पिछले काफी समय से दिल्ली के मुखिया अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिल बैजल के बीच जंग चल रही है। इन दोनों के मामलों पर आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया जिससे केजरीवाल को बड़ा झटका लगा है। इस फैसले से नाराज केजरीवाल ने इसे संविधान के खिलाफ बताया और कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठा दिए। ऐसा करके उन्होंने कोर्ट के फैसले का न सिर्फ अपमान किया है बल्कि देश की न्यायिक व्यवस्था पर भी सवाल उठाया है।
Delhi CM Arvind Kejriwal on SC rules in favour of LG in 4 of 6 issues in Delhi vs LG matter: If a government can't even transfer its officers, how is it supposed to function? The party that has 67 seats doesn't have the rights but the party who won 3 seats has those rights pic.twitter.com/c4oogzOqeT
— ANI (@ANI) February 14, 2019
दरअसल, दिल्ली सरकार ने राज्य के करप्शन के हर मामले में जांच के अधिकार की मनाग की थी लेकिन कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि दिल्ली एसीबी के बॉस एलजी यानी उपराज्यपाल होंगे और दिल्ली एंटी करप्शन ब्रांच (ACB) केंद्र के अफसरों पर कार्रवाई नहीं कर सकती। इसपर कार्रवाई करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास ही रहेंगे। वहीं राजधानी में इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पास ही रहने दिया है। इसका मतलब ये है कि इस बोर्ड का अधिकारी कौन होगा और किस बोर्ड में पोस्टिंग होगी ये दिल्ली सरकार तय कर सकती है। कोर्ट के इस फैसले के बाद एसीबी को लेकर चल रहा विवाद थम गया है लेकिन केजरीवाल इससे बिलकुल खुश नहीं हैं।
दिल्ली सरकार बनाम एलजी अधिकार विवाद में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के बाद ये साफ़ हो गया है कि अफसरों पर नियंत्रण एलजी का होगा। पिछले साल 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार बनाम एलजी अधिकार विवाद में सिर्फ अनुच्छेद-239 एए पर संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की थी। अब इसपर अपना पूरा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार ने याचिका दायर की थी जिसपर आज फैसला आया है। इसमें राज्यपाल के निर्देश जिसमें एसीबी पुलिस को केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ एक्शन न लेने, सतर्कता निदेशालय की तरफ से जारी अधिसूचना, जांच कमीशन की नियुक्ति जैसे मुद्दे शामिल थे। इसपर कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जांच कमीशन की नियुक्ति का अधिकार केंद्र के पास रहेगा दिल्ली सरकार कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट, 1952 के तहत इसकी नियुक्ति नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल किसी बड़े मुद्दे पर अपनी राय बना सकते हैं लेकिन वो रूटीन के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। हां वो दिल्ली से जुड़े उन बुनियादी मसलों पर अपनी राय रखनी चाहिए जोकि राष्ट्रपति तक जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए केजरीवाल ने इसे संविधान के खिलाफ बताया। केजरीवाल ने कहा, ‘ये कैसा फैसला है। आखिर किस राज्य की चुनी हुई सरकार ट्रांसफर-पोस्टिंग नहीं करती है ? ऐसे कैसे सरकार चलेगी। सबसे बड़ा जनतंत्र है, दिल्ली की जनता का फैसला हमारे साथ है। हमारी पार्टी के पास 67 सीटें हैं लेकिन पावर उनके पास है, जिनके पास केवल 3 विधायक हैं। ये फैसला संविधान के खिलाफ है और हम इसके लिए लड़ाई जारी रखेंगे। ‘ केजरीवाल द्वारा इस तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाने पर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने इसे कोर्ट का अपमान बताया। उन्होंने कहा, जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं वो उनकी हार को दर्शाता है। आज केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है बल्कि बल्कि ये कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट है। हम लोग उनके खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज करवाने पर विचार कर रहे हैं।
वास्तव में इस तरह से केजरीवाल का न्यायिक व्यवस्था के फैसले पर सवाल उठाना कोर्ट का अपमान है। विपक्षी पार्टियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाने का जो ट्रेंड चल रहा है वो सच में शर्मनाक है। इस बात को जानते हुए कि कोर्ट बिना सबूतों और तथ्यों के फैसला नहीं सुनाता है। अगर एक मुख्यमंत्री देश के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाएगा तो आम जनता का भी भरोसा डगमगा सकता है। उन्हें अपनी हार को विनम्रता से स्वीकार करनी चाहिए।