1984 के सिख दंगों की होगी दोबारा जांच, पूर्व डीजी की अध्यक्षता में गठित हुई एसआईटी

योगी 1984 सिख एसआईटी

PC: Punjab Kesari

कानपुर में 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान पीड़ित सिख समुदाय को न्याय प्रदान करने की दिशा में योगी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन परिस्थितियों की जाँच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है, जिनमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगे भड़के।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, यूपी के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक अतुल की अध्यक्षता में चार-सदस्यीय एसआईटी का गठन किया गया है और इससे छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है। एसआईटी के अन्य सदस्यों में सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश सुभाष चंद्र अग्रवाल और सेवानिवृत्त अतिरिक्त निदेशक योगेश्वर कृष्ण श्रीवास्तव शामिल हैं। एसआईटी 6 महीने में जांच करके अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी। इसमें उस दौरान दर्ज मुकदमों की पड़ताल के साथ ही जिन मामलों में आरोपियों को सजामुक्त किया गया है। उनकी भी दोबारा पड़ताल की जाएगी।

एसआइटी की जांच में जघन्य अपराध के मामलों को प्राथमिकता दी जाएगी। वहीं अगर जरूरत पड़ी तो सीआरपीसी 173(8) के तहत मामले की जांच होगी। ऐसे मामले जिनमें जरूरत के बावजूद रिट या अपील नहीं की गई, एसआइटी उन्हें कोर्ट के सामने पेश करने की सिफारिश भी करेगी।

योगी सरकार के फैसले के बाद दोशियों को कड़ी सजा मिलने की उम्मीद की जा रही है। इससे पहले, 34 साल की लंबी देरी के बाद, सिख समुदाय को अंततः कुछ राहत और न्याय तब मिला था जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के आरोपी कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को जेल भेजा था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस कांग्रेसी नेता को आजीवन कारावास की सजा दी है। इसने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें उसे पहले बरी कर दिया गया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने उन पर हत्या के अपराध, समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे आरोप लगाये थे। जस्टिस एस मुरलीधर और विनोद गोयल की पीठ ने पिछले साल 29 अक्टूबर को सीबीआई, सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों और दोषियों द्वारा दायर अपील पर सुनवाई के बाद फैसले को पलटा था। सज्जन कुमार की गिरफ्तारी एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद बनी एसआईटी की बड़ी सफलता थी।

इससे पहले पिछले साल नवंबर में दिल्ली की एक अदालत ने दोषियों में से एक यशपाल सिंह को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि एक अन्य दोषी, नरेश सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। दोनों दोषियों पर न्यायालय द्वारा 35 लाख का जुर्माना भी लगाया गया था।

इससे पहले, 2013 में ट्रायल कोर्ट ने पांच अन्य लोगों को दोषी ठहराया था। कोर्ट ने पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और दो अन्य को दिल्ली के राज नगर में एक परिवार के पांच सिख सदस्यों की निर्मम हत्या के मामले में दोषी ठहराया था।

1 नवंबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या होने के बाद कानपुर में हुए सिख दंगों में कम से कम 125 लोग मारे गए थे। अगस्त 2017 में, शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को दंगों की एसआईटी जांच की मांग वाली याचिका पर एसआईटी बनाने के लिए नोटिस जारी किया था।

दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले और केंद्र सरकार के निरंतर प्रयास से सिख परिवारों को न्याय मलने की उम्मीद है क्योंकि 1984 के दंगों के दौरान सबसे जघन्य अपराधियों को सजा मिल रही है। भाजपा सरकार 1984 के दंगों के दौरान पीड़ित सिख समुदाय को न्याय प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और योगी सरकार का यह कदम पीड़ितों को जल्द ही न्याय दिलाएगा।

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