विपक्ष राफेल सौदे को लेकर मनगढ़ंत तर्कों के साथ राजनीति कर रहा है और इसी बीच भारत के पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हेलीकॉप्टर आ गया है। अमेरिका ने जिस हेलीकॉप्टर की मदद से पाकिस्तान में घुसकर आतंकी सरगना लादेन को उसी के घर में मार गिराया था, वह चिनूक हेलीकॉप्टर अब भारतीय सेना की ताकत बनने जा रहा है। अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी बोईंग ने भारतीय वायुसेना के लिए 4 चिनूक सैन्य हेलीकॉप्टर्स की आपूर्ति की है। रविवार को गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर इन हेलीकॉप्टर्स की आपूर्ति हुई है। इन हेलीकॉप्टर्स के भारत आने से देश की सैन्य क्षमता में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। बोइंग की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, इन सीएच47एफ (आई) चिनूक हेलीकॉप्टर्स को चंडीगढ़ ले जाया जाएगा, जहां उन्हें औपचारिक तौर पर भारतीय वायुसेना में शामिल किया जाएगा।
सितंबर 2015 में भारत का बोइंग और अमेरिकी सरकार के बीच एक करार हुआ था। इसके अनुसार 15 चिनूक हेलीकॉप्टर्स खरीदे जाने थे। इसके बाद रक्षा मंत्रालय ने अगस्त 2017 में बड़ा फैसला लेते हुए भारतीय सेना के लिए अमेरिकी कंपनी बोइंग से 4168 करोड़ रुपये की लागत से छह अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर, 15 चिनूक भारी मालवाहक हेलीकॉप्टर सहित अन्य कईं हथियार प्रणाली खरीदने की मंजूरी प्रदान की थी। इसके बाद अब 4 चिनूक हेलीकॉप्टर्स की भारत को आपूर्ति हो गई है। सभी चिनूक हेलीकॉप्टर्स की डिलिवरी अगले चार साल में पूरी हो जाएगी।
दुनिया के बड़े रक्षा मिशनों में चिनूक हेलीकॉप्टर्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ‘सीएच-47एफ (आई) चिनूक एक उन्नत मल्टी-मिशन लड़ाकू हेलिकॉप्टर है जो भारतीय सशस्त्र बलों को युद्ध और मानवीय मिशन के दौरान अतुलनीय रणनीतिक एयरलिफ्ट की क्षमता मुहैया कराएगा।
यह डबल रोटर वाला हेलीकॉप्टर है। चिनूक में 30 से 50 जवान बैठ सकते हैं। इस हेलीकॉप्टर में 10,900 किलो कार्गो भरा जा सकता है। इस हेलीकॉप्टर के नीचे तीन हुक लगे हुए हैं। जिनमें कुल मिलाकर 13 हजार किलो तक का वजन लटकाया जा सकता है। इन हुकों से हल्के वाहन, तोप और शेल्टर भी लटकाकर ले जाए जा सकते हैं। चिनूक को दो पायलट और एक फ्लाइट इंजीनियर आपरेट करते हैं। साथ ही इस हेलीकॉप्टर में तीन मशीनगन तैनात की जा सकती हैं। दो मशीनगन हेलीकॉप्टर के दरवाजे पर लगाई जा सकती हैं और तीसरी मशीनगन को कार्गो लोडिंग की जगह लगाया जाता है। सीएच-47 एफ दोहरे इंजन वाला है और 175 मील प्रति घंटे की गति से उड़ सकता है। इसलिये इन हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल पर्वतीय इलाकों पर भारी वजन वाली तोपों, वाहनों और अन्य बख्तरबंद वाहनों को तैनात करने में लिया जाता है। खास बात यह है कि, चिनूक का उपयोग मानवीय और आपदा राहत अभियानों में भी किया जाता है।
गौरतलब है कि, पहले चिनूक ने 1962 में उड़ान भरी थी। यह हेलीकॉप्टर अमेरिकी सेना की एक महत्वपूर्ण ताकत है। इस हेलीकॉप्टर का उपयोग वियतनाम से लेकर इराक तक के युद्धों में किया गया है। बोइंग ने इसी सप्ताह ही अमेरिका के फिलाडेल्फिया में चिनूक हेलिकॉप्टर की पहली खेप आधिकारिक रूप से भारत को सौंप दी थी। सौदे के अनुसार, इस साल के अंत तक बोइंग भारत को सभी अपाचे और चिनूक हेलिकॉप्टर सौंप देगा। इससे वायुसेना की ताकत में काफी बढ़ोत्तरी हो जाएगी। बोइंग के अनुसार, अपाचे दुनिया के सबसे अच्छे लड़ाकू हेलिकॉप्टर माने जाते हैं। वहीं, चिनूक हेलिकॉप्टर से बहुत ऊंचाई पर उड़ान भरी जा सकती है। अमेरिकी सेना लंबे समय से अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर्स का इस्तेमाल कर रही है। इससे पहले बोइंग ने पिछले साल वायुसेना के पायलटों और फ्लाइट इंजीनियरों को चिनूक हेलिकॉप्टर उड़ाने की ट्रेनिंग भी दी थी।
चिनूक भारतीय वायुसेना को बहुत मजबूती देने वाला है क्योंकि अभी तक हमारी सेना एमआई-17 जैसे मध्यम श्रेणी के लिफ्ट हेलीकॉप्टर्स पर ही आश्रित है। चिनूक हेलीकॉप्टर पुराने पड़ चुके एमआई-26 की जगह लेंगे। अभी जिस तरह से रक्षा सौदों को लेकर राजनीति हो रही है और राफेल सौदे जैसे देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों से वोट बटोरने की कोशिशें हो रही हैं, ये काफी बैचेन करने वाली हैं लेकिन चिनूक के भारत आने से अब देश की ताकत ही नहीं बल्कि सेना का मनोबल भी बढ़ा है।