कश्मीर में हुर्रियत के 18 नेताओं व 155 अन्य अलगाववादी नेताओं से छीन ली गई सुरक्षा

कश्मीर अलगाववादी

(PC: Lastly)

पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुए बड़े आतंकी हमले के बाद अब जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कश्मीर के 18 हुर्रियत नेताओं व 155 अन्य कश्मीरी नेताओं को दी गई सुरक्षा वापस ले ली है। इससे पहले केंद्र सरकार हुर्रियत के उदारवादी गुट के चेयरमैन मौलवी मीरवाइज उमर फारूक समेत पांच अलगाववादियों की सुरक्षा वापस ली थी और अब बुधवार को सभी अन्य अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा को भी वापस ले लिया है। ये फैसला बुधवार की शाम जम्मू-कश्मीर में गृह विभाग की उच्च स्तरीय बैठक में लिया गया। इस बैठक में मुख्य सचिव, पुलिस प्रशासन व गृह विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे। बैठक की अध्यक्षता अध्यक्षता राज्यपाल के सलाहकार के विजय कुमार की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य में जिन प्रमुख हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस ली गई है उनमें एसएएस गिलानी, अगा सैयद मौसवी, मौलवी अब्बास अंसारी, यासीन मलिक, सलीम गिलानी, शाहिद उल इस्लाम, जफर अकबर भट, नईम अहमद खान, फारुख अहमद किचलू, मसरूर अब्बास अंसारी, अगा सैयद अब्दुल हुसैन, मोहम्मद मुसादिक भट और मुख्तार अहमद वजा, अब्दुल गनी शाहबिलाल लोन, हाशिम कुरैशी और शबीर शाह शामिल हैं।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 155 नेताओं और कार्यकर्ताओं की सुरक्षा वापस ले ली गयी है। ये सुरक्षा उन्हें दी गयी हैं जिन्हें जरूरत है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के करीबी वाहिद मुफ्ती और पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल का नाम भी शामिल है। इन अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में से सौ से ज्यादा गाड़ियां व 1000 पुलिसकर्मी लगे थे। अब ये सभी पुलिस कर्मी व वाहन पुलिस के सामान्य कामकाज के लिए इस्तेमाल किए जाएंगे।

गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार, ‘ऐसा महसूस किया गया कि अलगाववादी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराया जाना राज्य के संसाधनों की बर्बादी है, इन्हें अच्छे कार्यों पर खर्च किया जा सकता है। देश में रहकर देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले इन अलगावादियों की सुरक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते थे। इसीलिए 155 राजनेता व कार्यकर्ताओं से सुरक्षा वापस ले ली गयी है।’ वैसे भी जब लोग ये देश हित ही नहीं चाहते तो इन्हें सुरक्षा प्रदान कर देश का पैसा बर्बाद किया जा रहा था जो अब सही उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किये जा सकेंगे।

अब जब सरकार ने इन नेताओं को दी जाने वाली सुरक्षा को वापस ले लिया है तो हुर्रियत की ओर से ये बयान सामने आया कि उन्होंने कभी सुरक्षा मांगी ही नहीं थी। उनका कहना है कि अलगाववादी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का फैसला सरकार था उन्होंने इस तरह की कोई मनाग नहीं की थी। उनका ये तक कहना है कि सुरक्षा वापस लेने के बाद भी उनके रुख में कोई बदलाव नहीं  आएगा और न इससे जमीनी हालात पर कोई असर पड़ेगा। इस बयान में भी वो यही संदेश दे रहे हैं कि वो देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहेंगे। हालांकि, वो अपने इस जुमले पर कितने दिन कायम रहते हैं वो समय के साथ पता चल ही जायेगा।ये अलगाववादी नेता घाटी में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का फंडिंग करते हैं। पत्थरबाजों द्वारा सुरक्षा बलों पर हमला हमला करवाने और आतंक की ओर पत्थरबाजों को धकेलने का कम करते हैं। ऐसे में इन अलगाववादियों को सुरक्षा मुहैया करना देश में एक ऐसे लोगों को बढ़ावा देना है जो देश के ही विरोध में है।

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