केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) क़ानून, 1967 के तहत गुरुवार को प्रतिबंधित कर दिया है। इसके अलावा 6 जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों को हिरासत में भी लिया गया है। इस संगठन पर राष्ट्र विरोधी और विध्वंसकारी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगते रहे हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि ‘जमात-ए-इस्लामी’ लगातार आतंकवादी गुटों के साथ संपर्क में रहकर जम्मू-कश्मीर में शान्ति भंग करने में शामिल था। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली बैठक के बाद गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर ये फैसला लिया। ये संगठन सरकार द्वारा 5 साल के लिए बैन की गई है। गृह मंत्रालय का मानना है कि अगर इस पर अभी काबू नहीं पाया जाता तो ये भारत में एक इस्लामिक राज्य को स्थापित करने की कोशिश कर सकती थी। इससे पहले जम्मू-कश्मीर की पुलिस ने जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट और जमात-ए-इस्लामी के 130 से अधिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था जिसमें, बड़े अलगाववादी नेता यासीन मलिक भी शामिल था।
गौरतलब है कि पुलवामा में हुए हमले के बाद से सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा घाटी में सर्च अभियान चलाया जा रहा हो। इस दौरान सुरक्षाबलों द्वारा लगातार अलगावादियों के ठिकानों पर छापेमारी भी की जा रही है। यही नहीं देश में रहकर देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले इन अलगावादियों की दी जाने वाली सुरक्षा को भी वापस ले लिया गया है। अब खबर ये आ रही है कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंध के बाद शुक्रवार को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल के विभिन्न गांवों छापेमारी के दौरान 6 जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों को हिरासत में ले लिया गया है। इन अलगाववादी संगठनों के तार आतंकी संगठनों से जुड़े हैं। जमात-ए-इस्लामी पर सरकार द्वारा लगाये गये प्रतिबंध से कश्मीर में आतंकवाद की जड़ों को खत्म करने में बड़ी मदद मिलेगी।
जमात-ए-इस्लामी संगठन को इस्लामी धर्मगुरु अबुल अला मऊद्दी द्वारा 1941 में बनाया गया था। इस संगठन का मकसद मुसलमानों के लिए एक अलग देश की वकालत करना था। ये संगठन शुरू से ही पाकिस्तान-परस्त रहा है व कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा देने में शामिल रहा है।
पुलवामा आतंकी हमले के बाद से ही केंद्र सरकार ‘सुपर-एक्शन’ मूड में है। पहले अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा छीना जाना , उसके बाद उन्हें हिरासत में लिया जाना, तथा अब जमात-ए-इस्लामी पर बैन लगाना ये दर्शाता है कि सरकार देश विरोधी तत्वों को बर्दाश्त करने के बिलकुल भी पक्ष में नहीं है। सरकार का रुख एकदम साफ़ है कि कश्मीर में आतंकवाद की लगातार टूटती कमर से हताश होकर अगर ये अलगाववादी तथा आतंकवादी समूह अब किसी भी तरह अपनी उपस्तिथि दिखाने की कोशिश करेंगे लेकिन हमारे सुरक्षा बल किसी भी चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं। वहीं पाकिस्तान पर भी भारत सरकार लगातार कूटनीतिक दबाव बनाने में जुटी हुई है, क्योंकि ये बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा को हर प्रकार का समर्थन पाकिस्तान से ही मिलता है, व अगर हमें कश्मीर में पूर्ण शांति स्थापित करनी है तो असल प्रहार पाकिस्तान में बैठे अलगाववादियों के आकाओं और आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों पर ही करना होगा। सरकार पिछले कुछ वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने पाकिस्तान को एक ‘आतंक-निर्यातक’ देश के तौर पर पेश करने में सफल रही है, तथा इसमें भारत को ईरान व अफगानिस्तान से भी भरपूर समर्थन मिला है।