लोकसभा चुनाव नज़दीक है और ऐसे में सभी पार्टियों की निगाहें राजनीतिक दृष्टि से सबसे अहम् राज्य उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं। 543 सीटों वाली संसद में 80 सांसद उत्तर प्रदेश से आते हैं, इसलिए ऐसा होना स्वाभाविक भी है। इन चुनावों में उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। एक तरफ सपा-बसपा-आरएलडी का महागठबंधन है तो दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी भी अकेले चुनाव में कूदकर अपनी महत्वकांक्षाओ को पूरा करने का ख्वाब देख रही है। वहीँ भाजपा भी वर्ष 2014 को दोहराने का भरपूर प्रयास कर रही है। उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण वहां की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाते हैं लेकिन इस बार के समीकरण महागठबंधन के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर महागठबंधन के घटक दल आरएलडी को ही ले लीजिये, जिसे गठबंधन में तीन सीटें मिली हैं। ये तीन सीटें मथुरा, मुजफ्फरनगर एवं बागपत हो सकती हैं। पार्टी का वोट बैंक मुख्य तौर पर जाट समुदाय ही रहा है। लेकिन आंकड़ों की बात करें तो जाट समाज लगातार पार्टी मुखिया अजीत सिंह से दूरी बनाता जा रहा है। अगर हम वर्ष 2012 और वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजों का तुलनात्मक अध्यन्न करें, तो यह स्पष्ट होता है कि पार्टी के वोट शेयर में भारी कमी आई है। दरअसल, वर्ष 2012 में आरएलडी मात्र 46 सीटों पर लड़कर लगभग 18 लाख वोट हासिल करने में कामयाब हुई थी, लेकिन वर्ष 2017 में कुल 277 सीटों पर लड़कर भी वह मात्र 15 लाख वोट पाने में सफल हो पाई, यानि कुल पड़े वोटों का मात्र 1.78%।
इसी बीच उनकी एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें अजीत सिंह जाट समुदाय के कुछ लोगों से बातचीत करते नज़र आ रहे हैं। वीडियो में एक शख्स अजीत सिंह को कहता है कि वे उसी को वोट देंगे जो जाट समुदाय के साथ दुःख-सुख के समय खड़ा रहा है। इस साधारण सी बात पर अजीत सिंह भड़क गए और उस शख्स को बद्तमीज तक कह डाला। इस वीडियो को ट्वीट करते हुए विकास सारस्वत लिखते हैं ”एक जाट बुजुर्ग कहता है कि वे उसी को वोट देंगे जो उनके साथ अच्छे और बुरे समय में खड़ा रहा है। इस पर अजीत सिंह भड़क जाते हैं। वहां इकट्ठे हुए लोगों को वे दफा हो जाने को कहते हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जाट वोट अबकी बार किसके पक्ष में जाने वाली हैं।”
A Jat elder says they will vote for those who stand with them in the thick and thin. A furious Ajit flows into rage. Tells the gathering to get lost. This is for those who doubt where the Jat vote is heading. #UPDiary pic.twitter.com/xyuvlgI6O2
— Vikas Saraswat (@VikasSaraswat) March 29, 2019
अपने आप को दलितों की देवी कहने वाली मायावती की पार्टी बसपा के लिए भी कुछ अच्छी खबर नहीं है। उत्तर प्रदेश में एक अन्य दलित चेहरे का उभरना मायावती के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है। दरअसल, भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद रावण अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पहले ही जगजाहिर कर चुके हैं। वे वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं। ऐसे में वे बसपा के उम्मीदवार के वोट काटने का काम कर सकते हैं।
समाजवादी पार्टी भी इन चुनावों में पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं की नाराज़गी के चलते अपने अच्छे प्रदर्शन को लेकर आशंकित है। अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव पहले ही अलग पार्टी बनाकर यादवों का वोट काटने का काम करेंगे तो वहीँ उनके पिताजी विरोधी टीम की तरफ से खेलते नज़र आ रहे हैं। लोकसभा के अंतिम सत्र में वे पीएम मोदी की दिल खोलकर तारीफ कर चुके हैं और उनको दोबारा पीएम बनने की शुभकामनाएं भी दे चुके हैं। वहीँ निषाद पार्टी भी अब महागठबंधन को अलविदा कह चुकी है, जिससे की उसे निषाद समाज से मिलनी वाली वोटों का नुकसान हगा।
कुल मिलाकर तमाम तथ्य इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि महागठबंधन के लिए यह बिगड़ता जातीय समीकरण वोटों में नुकसान होने का बड़ा कारण बन सकता है। वहीँ आत्मविश्वास की भारी कमी के कारण महागठबंधन का भविष्य भी कुछ ज़्यादा उज्ज्वल नहीं दिखाई देता। विधानसभा चुनावों के समय समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था जबकि इस बार वह कांग्रेस को चारा तक नहीं डाल रही है। चुनावों से पहले ही वोटबैंक के बिखराव से जुझ रहे महागठबंध के लिए यह समय बिल्कुल ठीक नहीं कहा जा सकता।