उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के कवाल में दो भाइयों की हत्या के मामले में बुधवार को कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को दोषी करार दिया है। जिले के एडीजे-7 कोर्ट के जज हिमांशु भटनागर ने सभी आरोपियों को न्यायिक हिरासत में लेने का फैसला सुनाया है। इन आरोपियों की सजा का ऐलान शुक्रवार को होगा। बता दें कि मुजफ्फरनगर के कवल में दो भाइयों की हत्या के मामले में कुल 8 आरोपी थे जिसमें से शाहनवाज की पहले ही मौत हो चुकी है। करीब पांच साल बाद इस मामले में फैसला आया है। इस मामले में पहले ही न्याय हो जाता अगर अखिलेश यादव ने अपने शासनकाल में लापरवाही न बरती होती। अगर अखिलेश यादव ने अपना राजनीतिक हित न देखा होता तो शायद इस दंगे में इतनी मौते भी न हुई होती।
क्या था पूरा मामला?
करीब पांच साल पहले 27 अगस्त, 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल में सचिन, गौरव और शाहनवाज के बीच झगड़े के बाद मुजफ्फरनगर और शामली में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। झगड़े की शुरुआत शाहनवाज और मुजस्सिम की बाइक से गौरव की साइकिल की टक्कर से हुई थी। इस टक्कर से गुस्साए शाहनवाज के साथ मिलकर कुछ और लोगों ने मलिकपुरा के दोनों भाइयों सचिन और गौरव की पीट पीटकर बेहरमी से हत्या कर दी थी। इसके बाद मुजफ्फरनगर और शामली में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और सैंकड़ों लोग बेघर हो गए थे। इस दौरान आरोपी पक्ष के शाहनवाज की भी मौत हो गयी थी। मामूली कहासुनी ने भीषण रूप ले ले लिया जिसने कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया।
इस हिंसक घटना के बाद मृतक गौरव के पिता रविंद्र सिंह ने जानसठ कोतवाली में कवाल के मुजस्सिम व मुजम्मिल पुत्र नसीम, फुरकान पुत्र फजला, जहांगीर, नदीम, शाहनवाज (मृतक) पुत्र सलीम, अफजाल व इकबाल पुत्र बुंदू के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाया था। मृतक शाहनवाज के पिता ने भी सचिन और गौरव के अलावा उनके परिवार के 5 सदस्यों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था। इस मामले की जांच स्पेशल इन्वेस्टिगेशन सेल कर रही थी जिसने अपनी रिपोर्ट में शाहनवाज को को आरोपी पाया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से अधिवक्ता अनिल जिंदल ने दस गवाह और सबूत भी पेश किए। इसके बाद कोर्ट ने इन सभी आरोपियों को बलवे की धारा 147,148,149, हत्या (302) और धमकी देने की धारा (506) में दोषी करार दिया है और शुक्रवार को कोर्ट इन को सजा सुनाएगी।
तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार पर लगे थे गंभीर आरोप
बता दें कि इस घटना के लिए तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है। इस हिंसा को लेकर ये तक कहा जाता है कि अगर तत्कालीन सरकार ने लापरवाही न बरती होती तो शायद ये दंगे भड़के ही न होते। तत्कालीन अखिलेश सरकार पर वर्ष 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों को बढ़ावा देने के गंभीर आरोप भी लगे थे साथ ही ये तक कहा गया था कि अखिलेश यादव ने दंगों का फायदा अपनी राजनीति के लिए भी किया था। पूर्व अखिलेश सरकार पर एक ख़ास समुदाय को फायदा पहुंचाने के भी आरोप लगे थे। कहा जाता है कि अखिलेश ने अल्पसंख्यकों को अपनी ओर करने के लिए कथित रूप से हिन्दुओं पर आतंक को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। अखिलेश यादव की सरकार की भूमिका को एक वरिष्ट पत्रकार विवेक सिन्हा ने मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर बनाई गयी अपनी एक डाक्यूमेंट्री में दिखाया भी है। इस डाक्यूमेंट्री का नाम ‘मुजफ्फरनगर, आखिर क्यों?’ है। इस डाक्यूमेंट्री द्वारा उन्होंने मुज़फ्फरनगर दंगे के दौरान तत्कालीन सपा सरकार के उदासीन रवैये और हालातों पर काबू न कर पाने में पूर्व सरकार की असफलताओं पर प्रकाश डाला है। इस डाक्यूमेंट्री में ये भी दिखाया गया है कि कैसे पूर्व राज्य सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगे का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए किया था, कैसे उस समय निर्दोष हिन्दू युवाओं के साथ अन्याय हुआ था। उस समय लोगों के खिलाफ फर्जी मुकदमे भी दर्ज किये गये थे जिसे रद्द करने की मांग लंबे समय से चल रही है।
हालांकि, जनवरी माह में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों में दर्ज 38 मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया है लेकिन विपक्ष यहां भी उनकी आलोचना करने से बाज नहीं आया। अगर हम उस दौरान सपा सरकार के दंगों के प्रति रवैये को देखें तो पाएंगे कि वर्तमान की योगी सरकार का मुजफ्फरनगर दंगों में दर्ज मुकदमों को वापिस लेने का फैसला सही है। योगी सरकार सिर्फ उन मामलों को ही वापस लेगी जो फर्जी हैं। हत्या और दंगे भडकाने से जुड़े मामलों को वापस नहीं लेगी जो कोर्ट में विचाराधीन हैं।