अरुण जेटली ने अनुच्छेद 35ए को बताया ‘संविधान-भेद्य’, जल्द ही इसे खत्म करने के दिए संकेत

जेटली 35ए

PC: Dainik Bhaskar

पिछले कुछ समय से अनुच्छेद 35ए की वैधता को लेकर जोरदार बहस जारी है। जम्मू कश्मीर की राजनीतिक पार्टियां इसे जम्मू कश्मीर राज्य की सम्प्रभुता के लिए अनिवार्य मानती हैं तो वहीं दिल्ली में बैठी भाजपा सरकार इसे राज्य के विकास में एक बहुत बड़ी बाधा के रूप में देखती है। देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल अपने ट्वीट एवं फेसबुक पोस्ट के माध्यम से एक बार फिर इस बहस को पुनर्जीवित करने का काम किया। उन्होंने अनुच्छेद 35ए को ‘संविधान-भेद्य’ बताया यानि संविधान में कोई छेड़छाड़ किये बिना इस अनुच्छेद की वैधता को समाप्त किया जा सकता है। अपने इस पोस्ट के माध्यम से उन्होंने इस बात का संकेत दिया है कि सरकार 35ए को लेकर जल्द ही कोई बड़ा कदम उठाने सकती है।

दरअसल, अनुच्छेद 35ए को समझने से पहले आपको अनुच्छेद 370 के बारे में थोड़ा जानना होगा। वर्ष 1952 में दिल्ली की नेहरू सरकार एवं जम्मू कश्मीर के शेख अब्दुल्ला के बीच ‘दिल्ली समझौता’ हुआ जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। इसी दिल्ली समझौते के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद अनुच्छेद 370 में अनुच्छेद 35ए जोड़ा गया जिसमें जम्मू कश्मीर की राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे अपने नागरिकों को दोहरी नागरिकता दे सकते हैं, यानि एक नागरिकता जम्मू एवं कश्मीर की, और एक नागरिकता भारत की। इसी के साथ राज्य सरकार को सरकारी नौकरियों एवं सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में राज्य के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार दिया गया।

अरुण जेटली ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कई अहम बातों का उल्लेख किया। उन्होंने लिखा कि इस अनुच्छेद की वजह से कोई बाहर का भारतीय नागरिक जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकता जिसकी वजह से कोई भी निवेशक राज्य में पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं है, जिससे ना सिर्फ राज्य को वित्तीय घाटा होता है बल्कि रोजगार के अवसर भी समाप्त हो जाते हैं। दोहरी नागरिकता होने की वजह से राज्य के कई लोग देश के नागरिक नहीं बन पाते जिसकी वजह से वे विधानसभा चुनावों में तो वोट डाल पाते हैं लेकिन लोकसभा चुनावों में वोट डालने का उनके पास कोई अधिकार नहीं रहता।

जेटली अपनी पोस्ट में लिखते हैं कि राज्य के अस्पतालों में मशीनें बिना किसी इस्तेमाल के पड़ी रहती है क्योंकि कोई भी डॉक्टर जम्मू-कश्मीर में नहीं जाना चाहता। राज्य के छात्रों को सरकारी कॉलेजों में एडमिशन नहीं मिल पता जिसकी वजह से उनको भारत के अन्य राज्यों के अलावा नेपाल एवं भूटान जैसे देशों में जाकर कॉलेज में पढ़ाई करनी पड़ती है। उन्होंने अपनी सरकार की तारीफ करते हुए लिखा कि इस सरकार ने राज्य में अलगाववाद की जड़ों को मजबूत करने वाले सभी संगठनों को बंद करा दिया है। जमात-ए-इस्लामी एवं जेकेएलएफ जैसे अलगाववादी संगठनों के सभी कार्यकर्ता जेलों में हैं अथवा उनके दफ्तरों पर सरकार का कब्ज़ा है। उनके मुताबिक अभी सिर्फ अनुच्छेद 35ए ही ऐसी एक ‘बाधा’ बची है जिसकी वजह से राज्य में अलगाववाद की आग को हवा मिलती है।

अरुण जेटली ने अपने लेख के माध्यम से जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक संगठनों पर भी हमला बोला। उन्होंने लिखा की राज्य में आजादी के बाद सिर्फ तीन राजनीतिक दलों के पास सत्ता की चाबी रही है, जिनमें से दो दल श्रीनगर में आधारित है जबकि एक दल दिल्ली से है। उनका इशारा पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस एवं कांग्रेस की तरफ था। उनके मुताबिक इस तीन दलों ने राज्य का बेडा गर्क कर गया तथा अपने दलहित को साधने के लिए कभी राज्य के विकास की तरफ कोई ध्यान दिया ही नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शै कहा जब भी अनुच्छेद 35 को हटाने के लिए केंद्र सरकार कोई कदम उठाती है पीडीपी या कुछ अन्य विपक्षी पार्टियां विरोध करने के लिए तैयार हो जाति हैं। साथ ही जम्मू-कश्मीर की आम जनता को भी गुमराह करने का पूरा प्रयास करती हैं। हालांकि, इसे हटाने के लिए जरुर ही केंद्र सरकार प्रयास कर रही है और इसके संकेत वित्त मंत्री ने दे भी दिए हैं।

लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और देशभर में चुनाव प्रचार जारी है। चुनावों से ठीक पहले अरुण जेटली का अनुच्छेद 35ए की संवैधानिक वैधता को भेद्य बताकर उन्होंने एक बड़ा संकेत दिया है। उनके मुताबिक जिस तरह मात्र एक राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद इस विवादित अनुच्छेद को जोड़ा गया, ठीक उसी प्रकार इसे हटाया भी जा सकता है। अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले से सुनवाई जारी है। अब अगर सरकार अपनी तरफ से इसपर कोई बड़ा कदम उठाने का निश्चय करती है तो ये सरकार का बड़ा ‘मास्टरस्ट्रोक’ साबित होगा।

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