भारत के इस कदम से बिना लड़ाई ही बर्बाद हो जाएगा पाकिस्तान, रेगिस्तान बन जाएगी पाक सरजमीं

पानी पाकिस्तान

PC : Times Now

क्यों ना भारत पुलवामा हमले का ऐसा बदला ले कि पाकिस्तान दोबारा इस तरह का हमला करवाने से पहले हजार बार सोचे और उसकी सरजमीं पर चल रहे आतंकी संगठनों की भारत से नजर मिलाने से पहले रूह कांप जाए। जी हां, भारत के पास ऐसा करने का पूरा सामर्थ्य है और इकसे लिए हमें सैन्य कार्रवाई करने की भी जरूरत नहीं है। सिर्फ पाकिस्तान जाने वाला पानी ही रोक दिया जाए तो पाकिस्तान के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी।

अगर भारत सिंधु जल समझौते को तोड़ दे और भारत से निकलने वाली सिंधु बेसिन की नदियों का पानी पाकिस्तान को देना बंद कर दे, तो पाकिस्तान की कृषि और जल आधारित उद्योग-धंधे चौपट हो जाएंगे। बता दें कि, पाकिस्तान की आधी से ज्यादा खेती इन्हीं नदियों के पानी पर निर्भर है।

दरअसल, दो नदियों को छोड़कर सिंधु बेसिन की सभी नदियां भारत से ही निकलती हैं। दो नदियां सिंधु और सतलुज चीन से निकलती हैं। जो नदियां भारत से निकलती हैं वे रावी, व्यास, सतलुज, सिंधु, चेनाब और झेलम है। सिंधु जल समझौते के अनुसार पिछले 58 सालों से भारत सिंधु, चेनाब और झेलम के पानी को पाकिस्तान जाने दे रहा है।

यदि भारत पाकिस्तान में जाने वाली इन तीनों निदयों (सिंधु, चेनाब और झेलम) का पानी रोक दे तो पाकिस्तान का बड़ा इलाका रेगिस्तान बन जाएगा। पाक के एक बड़े हिस्से में लोग प्यासे ही रह जाएंगे। वहां बिजली को लेकर हाहाकार मच जाएगा क्योंकि पानी न मिल सकने के कारण वहां के कई बिजली प्रोजेक्ट बंद हो जाएंगे। पाकिस्तान की खेती तबाह हो जाएगी और वहां किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। जो पाकिस्तान पहले से ही कर्ज और गरीबी से जूझ रहा है वह यह झटका सहन नहीं कर पाएगा। इस तरह पाकिस्तान फिर कभी भारत पर आतंकी हमले करवाना तो दूर वह हमारे देश के ऊपर आंख उठाकर भी नहीं देख पाएगा।

भारत सरकार और यहां की जनता के मजबूत इरादे सिंधू जल समझौते को तोड़ सकते हैं। हालांकि, पिछले 58 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ है। पाकिस्तान को डर था कि भारत के साथ अगर युद्ध होता है तो वह यह समझौता तोड़ कर पाकिस्तान में सूखे का कहर ढा देगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारत और पाक के बीच तीन युद्ध हुए, लेकिन भारत ने एक बार भी यह समझौता नहीं तोड़ा। दोनों देशों के बीच पहली जंग 1965 में हुई। 1971 में बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई हुई और 1999 में करगिल युद्ध हुआ। साथ ही कई आतंकी हमले होने के बाद भी सिंधु जल संधि बरकरार ही रही। हालांकि, 2002 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इस संधि को खत्म करने की मांग जरूर उठी थी, लेकिन हुआ नहीं। यह भारत की मानवीयता ही है कि, भारत इस समझौते का सम्मान कर रहा है लेकिन पाकिस्तान भारत के इस बड़प्पन की कतई कद्र नहीं कर रहा।

बता दें कि विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत और पाक के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था। उस समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। इस समझौते के अनुसार भारत द्वारा पाक को सिंधु, झेलम और चेनाब नदी का पानी देना तय हुआ था।

बता दें कि, सिंधु जल समझौते में भारत घाटे में ही रहा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि, इस समझौते से भारत को एकतरफा नुकसान हुआ है और उसे छह सिंधु नदियों की जल व्यवस्था का महज 20 फीसदी पानी ही मिला है। इस समझौते पर हमेशा से भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद रहा है। भारत का कहना है कि 1960 की सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन पर पक्षपात हुआ है। यह मामला विश्व बैंक के तत्वावधान में एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण में भी भेजा जा चुका है। इस मामले पर भारत सरकार ने यह कहा था कि कोई भी समझौता ‘एकतरफा’ नहीं हो सकता। गौरतलब है कि, इस समय इन नदियों का 80 फीसदी से ज्यादा पानी पाकिस्तान को ही मिलता है। भारत चाहे तो समझौता तोड़कर इन सभी नदियों के पानी को अपने इस्तेमाल के लिए रोक सकता है।

पुलवामा हमले के बाद गुरुवार को भारत ने इस मुद्दे को उठाया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि, भारत ने पाकिस्‍तान में जाने वाले अपने पानी को रोकने का फैसला किया है। गडकरी उस पानी की बात कर रहे है जो भारत के हिस्से का पानी है लेकिन पाक चला जाता था। गडकरी का कहना है कि, वे इस पानी को मोड़कर इसे जम्मू कश्मीर और पंजाब को देंगे।

वहीं पाक को एक बड़ी चेतावनी देते हुए भारत की ओर से यह भी कहा गया है कि, कोई भी संधि दोनों पक्षों के बीच ‘आपसी सहयोग और विश्वास’ पर ही टिकी होती है। ऐसा माना जा रहा है कि, यह भारत की पाकिस्तान पर दबाव बनाने की रणनीति है। हालांकि, जिस तरह से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बड़ा है उससे राजनीतिक गलियारों में इस समझौते के टूटने के भी कयास लगाए जा रहे हैं। विशेषज्ञ इस समझौते को तोड़ने की दिशा में भारत के सामने चुनौती यह बता रहे है कि, इस कदम की दुनिया के शक्तिशाली देश आलोचना करेंगे। पाक इस मामले में भारत की ओर से कुछ आहट पाते ही अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए दौड़ पड़ेगा। पाकिस्तान ने पिछले साल जुलाई में भारत की तरफ से झेलम और चिनाब नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण करने तैयारी की आशंका में ही अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग कर दी थी। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि, यदि भारत ‘पश्चिमी नदियों’ के पानी का भंडारण शुरू कर दे (भारत समझौते के तहत ही 36 लाख एकड़ फीट पानी का इस्तेमाल कर सकता है) तो वो ही पाकिस्तान के लिए कड़ा संदेश होगा।

वहीं इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि आज पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सहित पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी पुलवामा हमले के पीछे जैश का हाथ बताया है। प्रधानमंत्री मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार पाकिस्तान को घेर रहे हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियां अब पहले से काफी बदल चुकी है। आज के समय में अगर भारत सिंधु जल संधी तोड़ता है तो दुनिया के कई बड़े देश इसके लिए भारत का सपोर्ट करेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है। हो सकता आने वाले समय में भारत पाकिस्तान के खिलाफ यह कदम उठाए और ऐसा हुआ तो यह पाकिस्तान पर भारत का सबसे बड़ा प्रहार होगा।

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