हमारे पास सबसे ज्यादा दूरी तक मार करने वाली जो मिसाइल है उसका नाम अग्नि-5 है। भारत आधिकारिक तौर पर उसकी मारक क्षमता 5000 किलो मीटर बताता है लेकिन चीन उसी मिसाइल की मारक क्षमता को 8000 किलो मीटर बताता रहता है। हो सकता है कि इस मिसाइल की मारक क्षमता 8000 किलो मीटर हो, ये भी हो सकता है कि भारत के पास उससे भी ज्यादा दूरी तक मार करने वाली मिसाइल बनाने की क्षमता हो। अगर ऐसा है तो भी भारत अपनी इस क्षमता को दुनिया से छुपाएगा। वह इसलिए क्योंकि दुनिया में और खासकर अमेरिकी नेतृत्व के पश्चिमी देशों में असुरक्षा की भावना बहुत ही ज्यादा है और जिस दिन उन्हें लगेगा कि भारत उनके लिए खतरा बन रहा है, वो भारत को घुटनों पर लाने के लिए प्रतिबन्ध (sanctions) लगाना शुरू कर देंगे।
अब आते हैं ‘मिशन शक्ति‘ पर। एक अनुमान के मुताबिक स्पेस में कुल सेटेलाइट और सेटेलाइट के कचरे (स्पेस डिबरी) की संख्या 7 लाख 40 हजार से भी ज्यादा हैं। अब जिस टारगेट को हमें हिट करना था वो 29000 किलो मीटर प्रति घण्टे के हिसाब से मूव कर रहा था और जहां से टारगेट हिट करना था मतलब हमारी पृथ्वी वो भी रोटेट कर रही है, स्थिर तो है नहीं। अब जरा सोचकर देखिए कि टारगेट हिट करने में अगर कुछ सेंटीमीटर की भी चूक हो जाती तो क्या होता। हो सकता था हमारी मिसाइल किसी दूसरे देश की सेटेलाइट हिट कर देती, या हो सकता है इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को हिट कर देती। सोचिए उन परिस्थितियों में क्या हो सकता था। हो सकता है तब हमें इसकी जानकारी प्रधानमंत्री मोदी से नहीं बल्कि विदेशी मीडिया से मिलती। हो सकता है हमारी पूरे विश्व में चौतरफा आलोचना हो रही होती और इस नाकामी का सेहरा जिसके सिर पर बंधता वो शख्स होते पीएम मोदी।
टेक्नोलॉजी होना और टेक्नोलॉजी टेस्ट करना दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। ठीक उसी तरह जिस तरह अग्नि-6 की टेक्नोलॉजी होने के बावजूद भी दुनिया हमें उसका टेस्ट नहीं करने देगी। क्योंकि अंततः हम अमेरिका तो हैं नहीं जो हमारी मोनोपॉली चलती है। ‘वी आर स्टिल अ डेवलपिंग नेशन’ और कोई भी डेवलपिंग नेशन ताकतवर बनेगा तो महाशक्तियों की आंख में खटकेगा ही।
अब बात जियो पॉलिटिकल सिनेरियो की। भारत और चीन दोनों ने रसिया से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा लेकिन अमेरिका ने इसके लिए चीन पर प्रतिबंध लगा दिया जबकि भारत पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा। यह भारत की मजबूत डिप्लोमेटिक पावर को दर्शाता है जो 2012 में नहीं रही होगा शायद इसीलिए हमने टेक्नोलॉजी होने के बावजूद भी एंटी सेटेलाइट मिसाइल का उस समय टेस्ट नहीं किया। इसलिए उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए तब की सरकारों को दोष देना भले उचित ना हो, लेकिन इस सरकार ने तमाम पहलुओं पर विचार करने के बाद टेस्ट करने की इच्छाशक्ति दिखाई इसके लिए सरकार की और पीएम मोदी की तारीफ होनी चाहिए।
इस लेख के साथ जो तस्वीर लगी है वह NASA ने जारी की है जो LEO में सेटेलाइट की वर्तमान स्थिति को दर्शाती है। तस्वीर देखिए और सोचिए कि हमारे वैज्ञानिकों ने सिर्फ मछली के आंख में तीर ही नहीं मारा है बल्कि उस मछली को भी मार गिराया है, जो 29000 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से लो अर्थ ऑर्बिट में चक्कर लगा रही थी और ये संभव हो पाया है तो सिर्फ उन पर जताए गए दृढ़ विश्वास से और मजबूत इच्छाशक्ति वाले राजनीतिक नेतृत्व से।
लेखक- विवेक सिंह