पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों की मंशा बंगला छोड़ने की नहीं है

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PC: AajTak

उत्तर प्रदेश के बाद अब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों पर कोर्ट की गाज गिरी है। पटना हाईकोर्ट ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों को दिए गये सरकारी बंगले की सुविधा को असंवैधानिक और सरकारी धन का दुरूपयोग बताते हुए समाप्त कर दिया है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एपी शाही ने इस मामले में मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। इस फैसले से सरकारी बंगले का सुख भोग रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों को बड़ा झटका लगा है। इस आदेश के बाद पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, लालू प्रसाद यादव, जीतन राम मांझी, जग्गनाथ मिश्रा और सतीश प्रसाद सिंह को अपना सरकारी बंगला खाली करना होगा।

बता दें कि, 7 जनवरी को राजद नेता तेजस्वी यादव बंगले विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट गये थे। सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें निराशा मिली और तो और कोर्ट ने तेजस्वी यादव पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया था। इससे पहले वो पटना हाईकोर्ट गये थे लेकिन कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए पूछा था कि आखिर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री किस कानून के तहत आजीवन आवास की सुविधा का आनंद उठा रहे हैं? पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एपी शाह की खंडपीठ सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली आजीवन सरकारी आवास की सुविधा की समाप्त करने की बात कही थी। इसके लिए कोर्ट ने एक नोटिस भी जारी किया। इसके बाद से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों का अपने बंगले के प्रति लगाव खुलकर सामने आने लगा। जीतनराम मांझी हो या तेजस्वी यादव या राबड़ी सभी अपने सरकारी बंगले को खाली नहीं करना चाहते। अब अगर पटना हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी ये पूर्व मुख्यमंत्री अपना बंगला खाली नहीं करते तो उनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सकता है। मांझी तो सफाई दे रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला देने का बिहार सरकार का प्रावधान काफी अच्छा फैसला था, क्योंकि जो पूर्व मुख्यमंत्री होते हैं उनका कद और काफी बढ़ जाता है।‘ उन्होंने आगे कहा, ‘बिहार सरकार ने पहले जो किया था वो सोच समझकर किया था। उसमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी।’ जीतन राम मांझी को सरकारी बंगले का सुख मिल रहा है तो उन्हें पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन बंगला देने का बिहार सरकार का प्रावधान अच्छा ही लगेगा। कर्जदाताओं के पैसों के दुरूपयोग से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता अगर कानून उल्लंघन होता है तो होने दो।

बता दें कि साल 2016 में बिहार की तत्कालीन महागठबंधन सरकार ने बिहार विशेष सुरक्षा कानून में संशोधन किया था। इस संशोधन के बाद राज्य के पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला आवंटित करने और सुरक्षा दस्ता देने का संशोधित नियमावली को जारी किया गया था जो कि न सिर्फ असंवैधानिक बल्कि सरकारी धन का दुरूपयोग था। ऐसा ही कुछ उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिला था जहां सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायावती ने बंगला न खाली करने के लिए खूब ड्रामा किया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि, “प्राकृतिक संसाधन, सार्वजनिक भूमि और सार्वजनिक वस्तु जैसे सरकारी बंगले/आधिकारिक निवास सार्वजनिक संपत्ति है, जो देश के लोगों से संबंधित हैं और ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री ताउम्र सरकारी आवास में नहीं रह सकता है।” कोर्ट ने इस संशोधन को अवैध बताते हुए कहा था कि ‘अधिनियम में प्रावधान, पूर्व मुख्यमंत्रियों को ताउम्र सरकारी खर्च पर सरकारी बंगला देना जनता के समानता के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। ये अवैध और अनुशासित है और किसी भी संवैधानिक सिद्धांतों द्वारा इसका समर्थन नहीं किया जाता है।‘ सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मंत्री (वेतन, भत्ता और अन्य प्रावधान) अधिनियम की धारा 4 (3)  में अखिलेश यादव द्वारा किये गये संशोधन को ख़ारिज कर दिया था। कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए योगी सरकार ने 6 पूर्व मुख्यमंत्रीयों, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, मायावती, राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव को 15 दिनों के अंदर सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस दिया । इस नोटिस का विरोध अखिलेश यादव और मायावती ने खूब किया लेकिन उन्हें सरकारी बंगला खाली करना ही पड़ा। अखिलेश यादव ने तो सरकारी बंगले को खाली कराए जाने का गुस्सा बंगले में तोड़-फोड़ कर निकाल भी लिया था। संवैधानिक पद पर न होते हुए बिहार और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री करदाताओं के पैसों का आनंद उठाते रहे हैं। अब उत्तर प्रदेश की तरह ही बिहार में भी यही ड्रामा देखने को मिल रहा है। अब देखा ये होगा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंगला खाली करते या नहीं।

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