प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात्,
समुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् ।
भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारये
न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥
(अगर हम चाहें तो मगरमच्छ के दांतों में फसे मोती को भी निकाल सकते हैं, साहस के बल पर हम बड़ी-बड़ी लहरों वाले समुद्र को भी पार कर सकते हैं, यहाँ तक कि हम गुस्सैल सर्प को भी फूलों की माला की तरह अपने गले में पहन सकते हैं। लेकिन एक मूर्ख को सही बात समझाना असम्भव है।)
ऐसा लगता है कि एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के साथ ये पंक्तियां बिल्कुल सही बैठती है। सिर्फ रवीश के साथ ही नहीं बल्कि पूरी लेफ्ट-लिबरल मीडिया और विपक्ष के साथ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। बात यह है कि, हाल ही में मोदी सरकार ने अपना आखिरी बजट पेश किया है। हालांकि, यह था तो अंतरिम बजट लेकिन इसने जनता का मन मोह लिया। मोदी सरकार के इस बजट में हर वर्ग का ख्याल रखा गया। लेकिन यह बजट विपक्षी एकता वाले गठबंधन के गले नहीं उतर रहा है। ऐसे में विपक्ष ने हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया। कमियां ढूंढ़ना शुरू किया। वहीं विपक्ष के साथ जीने-मरने की कसमे खा चुकी लेफ्ट-लिबरल मीडिया ने भी विपक्ष का पूरा साथ दिया।
लेफ्ट-लिबरल मीडिया विपक्ष के प्रति कितनी वफादार है, उसका एक नमूना हाल ही में सामने निकलकर आया है। खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश करने के लिए फेमस एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने एक विचित्र गुणा-गणित करके यह सिद्ध किया है कि देश का रक्षा बजट 2016 के स्तर से भी कम हो गया है। रवीश ने दो लोगों के ट्वीट्स के हवाले से सवाल खड़ा किया कि देश का रक्षा बजट 1962 के स्तर से भी कम हो गया है। एक ट्वीट के हवाले से उन्होंने कहा कि रक्षा बजट जीडीपी का 2 प्रतिशत ही है जो 1962 से कम है। इस तरह हर बार की तरह उन्होंने इस बार भी देश की जनता को गुमराह करने का प्रयास किया और हर बार की तरह इस बार भी हम उनके एजेंडे का भंडाफोड़ करने जा रहे हैं।
बता दें कि मोदी सरकार के आने के बाद रक्षाबजट लगातार बढ़ता ही गया है। यहां तक कि इस साल देश का रक्षा बजट 3 लाख 18 हजार 931 करोड़ रुपये पहुंच गया है। इसी बजट में 1 लाख 8 हजार 248 करोड़ रुपये हथियार और एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए हैं।
इसे अगर हम और भी सरल ढंग से समझें तो पाते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस साल देश का डिफेंस बजट 6.87 प्रतिशत बढ़ा है। जहां तक रवीश कुमार द्वारा 1962 की तुलना करने की बात है तो बता दें कि उस समय विश्वबैंक द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश की कुल जीडीपी 41.599 बिलियन डॉलर थी जो 2018 में बढ़कर 2.848 ट्रिलियन डॉलर हो चुकी है। यह आंकड़ा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी किया गया है। इसी तरह से नियमित अनुपात में और महंगाई बढ़ने के साथ-साथ रक्षा बजट में भी पर्याप्त वृद्धि होती आई है। इसलिए 2018 के रक्षा बजट की 1962 के आंकड़ों के साथ तुलना करना केवल जनता को बरगलाने का तरीका है। इस तरह की भ्रामक खबरें फैलाना रवीश कुमार जैसे पत्रकारों का नियमित काम बन चुका है। देश को ऐसी अफवाहों से सावधान रहने की जरूरत है।
आइए हम आपको ग्राफ के माध्यम से समझाते हैं, जिससे आप आसानी से समझ सकते हैं कि कौन सा देश अपनी सैन्य क्षमता पर कितना खर्च करता है।
इस तस्वीर से आपको समझ आ गया होगा कि भारत अपनी सैन्य क्षमता पर कितना खर्च करता है। बता दें कि 2014 में देश का रक्षा बजट 2.039 ट्रिलियन डॉलर था जो आज की तारीख में बढ़कर 2.848 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। जो यह साफ बताता है कि रक्षा बजट में भारी-भरकम मात्रा की बढ़ोत्तरी हुई है। इसके बावजूद लेफ्ट-लिबरल मीडिया ऐसे घटिया तरीकों से देश की जनता को भ्रमित करने का प्रयास करती आ रही है।