शर्मनाक! इस पत्रिका ने पुलवामा के शहीदों को भी जातियों में बांट दिया

कारवां जाति शहीद

हमारे देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो देश को बांटने का काम बड़ी बेशर्मी से करते हैं। लेफ्ट-लिबरल के मुखपत्र कारवां पत्रिका ने भी कुछ ऐसा किया है। इस पत्रिका ने अपने एक लेख में पुलवामा हमले में शहीद हुए 40 जवानों की न सिर्फ जाति बताई बल्कि ये भी बताया है कि इसमें शहीद हुए जवानों में कितने उच्च जाति के थे और कितने प्रतिशत दूसरी जाति के थे। कारवां पत्रिका ने इस लेख के जरिये सवर्णों के खिलाफ न सिर्फ अपना प्रोपेगंडा आगे बढ़ाया बल्कि भारत की राष्ट्रीय अखंडता पर भी हमला करने का प्रयास किया। इस पत्रिका के लेख की सोशल मीडिया पर खूब आलोचना हो रही है वहीं, कॉलमनिस्ट आनंद रंगनाथन ने अपने ट्वीट में इस पत्रिका को मुंहतोड़ जवाब दिया है।

कारवां पत्रिका ने अपने लेख में लिखा, “अर्बन मिडिल क्लास खासकर उच्च जाति के भारतीय राष्ट्रवाद का प्रदर्शन करते हैं लेकिन ये विडंबना है कि पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद 40 जवानों में से अधिकतर निम्न जाति के गरीब लोग हैं। मैंने 40 शहीद सीआरपीएफ जवानों की जाति की जनच की। हमने जवानों के परिवारवालों से संपर्क किया, फ़ोन के जरिये और उनके घर जाकर पता किया तो ये निष्कर्ष निकला कि शहीद हुए जवानों में अधिकतर निम्न जाति समुदाय से थे। इनमें से अन्य पिछड़ा वर्ग (या पिछड़ी जाति) के 19 जवान, अनुसूचित जाति के 7, अनुसूचित जनजाति के5, उच्च जाति के पृष्ठभूमि के 4, एक उच्च जाति के बंगाली, तीन जाट सिख और एक मुस्लिम शामिल थे। इसका मतलब ये है कि शहीद हुए 40 जवानों में से सिर्फ पांच या यूं कहें कि 12।5 फीसदी उच्च जाति की पृष्ठभूमि से थे। ये आंकड़ा बताता है कि शहरी मध्यवर्ग का हिंदुत्व राष्ट्रवाद जोकि मुख्य रूप से दक्षिणपंथी समूहों द्वारा फैलाया गया वो दलितों के बलिदान का फायदा उठाता है।“ ये शर्मनाक है कि शहीदों के बलिदान का इस तरह से एक नामी पत्रिका जातिवाद का जहर फैला रही है।

कारवां पत्रिका के इस घटिया लेख का कॉलमनिस्ट आनंद रंगनाथन ने करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि “जो इस लेख को सही बता रहा है ये उसके अतार्किक (इलॉजिकल) और साइकोपैथिक (मानसिक बीमारी)को दर्शाता है।”

आनंद रंगनाथन ने अपने तर्कों में लिखा कि, “सीआरपीएफ में भी आर्मी की तरफ आरक्षण का प्रावधान है। यही वजह है कि SC/ST का अनुपात ज्यादा है।  जिस बस को निशाना बनाया गया था वो कई काफिलों में से एक था। ये लेखक सिर्फ उस बस के जवानों के जाति के बारे में पता कर रहा है जिसपर हमला हुआ था। ये जानबुझकर एक विवाद को जन्मदेने के मकसद ही किया गया है। ये लेखक की मानसिकता और उसके निराधार तर्कों को दर्शाता है।। जो शहीद हुए उनमें एक भी महिला नहीं थी लेकिन फिर भी करोड़ो महिलाओं ने इस हमले के प्रति अपना गुस्सा जाहिर किया और पाक को इस हमले की सजा भुगतने की बात कही। देश में लाखों लोग चाहे वो किसी भी समुदाय के हों किसी भी क्षेत्र के हों गरीब हो या आमिर सभी ने इस हमले पर शोक जताया और अपनी संवेदनाएं वयक्त की। यहां तक कि सभी ने पाकिस्तान के खिलाफ अपने आक्रोश को भी व्यक्त किया और पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाये।ऐसे में क्या इस लेखक ने इन लाखों भारतियों के जाति का भी समीकरण निकाला? क्या ये लेखक ये सोचता है कि ये लाखों लोग उच्च जाति के हैं?” आनंद रंगनाथन यही नहीं रुके बल्कि एक बाद एक ऐसे तर्क दिए जिसने कारवां के इस घटिया आर्टिकल की धज्जियां उड़ा दी।

वास्तव में लेफ्ट-लिबरल्स का मकसद देश को बांटना है वो देश को एकजुट देखकर जैसे परेशान से हो जाते हैं। देश के लोग एकजुट न रहे, एक होकर कोई अपने अधिकारों की बात न करे, धर्म, जाति और भाषा के नामा पर लड़ते रहे बस यही चाहते हैं। हालांकि, आज के समय में इस गैंग की हर चाल नाकमयाब हो रही है। वो जितनी मजबूती के साथ देश में जातिवाद और धर्म का जहर फैलाने का प्रयास कर रहे हैं देश की जनता उनके मंसूबों से उतनी ही वाकिफ होती जा रही हैं।

Exit mobile version