14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के काफिले पर भीषण आतंकवादी हमला हुआ जिसमें सेना के 44 जवान शहीद हो गये। इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली है और इस हमले के पीछे जिस आत्मघाती आतंकी का नाम आदिल अहमद डार है। इस हमले से पूरे देश में गुस्सा है और सभी पाकिस्तान के खिलाफ सडकों पर उतरकर नारेबाजी भी कर रहे हैं। देश में गुस्से और उदासी का माहौल है लेकिन कुछ अवसरवादी राजनेता इस हमले का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए करना चाहते हैं और वो इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं। इस माहौल में भी ममता बनर्जी की गंदी राजनीति सामने आई है। वो अब पुलवामा हमले के लिए वर्तमान सरकार को ही दोषी ठहरा रही हैं।
कोलकाता में एक संवाददाता सम्मेलन में ममता बनर्जी ने सरकार से सवाल करते हुए कहा , “मुझे संदेह है और आश्चर्य है कि चुनाव से ठीक पहले पुलवामा हमला कैसे हुआ? इसे रोकने के लिए पहले कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?” ममता ने कहा, चुनाव से पहले हमले की आशंका को लेकर सरकार ने 8 फरवरी को खुफिया एजेंसियों से इनपुट लिए थे। इसके बावजूद कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? 78 काफिले को एक साथ जाने की अनुमति क्यों दी गई? ”
ममता बनर्जी यही नहीं रुकीं, उन्होंने आगे कहा,“ हमें रिपोर्ट मिली है कि आरएसएस के कुछ प्रचारक रात में सड़कों पर राष्ट्रीय ध्वज लिए घूम रहे हैं और ऐसा करके वो परेशानी को और बढ़ा रहे हैं। हम राष्ट्रवाद के नाम पर इस तरह की गतिविधियों का समर्थन नहीं करते हैं। हम लोगों से आग्रह करते हैं कि वो ऐसी गतिविधियों के शिकार न हों। ” देश की जनता जवानों पर हुए हमले से दुखी और वो आतंक के खिलाफ एकजुट होकर पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में यहां भी आरएसएस पर जोर देने के क्या मायने हैं?
ऐसे समय में जब विपक्ष को भारत सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए और देश के दुश्मनों को ये संदेश देना चाहिए कि वो इस तरह के घिनौने कृत्य करके भारत को कमजोर नहीं कर सकते हैं, लेकिन विपक्ष ऐसा न करके सरकार पर ही आरोप लगाकर अपनी स्वार्थ की राजनीति का एक और निम्न स्तर दर्शारहा है। विपक्ष कभी कहता है कि पीएम मोदी ने ही चुनाव पास देखकर हमले करवाए तो कभी कहते हैं कि वो कश्मीरियों के साथ बुरा व्यवहार कर रही है। कभी पाकिस्तान के ही बोल हमारे नेता कहते हुए सुनाई देते हैं। ममता बनर्जी सीधे पुलवामा के आतंकी हमले के लिए पीएम मोदी को जिम्मेदार ठहरा रही हैं तो वहीं एक्टर से राजनेता बने कमल हासन PoK को ही आजाद कश्मीर बता रहे हैं, कुछ शहीदों का ही मजाक उड़ा रहा हैं, कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेता पाकिस्तान के लिए सॉफ्ट कार्नर दिखा रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से अब ममता बनर्जी भी पाकिस्तान के नैरेटिव का समर्थन कर रही हैं वो भी ऐसे समय में जब भारत पाक के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की कोशिश आकर रहा है।
वैसे ममता बनर्जी के इस रुख को देखकर कोई हैरानी भी नहीं हो रही। ये वही ममता बनर्जी हैं जिन्होंने वोटबैंक की राजनीति के लिए शहीदों का अपमान किया था। साल 2016 के दिसंबर माह में पश्चिम बंगाल की मुखिया ममता बनर्जी ने भारतीय सेना को राजनीति के गंदे खेल में घसीटा था और पश्चिम बंगाल में हुए सैन्य अभ्यास को उन्होंने तख्तापलट करने की कोशिश करार दिया था। उन्होंने सेना की तैनाती को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ कोर्ट जाने की भी बात कही थी।
यही नहीं अभी हाल ही में उन्होंने सीबीआई के अधिकारियों पर ही हमला बोल दिया और केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए हाईवोल्टेज ड्रामा किया था। उनकी राजनीतिक छवि का इसपर नकरात्मक प्रभाव पड़ा था। अब अपनी इसी छवि को बेहतर बनाने के लिए वो सिआरपीएफ जवानों की बड़ी हितैषी बन रही हैं।