बस्तर लोकसभा सीट: विकास के दम पर लगातार सातवीं बार यहां जीत दर्ज करने में लगी बीजेपी

बीजेपी अरुणाचल प्रदेश चुनाव

PC : Zee News

छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला राजनीतिक दृष्टिकोण से भाजपा का गढ़ माना जाता है। साल 1998 से लेकर वर्ष 2014 के आम चुनावों तक हुए कुल 6 लोकसभा चुनावों में यहाँ भाजपा के उम्मीदवार ही जीतते आएं हैं। वर्ष 2011 तक यहाँ भाजपा के बलिराम कश्यप सांसद रहे, लेकिन 2011 में उनका देहांत होने के बाद उनके पुत्र दिनेश कश्यप ने उपचुनावों में जीत दर्ज की। इसके बाद साल 2014 के चुनावों में फिर से वे विजयी बने। यह बीजेपी के विकास कार्यों की लोकप्रियता ही है कि, इस बार भी बस्तर में बीजेपी के पक्ष में माहोल बन रहा है। माना जा रहा है कि, दिनेश कश्यप एक बार फिर बस्तर से अपनी किस्मत आज़माने जा रहे हैं, जिसमें उनको फिर से विजयी होने की पूरी उम्मीद है। गौरतलब है कि इस सीट पर पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होगा।

छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र काफी लम्बे समय से अपने यहाँ मौजूद नक्सल आतंकवाद एवं नक्सली हिंसा के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन अब सब कुछ बड़ी तेज़ी से बदल रहा है। बस्तर के ऐसे युवा जो ना जाने कितने सालों से नक्सलवाद की मार झेल रहे थे, अब उनको सरकार द्वारा उठाये गए प्रयासों का फल मिलना शुरू हो पाया है। वहाँ अब शांति के साथ साथ रोज़गार के अवसर भी पैदा होने लगे हैं। दंतेवाड़ा में सरकार द्वारा खोले गए एक बिज़नेस प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग (बीपीओ) ने सैकड़ों युवाओं को रोज़गार देने का काम किया है।

बस्तर से मौजूदा सांसद दिनेश कश्यप को जिले में एक कर्मठ एवं निष्ठावान सांसद के तौर पर देखा जाता है। उनको जिले में एक विकासवादी चेहरे के रूप में जाना जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ जनवरी 2019 तक, बीजेपी सांसद दिनेश कश्यप ने अभी तक अपने सांसद निधि से क्षेत्र के विकास के लिए 22.54 करोड़ रुपए में से 20.79 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। बस्तर जिले का विकास करना राज्य सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में से एक रहा है। पिछले वर्ष अप्रैल में पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ में अपनी रैली के दौरान कहा था, ”बस्तर और सरगुजा में विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज तथा जिले के हर गाँव में स्कूलों का खुलना राज्य सरकार की साफ नीयत को दर्शाता है।”

अगर सरकार की नीयत साफ हो तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं लगता। सरकार ने राज्य में फैले नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने का संकल्प लिया है। सरकार एवं सुरक्षा बलों के मिले-जुले प्रयासों से ही यह सफल हो पाया कि पिछले वर्ष गृह मंत्रालय द्वारा राज्य के तीन जिलों को नक्सलवाद-मुक्त घोषित कर दिया, जिनमें सरगुजा, कुरिआ एवं जसपुर शामिल हैं। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक बस्तर जिले से वामपंथी उग्रवाद का सफाया भी लगातार जारी है। दरअसल ये वामपंथी उग्रवादी सरकार द्वारा चलाए जा रहे विकास कार्यों के लिए एक खतरा पैदा करते हैं, जिसको खत्म करने के लिए सुरक्षा बलों को इनसे निपटने के लिए घने जंगलो में मौजूद इनके गढ़ पर हमला करना होता है।

बस्तर में सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलवाद को उखाड़ फेंकने की सफलता को मोदी सरकार ने बखूबी विकास के एक अन्य प्रोजेक्ट ‘सारंदा विकास प्रोजेक्ट’ के साथ जोड़ दिया जिसमें अधिकतर आदिवासी आबादी वाले सारंदा में सरकार द्वारा अनेक विकास के कार्यों को प्रारम्भ किया गया है। बस्तर के कमिश्नर दिलीप वासनिकर के मुताबिक प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत पिछले पांच सालों में अब तक लगभग 4 हज़ार किमी सड़क का निर्माण हो चुका है, जबकि इन्ही पांच सालों में सरकार द्वारा बस्तर में बैंको की 115 नई शाखा खोलकर लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में शामिल करने का काम किया गया है। इतना ही नहीं, सरकार ने बस्तर के जगदलपुर में पिछले वर्ष जून में एक हवाई अड्डा भी खोला है जिसे इस क्षेत्र को भारत के अन्य राज्यों से जोड़ने में काफी मदद मिली है। 70 फीसदी आदिवासी जनसंख्या वाले बस्तर में बीजेपी सरकारों द्वारा जनता के हित में किये गए कार्यों का ही परिणाम है कि, इस बार भी यहां से बीजेपी के जीतने की पूरी उम्मीद की जा रही है।

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