J&K: जमात-ए-इस्लामी पर सरकार की कड़ी कार्रवाई, कई बड़े नेता गिरफ्तार, 4500 करोड़ की संपत्ति भी रडार पर

जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर

(PC: Outlook India)

कश्मीर में मौजूद इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों पर मोदी सरकार लगातार कार्रवाई कर रही है। अब एक और बड़ा फैसला लेते हुए केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर की सभी सम्पतियों को सील कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस संगठन के पास करीब 4500 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है जिसमें 400 स्कूल, 350 मस्जिद और एक हजार से अधिक मदरसे शामिल हैं। हुर्रियत कांफ्रेंस और स्थानीय लोगों के अलावा पाकिस्तान से मिले चंदे से इन स्कूलों और मदरसों का संचालन किया जा रहा था। हालाँकि अभी अधिकारियों का कहना है कि ये जाँच में ही पता चल पाएगा कि ये सम्पत्ति वैध है या अवैध। इसके अलावा सरकार ने अकेले श्रीनगर में संगठन के 70 बैंक अकाउंट्स को सील किया है। यह बड़ी कार्रवाई तब की गई है जब एक दिन पहले ही गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर जमात-ए-इस्लामी संगठन पर 5 साल के लिए प्रतिबन्ध लगाया था।

पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद से ही सरकार का कश्मीर में मौजूद अलगाववादी संगठनों के खिलाफ सख्त एक्शन जारी है। पुलवामा हमले के तुरंत बाद सरकार ने 6 अलगाववादी हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा को वापस लेने का काम किया, उसके बाद सरकार ने 150 से ज्यादा अलगाववादी नेताओं को हिरासत में लिया। हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद द्वारा लिए जाने के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाने का काम किया तथा आतंकवादी मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकी घोषित किए जाने की दिशा में भी कईं अहम कदम उठाए।

केंद्र द्वारा उठाए गए इन सभी कदमों से यह स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार कश्मीर में अब अलगाववाद व आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। कश्मीर में मौजूद कुछ पाकिस्तान-परस्त नेताओं को सरकार के ये कदम बिल्कुल भी रास नहीं आ रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी को बैन करने के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने इस पर सख्त नाराजगी जताई। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘भारत सरकार को भला जमात-ए-इस्लामी से क्या दिक्कत हो सकती है? कट्टरवादी हिन्दू संगठन इस देश में झूठ तथा गलत जानकारियाँ खुलेआम फैला सकते हैं, लेकिन कश्मीर के लिए बिना थके काम करने वाली संस्था पर आप बैन लगा रहे हो!’

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जमात-ए-इस्लामी (जेईएल) ही जम्मू कश्मीर राज्य के सबसे बड़े आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन और हुर्रियत कांफ्रेंस के गठन के लिए जिम्मेदार है। साथ ही यह संगठन दशकों से अपने अलगाववाद एवं पाकिस्तान समर्थन एजेंडे के तहत राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए राज्य में अलगाववादी एवं आतंकवादी तत्वों को वैचारिक और साजो-सामान संबंधी सहयोग प्रदान कर रहा है। भारत के एक राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री के मुँह से ऐसे किसी संगठन के लिए हमदर्दी जताना घोर निंदनीय है। दरअसल, कश्मीर में पिछले 70 सालों से जारी आतंकवाद का सबसे बड़े लाभार्थी वहाँ के राजनेता हैं, चाहे वह महबूबा मुफ़्ती हो या फिर अब्दुल्ला परिवार। कश्मीर में आतंक की सफाई से इनकी राजनितिक दुकानों पर ताला लगना निश्चित है।

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