समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने आज अपने छोटे साथी ‘राष्ट्रीय लोक दल’ के लिए सीटों का बंटवारा कर दिया है।इसको लेकर आज दोपहर साढ़े तीन बजे समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और आरएलडी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस की है। आरएलडी को इस गठबंधन में तीन सीटें मिली हैं। आरएलडी के खाते में बागपत, मुजफ्फरपुर और मथुरा की सीटें आई हैं। पहले माना जा रहा है कि आरएलडी अपनी चार सीटों की मांग पर अड़ी हुई है जिसके कारण सीट बंटवारे में देरी हो रही है।
इससे पहले फरवरी में उत्तर प्रदेश की दोनों बड़ी विपक्षी पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से बसपा ने 38 और सपा ने 37 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया था और बाकी सीटों को आरएलडी और बाद के चुनावी समीकरणों के मुताबिक बाँटने के लिए छोड़ी थी। इसमें कांग्रेस के लिए भी दो सीटें छोड़ी गई हैं। बता दें कि पिछले महीने अखिलेश यादव की अध्यक्षता में एसपी पार्टी मुख्यालय पर एक बैठक हुई थी। इसमें एसपी प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें बीएसपी और आरएलडी से गठबंधन का स्वागत किया गया, साथ ही, सर्वसम्मति से अखिलेश के प्रत्येक निर्णय पर अमल करने का संकल्प भी व्यक्त किया गया था।
हालाँकि गठबंधन की वजह से दोनों बड़ी पार्टियाँ मज़बूत होने की बजाय कमज़ोर होती जा रहीं हैं। दरअसल, सीट बंटवारे के बाद दोनों पार्टियों से वो नेता, जिनके खाते में कोई सीट नहीं आई है, पार्टी से किनारा कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर महागठबंधन में सीट न मिलने से समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद राकेश सचान शनिवार को कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने अखिलेश सिंह पर हमला बोलते हुए कहा कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक साल पहले उन्हें फतेहपुर सीट से लोकसभा का प्रत्याशी घोषित किया गया था, बाद में उन्हें धोखे में रखकर यह सीट सपा-बसपा के गठबंधन में बसपा को दे दी गई। इसके अलावा भी दोनों पार्टियों के बड़े नेता गठबंधन में अपने आप को नकारा हुआ महसूस कर रहे हैं। बस्ती लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के एक और नेता ब्रज किशोर सिंह भी टिकट न मिलने से आहत होकर भाजपा के कईं नेताओं के संपर्क में हैं। जनवरी में एसपी के नेता शिवकुमार बेरिया पहले ही शिवपाल सिंह यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से जुड़ चुके हैं।
बीएसपी से भी नेताओं का पलायन जारी है। सीतापुर से बसपा के पूर्व सांसद कैसर जहां ने सोमवार को कांग्रेस का हाथ थाम लिया। टिकट न मिलने की वजह से जलाऊं से बसपा के पूर्व सांसद घनश्याम अनुरागी भी भाजपा के साथ संपर्क में हैं। अनुरागी ने अपने बयान में कहा ”मैं आगामी चुनाव जरूर लडूंगा, पार्टी आपको बाद में स्वयं पता चल जाएगा।” कुल मिलकर दोनों पार्टियों से बागी नेता कांग्रेस और भाजपा में शामिल हो रहे हैं जिसका सबसे ज्यादा फायदा कोई उठाएगा तो वो है भाजपा। वरिष्ठ नेताओं के भाजपा में शामिल होने से उत्तर प्रदेश में पहले से मज़बूत भाजपा और ज्यादा मज़बूत होगी और पहले से कमज़ोर गठबंधन और ज़्यादा कमज़ोर होगा। खैर अभी चुनाव में समय है और इससे पहले हमें सभी पार्टियों की रणनीति तथा राजनीति में फेरबदल देखने को मिल सकते हैं।