21 वीं सदी के भारत में लोग समय के मुताबिक बदलाव चाहते हैं। वे आधुनिक समय के अनुसार राजनीति में भी बदलाव चाहते हैं और ‘सोच बदलेगी तो देश बदलेगा’ का जज्बा अपने भीतर रखते हैं। वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज भी देश को सालों पीछे ही रखने के मूड में है। इस पार्टी में युवाओं का अकाल है और बूढ़े बढ़ते जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो इस पार्टी ने पुराने बूढ़े चेहरों पर ही अपना दांव लगाया है। माना कि कांग्रेस के पास जिताऊ चेहरों की कमी हैं लेकिन युवा सोच की बात करने वाले राहुल गांधी की यह पार्टी युवा उम्मीद्वारों को भी तो मौका दे सकती थी लेकिन कांग्रेस आज भी अपने पुराने पत्तों के जरिए ही 2019 का यह चुनाव लड़ना चाहती है। वहीं अगर बीजेपी की बात करें तो उसने पार्टी में एक काफी अच्छी रीत चलाई है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही पार्टी में 75 साल से ऊपर के नेताओं को टिकट न देने की रीत चल रही है। कईं बार तो पार्टी में यह भी देखा गया है कि 75 साल से ऊपर के नेता खुद ही चुनाव न लड़ने का ऐलान कर देते हैं। वहीं अगर बीजेपी के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो देश में सबसे ज्यादा युवा मुख्यमंत्री बीजेपी के ही हैं।
कांग्रेस बूढ़े चेहरों पर ही खेल रही दांव
लगता है कि, राहुल गांधी देश की यह सबसे पुरानी पार्टी को दिनों दिन बूढ़े लोगों से भरना चाहते हैं। कांग्रेस द्वारा जारी की गई उम्मीदवारों की आठवीं लिस्ट की ही बात करें तो इस लिस्ट में कांग्रेस के पुराने पत्ते ही भरे पड़े हैं। कांग्रेस ने शनिवार को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तराखंड और मणिपुर में लोकसभा की 38 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इनमें अधिकतर वे नाम हैं जो कांग्रेस के पुराने चेहरे माने जाते हैं। कांग्रेस ने इस लिस्ट में अपने चार पूर्व मुख्यमंत्रियों पर भी दांव खेला ही है। कांग्रेस ने इस लिस्ट में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भोपाल से उम्मीदवार बनाया है जबकि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को राज्य की नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट से टिकट दिया गया है। वहीं महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण को नांदेड़ से टिकट मिला है। जबकि कर्नाटक के चिकबलपुर से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एम वीरप्पा मोइली को लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका दिया गया है। साथ ही साथ मल्लिकार्जुन खड़गे, कांतिलाल भूरिया, मीनाक्षी नटराजन, प्रदीप टम्टा, प्रीतम सिंह और राशिद अल्वी जैसे पार्टी के पुराने नेताओं को भी मौका दिया गया है।
पुराने खिलाड़ियों से नया गेम
हद तो यह है कि, कांग्रेस अपने पुराने पत्तों को पता नहीं कब तक बचा कर रखना चाहती है। उसने अपने इन पुराने चेहरों को सुरक्षित सीटों से उतारा है। कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को कर्नाटक की सुरक्षित लोकसभा सीट गुलबर्गा से टिकट दिया है। वहीं राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा को सुरक्षित सीट अलमोड़ा से टिकट थमाया गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के रतलाम से कांतिलाल भूरिया और मंदसौर से मीनाक्षी नटराजन को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है। जबकि यूपी की अमरोहा सीट से राशिद अल्वी चुनाव लड़ाया जा रहा है।
उधर बीजेपी काट रही है वयोवृद्द नेताओं के टिकट
