बेगूसराय सीट से लड़ने के फैसले का गिरिराज सिंह को स्वागत करना चाहिए

गिरिराज सिंह बेगूसराय

PC: Samachar

आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर देशभर में हो रही राजनीतिक उठापठक के बीच बिहार की बेगूसराय सीट भी सुर्खियों में आ गई है। दरअसल, भाजपा ने बिहार में लोकसभा चुनावों के लिए अपने सभी उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिसमें केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह को उनके मौजूदा संसदीय क्षेत्र नवादा की जगह बेगूसराय से टिकट दिया गया। लेकिन नाटकीय ढंग से गिरिराज सिंह ने बेगूसराय से चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया। उन्होंने इसे अपने आत्मसम्मान पर प्रहार बताते हुए भाजपा की राज्य इकाई के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। वहीं दूसरी तरफ सीपीआई पार्टी की तरफ से कन्हैया कुमार भी इसी सीट से चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि देशभर में भारत विरोधी सोच रखने की वजह से बदनाम कन्हैया कुमार से क्या भाजपा के राष्ट्रवादी छवि वाले नेता गिरिराज सिंह डर गए जिसकी वजह से दोबारा ना चुने जाने का खौफ उन्हें सता रहा है? हालांकि, अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट कर यह पुष्टि कर दी है कि वे बेगूसराय से ही चुनाव लड़ेंगे और संगठन उनकी सभी समस्याओं का समाधान करेगा।

क्षेत्र में जातीय समीकरण की बात करें तो बेगूसराय में भूमिहार जाति का खास वर्चस्व है। लगभग 5 लाख से ज्यादा वोटर्स के साथ इस समाज का जिले की राजनीति में खासा प्रभाव रहा है। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अब तक हुए लोकसभा के चुनावों में सिर्फ दो बार गैर-भूमिहार समाज के उम्मीदवार चुने गए हैं।  अब यहां दिलचस्प बात यह है कि गिरिराज सिंह के साथ-साथ कन्हैया कुमार भी भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। यानि गिरिराज सिंह को संभवतः यह डर सता रहा था कि कन्हैया के बेगूसराय से चुनाव लड़ने की वजह से कहीं उनके वोट बैंक में सेंध ना लग जाए। वहीं नवादा को वे अपने लिए सेफ सीट समझते हैं क्योंकि नवादा में भी भूमिहार जाति का वर्चस्व है जो कि एकमत होकर भाजपा के लिए इस सीट से लड़ते रहे  हैं। वहीं, बेगूसराय को अपनी कर्मभूमि और जन्मभूमि कहने वाले गिरिराज सिंह के लिए एक सुरक्षित सीट सबित हो सकती है.

दरअसल, पूरे समीकरण में कुछ ऐसी बाते हैं जिनको गिरिराज सिंह नजरअंदाज कर रहे थे और वे बिना किसी ठोस तथ्य के बेगूसराय जैसी अति महत्वपूर्ण सीट से चुनाव लड़ने से भाग रहे थे। दरअसल, गिरिराज सिंह के विरुद्ध कन्हैया कुमार के अलावा राजद के तनवीर हसन भी चुनावी मैदान में हैं और मुसलमानों अथवा यादवों की लगभग 4 लाख वोटों पर उनकी नज़र होगी। कन्हैया कुमार को अगर बेगूसराय से जीतना है तो उनको इन वोटर्स को भी लुभाना होगा जिससे कि वे राजद के उम्मीदवार का वोट काटने का काम करेंगे, और आखिर में इसका गिरिराज सिंह को ही फायदा होगा। बेगूसराय में कन्हैया का कहीं वजूद नहीं है। इस तथ्य से वो भ वाकिफ है कि भूमिहार समाज का मूल धड़ा अब बीजेपी की तरफ़ रुख़ कर चुका है। खुद कन्हैया कुमार भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में यह बात कह चुके हैं कि राजद का बेगूसराय से उम्मीदवार खड़ा करना उनकी समझ से बाहर है। वहीं,  जिस सीपीआई पार्टी से वे चुनाव लड़ने जा रहे हैं, उस पार्टी का बेगूसराय में कोई खास जनाधार नहीं रहा है। वर्ष 1967 में सिर्फ एक बार सीपीआई यहां चुनाव जितने में सफल हो पाई थी लेकिन उसके बाद प्रत्येक चुनाव में उनकी पार्टी पिछड़ती गई।

इसके अलावा गिरिराज सिंह देशभर में एक राष्ट्रवादी नेता के तौर पर मशहूर हैं जबकि कन्हैया कुमार अपनी विवादास्पद छवि के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम है। ऐसे में उनके सिर्फ भूमिहार जाति से होने की वजह से कोई बड़ा उलटफेर होने की अटकले लगाना हमारी मुर्खता होगी। यहां ये समझना मुश्किल है गिरिराज किस बात को लेकर डरे हुए हैं। असल में भाजपा की राज्य इकाई के खिलाफ मोर्चा खोलने की बजाय गिरिराज सिंह को उनका आभार प्रकट करना चाहिए कि पार्टी द्वारा उन्हें कन्हैया जैसे नेता को धूल चटाने का सुनहरा मौका दिया गया है। इससे उनका राजनीतिक कद पहले के मुकाबले और ज़्यादा बड़ा ही होगा। अपनी जीत को लेकर वे बेवजह ही इतने आशंकित हो रहे थे।

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