कमलनाथ ने स्वीकारा कि 1984 में राजीव गांधी के कहने पर गये थे गुरुद्वारा रकाबगंज

कमलनाथ सिख गुरुद्वारा रकाबगंज

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1984 का सिख विरोधी दंगा तो आपको याद ही होगा जो सिख नरसंहार भी कहा जाता है । देश के कई जगहों पर हिंसा हुई जिसमें सिखों की हत्या की गयी और कांग्रेस पार्टी के दामन पर इसका दाग लगा। कई कांग्रेसी नेताओं पर इस दंगे को भड़काने और हिंसा फैलाने के आरोप लगे। हाल ही में कांग्रेस के एक नेता सज्जन कुमार को इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सजा भी सुनाई थी। मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ पर भी इसके आरोप लगे थे लेकिन आज तक उन्हें इसकी कोई सजा नहीं हुई। 1 नवंबर 1984 को गुरुद्वारा रकाबगंज की घटना पर इंडियन एक्सप्रेस के समकालीन रिपोर्टर संजय सूरी ने भी कमलनाथ को भीड़ का नेतृत्व करते और उन्हें सिखों का कत्ल करने का आदेश देते देखा था। उस वक्त की घटना पर कमलनाथ की मौजूदगी को लेकर कई सवाल खड़े उठे थे। रिपोर्ट्स की मानें तो कमलनाथ राजीव गांधी के कहने पर गुरुद्वारा रकाबगंज गये थे लेकिन जब उनसे इस संबंध में साल 2016 में सवाल किया गया था तो उन्होंने इससे साफ़ इंकार कर दिया था लेकिन अब साल 2019 के एक इंटरव्यू में स्वीकार किया कि वो राजीव गांधी के कहने पर गुरुद्वारा रकाबगंज गए थे।

एक नेता से एक जैसे सवाल दो इंटरव्यू में पूछे गये लेकिन दोनों में ही कमलनाथ का जवाब अलग था। इसका मतलब तो साफ़ है कि कमलनाथ या तो तब झूठ बोल रहे थे या आज बोल रहे हैं। दरअसल, हाल ही में कमलनाथ ने द प्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में स्वीकार कर लिया कि वो साल 1984 में गुरुद्वारा रकाबगंज पर राजीव गांधी के कहने पर गये थे। इस इंटरव्यू में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि “राजीव गांधी अभी नए नए प्रधानमंत्री बने थे मैं उनके साथ था उसी दौरान एक फ़ोन आता है कि पर गुरुद्वारा रकाबगंज में भारी संख्या में कंग्रेस के लोग इकठ्ठा हुए हैं और हमला करने वाले हैं। तो उन्होंने मुझसे कहा कि तुम तुरंत वहां जाओ और ये सब रोको।” अब जरा कमलनाथ के साल 2016 में बरखा दत्त को दिए एक इंटरव्यू को देखें तो उनके बोल कुछ और ही थे।

साल 2016 में कमलनाथ से जब एनडीटीवी के एक कार्यक्रम में बरखा दत्त ने पूछा था कि आपको किसने गुरुद्वारे भेजा था ? तो कमलनाथ ने कहा, “मैं कांग्रेस के लोगों के साथ बैठा था” इस जवाब के बीच में ही बरखा दत्त सवाल करती हैं कि “क्या राजीव गांधी ने आपको गुरुद्वारा भेजा था?” तो कमलनाथ ने जवाब में कहा, “नहीं, मैं कुछ कांग्रेस के लोगों के साथ कहीं बैठा हुआ था तब किसी को एक फ़ोन आता है फिर वो कहते है हमें जाना चाहिए। मैं गया लेकिन मैं अकेले नहीं गया। मैं दो कांग्रेसी नेता के साथ गया था उनमें से एक हरियाणा के थे और दूसरे यूपी से थे।” इसके बाद बरखा दत्त ने पूछा कि आप वहां करने क्या गये थे? तो कमलनाथ ने कहा कि “मुझे जब सूचना मिली थी तब हम घटनास्थल पर घटना को रोकने गये थे। जब मैं गुरुद्वारा रकाबगंज गया तो वहां 300-400 की भीड़ देखी और फिर लोगों से बातचीत की कि तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? जो भी कर रहे हो सब अभी रोक दो । मेरी उनसे कुछ बातचीत हुई जिस वजह से पुलिस को घटनास्थल पर और अधिक सुरक्षा बलों को जुटाने का समय मिल गया।” इसके बाद जब कमलनाथ से सवाल किया गया कि “जब आप घटना स्थल पर थे और वहां दो लोगों को जलाया जा रहा था तो आपने पुलिस को मामले में हस्तक्षेप करने के लिए क्यों नहीं कहा या आपने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया? आप चाहते तो भीड़ को काबू कर सकते थे आपके पास शक्ति थी लेकिन आपने ऐसा क्यों नहीं किया?” इस सवाल के जवाब में कमलनाथ ने कहा कि “मैं भीड़ से बातचीत कर रहा था मैंने दो लोगों को जलते हुए देखा ही नहीं। अगर पुलिस ने देखा भी तो मैं कोई पुलिस इंचार्ज नहीं था जो उन्हें कहूं कि मामले में हस्तक्षेप करो या त्वरित कार्रवाई करो। हां पुलिस ने मुझसे कहा भीड़ को काबू में करने के लिए मदद करें लेकिन कोई मेरी नहीं सुन रहा था।” जब उनसे पूछा गया कि कई लोगों ने भीड़ में कांग्रेस के लोगों को देखा तो आपने क्यों नहीं पहचाना? तो कमलनाथ ने कहा “हो सकता है वहां कुछ कांग्रेस के लोग होंगे लेकिन मैंने उन्हें नहीं पहचाना हां भीड़ ने मुझे पहचाना होगा। अब भीड़ में सभी कांग्रेस का कोई होगा जरुरी नहीं। हां वहां मैंने किसी को नहीं पहचाना था लेकिन उन लोगों ने मुझे पहचान लिया था।”

