इसरो के रिटायर वैज्ञानिक एस. नंबी नारायणन के लिए शुक्रवार का दिन बहुत अहम था। ये वो दिन था जब उन्हें भारतीय अन्तरिक्ष क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गये योगदान को आखिरकार मान्यता मिली। उन्हें इस बार गणतंत्र दिवस पर प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसरो के रिटायर वैज्ञानिक एस. नंबी नारायणन ने अपनी खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि “मैं खुश हूं कि भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में अंतत: मेरे काम को मान्यता मिली। मेरा नाम जासूसी के आरोपों के कारण मशहूर हुआ था, लेकिन मैं खुश हूं कि सरकार ने मेरे काम को मान्यता दी।“ इसरो के जाने माने वैज्ञानिक से लेकर जासूसी के आरोपों के चलते उन्हें अपने जीवन में बहुत कुछ झेलना पड़ा। दशकों पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन पर कम कर रहे वैज्ञानिक नंबी नारायणन देशद्रोह का आरोप लगाकर सेक्युलर सरकारों ने उनके करियर को ही बर्बाद कर दिया था। षडयंत्र, आरोप, गिरफ्तारी और फिर कोर्ट की तारीख दर तारीख उनके जीवन का हिसा बन गया था। इस एक आरोप ने उनके जीवन के सुकून को छीन लिया था जो वास्तव में उन्होंने कभी किया ही नहीं था।
पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने पीएसएलवी, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान के विकास और क्रायोजेनिक इंजन बनाने के शुरुआती चरण में अहम भूमिका निभाई थी। इसरो ने 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान(पीएसएलवी) से चंद्रयान-1 लॉन्च किया था। पीएसएलवी नारायणन की ही देन थी। चन्द्रां लांच होने के बाद भारत भी दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया जो चाँद पर पहुंचे। पीएसएलवी ने हमें हमेशा गौरवान्वित किया है। पीएसएलवी रॉकेट स्वदेशी “विकास इंजन” पर चलता है और नम्बी नारायणन ने इसे बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जनवरी 5, 2014 को भारत ने अंतरिक्ष में लम्बी छलांग लगाकर नया इतिहास रचा था। स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के बूते रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का परीक्षण 100% ख़रा उतरा था लेकिन इस इतिहास के पीछे जिस शख्स का नामा था उसका कहीं जिक्र ही नहीं है।
1990 के दशक में नंबी नारायणन भारत के शीर्ष वैज्ञानिकों में से एक थे। 1994 में अचानक से जासूसी और विदेशी एजेंटों को रॉकेट सम्बंधित संवेदनशील जानकारी लीक करने का आरोप लगे और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उनका करियर बर्बाद हो गया था। जेल में उन्हें कई यातनाएं झेलनी पड़ी उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी गयी।
साला 1994 में नंबी नारायणन की गिरफ्तारी के साथ, भारत के स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के निर्माण के सपने पर भी ब्रेक लग गया था। साल 2010 के अंत तक, भारत अभी भी उस क्रायोजेनिक इंजन को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा था। आखिरकार सफलता मिली और साल 2014 में क्रायोजेनिक इंजन बनकर तैयार हो गया। जैसे जैसे पर इस इंजन को 1994 और 2014 के बीच जो बीस वर्ष का जो समय लगा उसकी भरपाई कौन करेगा?
वहीं, नंबी नारायणन के मामले में सीबीआई ने जांच की और कोर्ट में कहा कि उनके खिलाफ सबूत नहीं मिले। इसके बाद कोर्ट ने उन्हें निर्दोष बताया। खुद सीबीआई ने ये स्वीकार किया कि आईबी ने केवल इस मामले को तूल दिया और गलत व्यक्ति को फंसाया गया था।
अप्रैल 1996 में सीबीआई ने चीफ जूडिशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में फाइल एक रिपोर्ट में बताया कि ये मामला पूरी तरह से फर्जी है जो आईबी द्वारा तैयार किया गया था। इन आरोपों के पक्ष में कोई सबूत नहीं हैं। मई 1996 में कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट को स्वीकार किया और जासूसी के आरोप में नंबी नारायणन के साथ गिरफतार हुए अन्य आरोपियों को भी रिहा कर दिया।
वर्ष 1998 का ‘आउटलुक’ का ये लेख भी हमें बताता है कि सीबीआई ने जून 03, 1996 को अपनी रिपोर्ट में क्या कहा था।
सालों बाद उन्हें कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितम्बर कहा कि वैज्ञानिक नारायणन को केरल पुलिस ने बेवजह गिरफ्तार किया था और उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी गयी। इसके साथ ही कोर्ट ने इसरो वैज्ञानिक को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था। आखिरकार वो बेदाग घोषित किये गये लेकिन जो 24 सालों तक उन्होंने झेला शायद उनके लिए भुलाना नामुमकिन होगा। इसके साथ ही जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले में केरल पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जाँच के लिए 3 सदस्यीय कमिटी का भी गठन किया।
वर्ष 2016 की शुरुआत में, मोदी सरकार ने जेएनयू में कुछ छात्र संगठनों के दुर्व्यवहारों पर नकेल कसी। लेफ्ट लिबरल गैंग ने इसका विरोध किया जो देश में ही देशविरोधी नारे लगा रहे थे और इसी के साथ बस कुछ ही समय में ये सभी चर्चा में आ गये। वहीं, भारत के लिए राकेट इंजन बना रहे एक वौज्ञानिक को झूठे आरोपों में फंसा दिया गया उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया यहां तक कि उन्होंने जो महत्वपूर्ण भूमिका देश के विकास के लिए निभाई है उसे भी भुला दिया गया। अब मोदी सरकार उन गुमनाम नायकों को उभार रहे हैं और उनके योगदान को सम्मान दे रहे हैं जिसके वो हकदार हैं।
लेखक- अभिषेक बनर्जी