राहुल गांधी देश की जनता को गुमराह करने के लिए कितना भी प्रयास कर लें लेकिन सच्चाई छिप नहीं पाती। वो बार-बार एक ही झूठ को बोलने का प्रयास कर रहे हैं। वो राफेल पर केन्द्र की मोदी सरकार को घेरकर 2019 का चुनाव जीतने के लिए जनता को भ्रमित का प्रयास कर रहे हैं। जनता को गुमराह करने के लिए राहुल गांधी सिर्फ आरोप लगा रहे हैं, वो किसी प्रकार का कोई प्रमाण नहीं दे रहे हैं जिसके कारण उनकी बात को जनता बहुत गंभीरता से नहीं ले रही है। इसके बावजूद राहुल गांधी लगातार जनता के सामने राफेल को घोटाला-घोटाला शोर मचाकर जनता का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि क्या है राफेल का पूरा मामला।
राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि HAL ने भारतीय वायु सेना के लिए मिराज-2000 विमानों का निर्माण किया था जबकि भारत ने 40 मिराज-2000 फ्रांस सरकार से खरीदा था. राफेल का एचएएल को न दिया जाने से राहुल गांधी जता रहे हैं कि, उन्हें इसका दुःख है. हालांकि, ऐसा लगता है कि, राहुल गांधी राफेल मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेरने के लिए इतने हताश हैं कि खुलेआम झूठ बोल रहे हैं. वास्तव में जिस तरह के तर्क दिए जा रहे हैं उससे तो यही लगता है कि इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस खुद कंफ्यूज है. राफेल डील के जरिये पीएम मोदी की छवि को धूमिल करने के प्रयास में खुद राहुल गांधी ही अपने झूठ से घिरने लगे हैं.
पिछले साल अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी राहुल गांधी का राफेल को लेकर बोला गया झूठ सामने आया था इसके बावजूद वो फिर से बड़े आत्मविश्वास के साथ संसद में झूठ बोलते नजर आये. राहुल गांधी ने फिर से दावा करते हुए कहा था कि पीएम मोदी ने राफेल डील में अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया है. ये भी आरोप लगाया कि राफेल डील में सही तरीका नहीं अपनाया गया है. जबकि सच ये है कि राफेल डील में कैबिनेट कम्युनिटी सिक्योरिटी (CCS) से मंजूरी ली गयी थी. वहीं, ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की किसी भी प्रकार की कोई भूमिका नहीं रही, ये फैसला दसॉल्ट एविएशन ने लिया है।
यही नहीं खुद रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में साफ शब्दों में बताया था कि रिलायंस डिफेंस और दसॉल्ट के बीच ऑफसेट मामले में सरकार ने किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं किया है। लोकसभा में हाल ही में अरुण जेटली बता चुके हैं कि कुल 58 हजार करोड़ की डील है, जिसमें से करीब आठ सौ करोड़ रुपये का काम ही रिलायंस डिफेंस को मिलेगा। जबकि कांग्रेस अध्यक्ष एक लाख 30 हजार करोड़ की डील कह रहे हैं।
इसके अलावा, राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे पर ये भी कहते रहे हैं कि HAL को 70 सालों का अनुभव है जबकि रिलायंस कंपनी को दस दिनों का ही अनुभव है फिर भी ये डील रिलायंस कंपनी को दी गयी. वास्तव में ये झूठ भी बड़े शर्मनाक तरीके से इस पुरानी पार्टी द्वारा फैलाया जा रहा है जबकि अनिल अंबानी ने रिलायंस डिफेंस का 2015 में गठन किया था क्योंकि वो डिफेंस क्षेत्र में आने की योजना बना रहे थे। जब एनडीए सरकार ने फ्रांस से 126 के बजाय 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला किया तब दसॉल्ट और अनिल अंबानी की कंपनी के बीच ऑफसेट डील के लिए हस्ताक्षर हुआ था। दसॉल्ट द्वारा ऑफसेट सौदे के लिए हुए हस्ताक्षर में सिर्फ अनिल अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस डिफेंस की कंपनी ही नहीं थी बल्कि अन्य 11 और कंपनियां शामिल थीं। कांग्रेस इस तथ्य से अवगत थी लेकिन फिर भी जनता को गुमराह करने और अपना राजनीतिक हित साधने के लिए वो बार बार राफेल को घोटाले का नाम देती रही जबकि दसॉल्ट ने कांग्रेस के सभी आरोपों को ख़ारिज कर दिया है और कहा कि दसॉल्ट एविएशन ने ही भारत के रिलायंस ग्रुप के साथ साझेदारी करने का फैसला किया था।
ऐसे में एक बात तो स्पष्ट है कि राहुल गांधी निराधार आरोप लगा रहे हैं। उनके आरोपों में किसी भी प्रकार को कोई भी दम नहीं है। वो सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने में लगे हैं।