एक ही मुद्दे पर दोहरा रवैया अपनाना कांग्रेस की आदत बन चुका है। जब उसे जरूरत होती है तो वह अपना फायदा देखती है और जब उसे अपना नुकसान दिखाई देने लगता है तो वह खिलाफत करने लग जाती है। इसी तरह देशद्रोह से जुड़ी धारा 124 ए के साथ भी कांग्रेस दोहरा रवैया अपनाती आयी है। देश में लंबे समय से कांग्रेस का शासन रहा। इस पार्टी ने अपने शासनकाल में इस धारा का समय-समय पर उपयोग किया और अब जब जेएनयू देशद्रोह मामले में कन्हैया कुमार और उनके साथियों पर देशद्रोह का मुकदमा लगा है तो कांग्रेस बौखला गई है। उसे अब जाकर याद आया है कि, भारतीय दंड संहिता की इस धारा को हटा देना चाहिए। आजादी के इतने सालों बाद कांग्रेस पार्टी को अब यह कानून औपनिवेशिक लगने लगा है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने देशद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को खत्म करने की पैरवी करते हुए बुधवार को कहा कि वर्तमन में इस औपनिवेशिक कानून की जरूरत नहीं है। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में दो साल पहले हुई देशविरोधी नारेबाजी के मामले में दिल्ली पुलिस ने हाल में कन्हैया कुमार और उनके साथियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की है, जिसमें धारा 124ए भी लगाई गई है।
कपिल सिब्बल ने अपने ट्वीट में कहा, ‘देशद्रोह के कानून (आईपीसी की धारा 124ए) को खत्म किया जाए। यह औपनिवेशिक है।’ उन्होंने कहा, “असली देशद्रोह तब होता है जब सत्ता में बैठे लोग संस्थाओं के साथ छेड़छाड़ करते हैं, कानून का दुरुपयोग करते हैं, हिंसा भड़काकर शांति एवं सुरक्षा की स्थिति खराब करते हैं।”
बता दें कि, कांग्रेस ने यूपीए सरकार के दौरान इसी कानून की आड़ में कई निर्दोष लोगों को झूठे आरोप में जेल की हवा खिलाई है। इसमें कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी का मामला और कुडनकुलम परमाणु प्लांट का मामला भी शामिल है।
25 साल के कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को कांग्रेस शासन में मुंबई पुलिस ने सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया था क्योंकि, उन्होंने अपने कार्टूनों में संसद को एक शौचालय के रूप में दिखा दिया था। ये कार्टून उन्होंने मुंबई में 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए एक आंदोलन के समय बनाए थे। तब तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने एक युवक की आर्ट का गला घोंटते हुए कहा था कि, कार्टूनिस्टों को संवैधानिक मानदंड़ों के दायरे में रहना चाहिए। उस समय कांग्रेस को यह कानून औपनिवेशिक नजर नहीं आया। उसके बाद 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने वाले लगभग 7000 गांवो के लोगों पर देशद्रोह की धाराएं लगाई थीं।
बता दें कि, साल 1860 में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा देशद्रोह कानून का मसौदा तैयार किया गया था। दस सालों बाद 1870 में इसे भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए की शक्ल दी गई। देशद्रोह की ये धारा इसलिए बनाई गई थी ताकि हुकूमत के खिलाफ जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। साल 1898 में लॉर्ड मैकॉले दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मतलब था, ऐसा कोई भी काम जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर होता हो। इसके बाद 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस परिभाषा में बदलाव किया गया। अब नए कानून के तहत सिर्फ सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर करने को देशद्रोह नहीं माना जा सकता बल्कि उसी स्थिति में इसे देशद्रोह माना जाएगा जब इस असंतोष में हिंसा भड़काने और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की भी अपील शामिल हो। कांग्रेस इस कानून को लेकर समय-समय पर दोहरा रवैया अपनाती रही है और इस बार भी वह यह ही कर रही है।