इन शब्दों से साफ़ है कि कमलनाथ का उस समय हुई घटना में कहीं न कहीं हाथ तो था। वो चाहते तो भीड़ को रोक सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इंदिरा गांधी की मौत का बदला लेने का बुखार उस समय कांग्रेस के कार्यकर्ता व नेताओं में इस तरह से चढ़ा था कि उन्होंने इसे उतारने के लिए सिखों का नरसंहार किया था। बार बार उनपर आरोप लगे और बार बार कमलनाथ ने आरोपों को नकार दिया और अब उनके जवाब ये साबित करते हैं कि उनका उस समय की घटना से जुड़ाव जरुर था और शायद राजीव गांधी के कहने पर उन्होंने ऐसा किया था लेकिन हर बार इस बात से उन्होंने इंकार किया लेकिन अब द प्रिंट को दिए इंटरव्यू में इसे स्वीकार भी कर लिया है। ये कमलनाथ के झूठ को भी दर्शाता है कि किस तरह से गांधी परिवार के लिए उन्होंने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया।

बता दें कि संजय सूरी ने अपनी एक किताब 1984: The Anti-Sikh Violence and After में कमलनाथ की उपस्थिति का जिक्र किया है। ये वही सूरी है जिसने कमलनाथ की घटनास्थल पर उपस्थिति की पुष्टि की थी। सूरी के अलावा कमल नाथ की उपस्तिथि की पुष्टि दो वरिष्ठ अधिकारियों, आयुक्त सुभाष टंडन और अतिरिक्त आयुक्त गौतम कौल और एक स्वतंत्र स्रोत ने भी की थी। सभी ने कहा था कि कमलनाथ का भीड़ से कनेक्शन था। उन्होंने इशारा किया और भीड़ ने सुना। जिस भीड़ को दखकर पुलिस ने भी अपने कदम पीछे खींच लिए वो भीड़ कांग्रेस के एक नेता के नियंत्रण में क्यों थी? क्यों भीड़ को पुलिस का डर नहीं था लेकिन कांग्रेस के नेता की बाते मान रही थी। ऐसे में सवाल आज भी उठाये जातें हैं कि अगर कमलनाथ वहां भीड़ को नियंत्रित करने पहुंचे थे तो उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? बल्कि हिंसा के लिए इशारा किया। क्या सच में कमलनाथ और भीड़ के बीच क्या संबंध थे? गवाहों के बावजूद कमल नाथ को उनके किये की सजा नहीं मिली क्योंकि उन्हें कांग्रेस पार्टी का समर्थन प्राप्त था। आज भी सिख दंगे के पीड़ितों का कहना है कि कमल नाथ को उनके किये की सजा नहीं मिली है।

कांग्रेस ने तो दंगे के आरोपियों को न ही पार्टी से निकाला और न ही कोई क़ानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ने दिया। और तो और साल 2016 में कमलनाथ को पंजाब का पार्टी प्रभारी बनाकर कांग्रेस ने सिखों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया था। उस समय कांग्रेस को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इसके बाद कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था। जिस तरह के आरोप कमलनाथ पर लगे थे उन आरोपों को अनदेखा कर कांग्रेस ने पहले कमल नाथ को मध्य प्रदेश कमेटी का मुखिया बनाया था और अब प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया है ताकि वो प्रदेश में भ्रष्टाचार कर भारी कमाई कर सके और जनता का फायदा उठा सके।  

अब कमलनाथ के इस दो जवाबों ने ये साफ़ कर दिया है कि किस तरह से भ्रष्टाचार, हिंसा, घोटालों के अलावा झूठ की राजनीति ये पार्टी और उसके नेता करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं। 

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