आगामी लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के बाद अब बिहार में भी हमें त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है। दरअसल, बिहार के वामपंथी दलों ने राजद को धमकी दी है कि यदि उनको गठबंधन में सम्मानजनक सीटें नहीं दी गईं तो सभी वामपंथी दल अलग होकर चुनाव लड़ने की बात कही है। अगर ऐसा होता है तो वामपंथी दल महत्वपूर्ण सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा कर राजद के लिए मुश्किलें बढ़ा सकतें हैं। आपको बता दें कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बिहार के कुछ ऐसे वामपंथी दल हैं जिनका आरा, सीवान, बेगूसराय, पाटलीपुत्र, काराकाट, उजियारपुर और मधुबनी जैसी सीट पर खास प्रभाव रहा है। दरअसल, राजद नेता तेजस्वी प्रताप सिंह ने इन सभी वामपंथी दलों को अपने गठबंधन में मात्र 1 लोकसभा सीट देने का निर्णय किया था, जिसे इन दलों ने एकमत से अस्वीकार कर दिया। राजद द्वारा गठबंधन में एक सीट दिये जाने से वामपंथी दल नाराज हैं।
बता दें कि पिछले लोकसभा चुनावों में भाकपा (माले) ने 23 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों को खड़ा किया था, जबकि माकपा ने 6 सीटों पर और भाकपा ने 2 सीटों पर अपने प्रत्याशियों किया था। हालांकि किसी भी पार्टी को अपना उम्मीदवार जिताने में सफलता नहीं मिल पाई थी, लेकिन अब इन वामपंथी दलों का कहना है कि वे पहले से ज्यादा मज़बूत हुए है और अब वे साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इन सभी दलों ने कहा है कि वे राजद के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार हैं लेकिन उनको गठबंधन में सम्मानजनक सीटें दी जाने चाहिए। आपको बता दें कि इससे पहले जब दिल्ली में महागठबंधन की सीट बंटवारे को लेकर बैठक हुई थी, तो भी इस बैठक में इन वामपंथी दलों के किसी नेता को नहीं बुलाया गया था, जिससे की ये दल काफी नाराज़ हुए थे।
राजनीति विशेषज्ञों की मानें तो बिहार में जन अधिकार पार्टी जैसे कुछ ऐसे दल भी हैं, जिनसे सीट बंटवारे को लेकर अब तक महागठबंधन के लोगों ने बात नहीं की है। ऐसे में वे दल और वामपंथी तीसरे मोर्चे के रूप में सामने आ सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वाम दलों में एकता नहीं बनी थी, लेकिन इस चुनाव में वाम दल साथ हैं, और ऐसे में उनकी ताकत में इजाफा को भी नकारा नहीं जा सकता है।
अब अगर इस नाराजगी के चलते ये दल एक अन्य तीसरे मोर्चे का निर्माण करते हैं तो इससे गठबंधन को करारा झटका पहुंच सकता है। जिन सीटों पर इन दलों का अच्छा-खासा प्रभाव है, उन सीटों पर ये दल महागठबंधन की वोट काटने का काम कर सकते हैं। इन दलों की भी अपनी महत्वकांक्षाएं हैं। हालांकि गठबंधन को लेकर राजद और कांग्रेस के बीच भी अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हो पाया है, जिससे कि अब तक बिहार राजनीति में अभी भी अटकलों की अपार संभावनाएं हैं।
अगर तीसरे मोर्चे का गठन होता है तो भाजपा का फायदा होना तय है। बिहार में पूर्ण गठबंधन न होने की वजह से राजद के गठबंधन की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। भाजपा के साथ साथ जनता दल (यूनाइटेड) का मज़बूत जनाधार एक तरफ और संभावित गठबंधन में पड़ती दरार दूसरी तरफ, भाजपा के दोनों हाथों में इस वक्त लड्डू है, जिससे भाजपा के साथ-साथ एनडीए बिहार में पहले से अच्छा प्रदर्शन करने का कमाल दिखा सकते है।