीन पर भी सोना पड़ता था। वो कई आंदोलनों से जुड़े और उनकी भूमिका काफी अहम रही। जॉर्ज सामाजिक कार्यकर्ता राममनोहर लोहिया से काफी प्रभावित थे। इसके बाद वो सोशलिस्ट ट्रेड यूनियन के आंदोलन में शामिल हुए और मजदूरों, कम पैसे में कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों वो अन्य मजदूरों के लिए आवाज उठाई थी और इस तरह से 1950 में वो मजदूरों की आवाज बन गये थे। इसके बाद 1961 और 1968 में जॉर्ज ने मुंबई सिविक का चुनाव जीता और बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के सदस्य बन गये। फिर भी उन्होंने मजदूरों एवं कर्मचारियों के लिए आवाज उठाना नहीं छोड़ा। आंदोलनों में उनकी सक्रियता के कारण वो जल्द ही सभी की नजरों में आ गये और फिर संयुक्त सोसियल पार्टी ने उन्हें 1967 के लोकसभा चुनाव में से मुंबई साउथ की सीट से टिकट दिया और वो इस चुनाव में भारी मतों से विजयी हुए। इसके बाद उनका नाम ‘जॉर्ज द जेंटकिलर’ मशहूर हो गया। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को हराया था। 1960 के बाद जॉर्ज मुंबई में हड़ताल करने वाले लोकप्रिय नेता बन गये जिसने उनके राजनीतिक सफर को एक नया मोड़ दिया और वो वर्ष 1969 में पहले संयुक्त सोसियल पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बने फिर 1973 में पार्टी के चेयरमैन बन गये। वर्ष 1974 में जॉर्ज ने ऑल इंडिया रेलवे फेडरेशन का अध्यक्ष बनने के बाद भारतीय रेलवे के खिलाफ हड़ताल कर तीसरे वेतन आयोग को लागू करने और आवासीय भत्ता बढाने की मांग की थी। इस हड़ताल में उन्हें देशभर के रेलवे कर्मचारियों से समर्थन मिला था। हड़ताल की उग्रता बढ़ते देख पुलिस ने 30 हज़ार लोगों को गिरफ्तार कर लिया था जिसके बाद पुलिस के लिए ये हड़ताल मुश्किलों का सबब बन गया। उस समय इंदिरा गाँधी की सरकार ने बहुत क्रूरता से इस हड़ताल को कुचल दिया था।
अपने सख्त लहजे और न्याय के लिए आवाज उठाने के कारण जॉर्ज लोगों के मसीहा बन चुके थे। ऐसे में कांग्रेस को जॉर्ज खटकने लगे थे। जब वर्ष 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तब जॉर्ज फर्नांडीस ने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया था। आपातकाल का विरोध करने के कारण उनके खिलाफ भी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया था लेकिन भूमिगत होकर जॉर्ज ने सरकार के खिलाफ विरोधी आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन का मकसद आपातकाल लगाने वाली इंदिरा सरकार को गिराना था। इंदिरा की मुश्किलें बढ़ने लगी थीं लेकिन बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जब उन्हें गिरफतार कर लिया गया था तब उनकी सुरक्षा को लेकर हर जगह चिंता थी और शायद लोगों के समर्थन के कारण ही इंदिरा जॉर्ज को नुकसान नहीं पहुंचा पाई थीं।
जॉर्ज चौदहवीं लोकसभा में मुजफ़्फ़रपुर से जेडीयू के टिकट पर सांसद चुने गए थे। उन्होंने वर्ष 1998 से 2014 तक देश की सेवा रक्षा मंत्री के तौर पर की है। पोखरण परमाणु परीक्षण उनके रक्षा मंत्री रहते हुए ही हुआ था और कारगिल युद्ध भी इन्हीं के कार्यकाल में हुआ था। अपने स्वास्थ्य कारणों के चलते धीरे-धीरे उनका राजनीतिक करियर भी धूमिल होता गया लेकिन उनके नायक की छवि जनता के मन से आज तक नहीं गयी है।