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से इतर बीजेपी सोच बदलेगा तो देश बदलेगा वाली सोच पर बिल्कुल खरी उतर रही है। पुराने और उम्रदराज नेताओं को टिकट देना तो दूर उल्टे बीजेपी उनके टिकट भी काट रही है। बीजेपी ने इस बार पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का ही टिकट नहीं काटा, बल्कि उत्तराखंड के दो बार मुख्यमंत्री रहे भुवन चंद्र खंडूरी का भी टिकट काट दिया है। खंडूरी 2007-09 और फिर 2011-12 के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे थे। 91 वर्षीय आडवाणी 1998 से गुजरात की गांधीनगर सीट से चुनाव जीतते आ रहे थे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अब इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। इन वरिष्ठ वयोवृद्ध नेताओं को उनकी लोकसभा सीटों से टिकट नहीं दिये जाने से स्पष्ट है कि, बीजेपी ने चुनावी राजनीति से अपने कई पुराने दिग्गजों को दूर रखने का फैसला कर लिया है। पार्टी के एक अन्य वयोवृद्ध नेता मुरली मनोहर जोशी, जो 2014 में कानपुर से जीते थे, उन्हें भी अभी तक पार्टी ने टिकट नहीं दिया है। संभावना है कि, उनकी जगह पार्टी युवा चेहरे को अहमियत देगी।
उम्रदराज नेता कर रहे चुनाव न लड़ने की घोषणा
बीजेपी द्वारा वयोवृद्द नेताओं का टिकट काटे जाने के बाद पार्टी के अन्य बुढ़ा गए नेता पहले से ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करते दिख रहे हैं। पार्टी नेतृत्व के टिकट काटने की संभावना के मद्देनजर कलराज मिश्र और भगत सिंह कोशियारी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा पहले से ही कर दी है। कहा जा रहा है कि पार्टी इस बार 75 साल से अधिक उम्र होने के कारण कलराज मिश्रा को चुनाव लड़ाने की जगह अन्य तरह की जिम्मेदारियां देने के मूड में है। इसे भांपते हुए कलराज मिश्र ने टिकट की सूची जारी होने से पहले ही चुनाव न लड़ने का एलान कर दिया। दरअसल बीजेपी ने 75 साल से ज्यादा आयु के नेताओं को चुनाव ना लड़ाने की रीत पार्टी में बनाई है। यही कारण हे कि इस आयुसीमा से ज्यादा आयु के नेताओं की बजाय पार्टी युवा चेहरों को टिकट दे रही है।
कांग्रेस बना रही बूढ़े सीएम तो बीजेपी युवा चेहरों को सौंप रही कमान
बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व सरकार के बड़े पदों पर भी युवाओं को ही तरजीह दे रहा है। अगर हम राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो बीजेपी लगातार युवा चेहरों को मुख्यमंत्री बना रही हैं, वहीं कांग्रेस अपने बूढ़े नेताओं को ही राज्यों की कमान सौंपे हुए हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव जीतने के बाद उसने यहां युवा चेहरे को दरकिनार कर अपने पुराने उम्रदराज नेताओं को ही मुख्यमंत्री बनाया है। मध्यप्रदेश में इस पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को किनारे कर इस पार्टी ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया तो वहीं राजस्थान में उन्होंने सचिन पायलट को किनारे कर अशोक गहलोत को कमान सौंपी। उधर पंजाब में भी इस पार्टी के सीएम अमरिंदर सिंह काफी वयोवृद्द हैं।
दूसरी तरफ बीजेपी की बात करें तो इस पार्टी ने हाल ही में गोवा में युवा नेता प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी हैं। प्रमोद सावंत 45 साल के युवा नेता हैं। त्रिपुरा की बात करें तो यहां पार्टी ने 48 वर्षीय बिप्लव देब को मुख्यमंत्री बनाया है। वे भी 50 साल से कम उम्र के युवा मुख्यमंत्रियों की सूची में शामिल हैं। वहीं अरुणाचल प्रदेश की बात करें तो यहां बीजेपी के पेमा खांडू 37 साल की उम्र में अरुणाचल के सीएम बने हैं। 2016 में मुख्यमंत्री बने खांडू की मौजूदा उम्र 38 साल है। उत्तर प्रदेश में 44 वर्षीय योगी आदित्यनाथ के रुप में बीजेपी ने एक युवा मुख्यमंत्री बनाया है जो देश के सबसे युवा मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। महाराष्ट्र में भी बीजेपी ने 47 वर्षीय देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की कमान दे रखी है।
स्पष्ट है कि बीजेपी जहां पार्टी में लगातार युवा चेहरों को ला रही है तो वहीं कांग्रेस बूढ़ों को ही तरजीह दिये जा रही है। ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब कांग्रेस पार्टी में युवा चेहरों का अकाल आ जाएगा।