उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के महागठबंधन को लोकसभा चुनाव से पहले ही बड़ा झटका लगा है। मंगलवार को अखिलेश यादव द्वारा किये गये ऐलान के बाद निषाद पार्टी ने सपा-बसपा गठबंधन से खुद को अलग कर लिया है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से सांसद प्रवीण निषाद के पिता और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने शुक्रवार को कहा कि ‘हम गठबंधन के साथ नहीं है और हमारी पार्टी स्वतंत्र रूप से लोकसभा चुनाव लड़ेगी।’ इस ऐलान के पीछे अखिलेश यादव के रुख से पार्टी कार्यकर्ता और कोर कमेटी नाराजगी है।
Sanjay Nishad, Nishad Party chief: Akhilesh Yadav had said he'll make announcement on seats for our party. But they didn't put our name on poster/letter or anything. My party workers, authorities, core committee were upset. #UttarPradesh, #LokSabhaElections2019 pic.twitter.com/Kio4uidRJP
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) March 29, 2019
वहीं इस ऐलान के बाद संजय निषाद ने प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की जिसके बाद से राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी गोरखपुर की सीट निषाद पार्टी को दे सकती है।
Nishad Party chief Sanjay Nishad meets Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath in Lucknow pic.twitter.com/MNvdVzOiXQ
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) March 29, 2019
वहीं निषाद पार्टी के अलग होने से सपा-बसपा गठबंधन का जो जातिय समीकरण बना था वो भी बिगड़ गया है। सपा+बसपा+निषाद पार्टी का यादव+दलित+गैरयादव का जो समीकरण बना था वो अब बिगड़ चुका है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में निषाद वोट जीत की गुणा गणित में अहम भूमिका निभाते हैं। निषाद में मल्ल, केवट, मल्लाह, दुसाध, बिंद, राजभर समेत 15-16 उपजातियांशामिल हैं। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति में आने वाले निषाद समुदाय की कुल आबादी 10.25 प्रतिशत है। वहीं सबसे ज्यादा निषाद मतदाता गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में है। इस जिले के 19.5 लाख वोटरों में से 3.5 लाख वोटर निषाद समुदाय के हैं। वहीं, देवरिया में 1-1.5 लाख, बांसगांव में 1.5-2 लाख, महराजगंज में सवा 2-2.5 लाख और पडरौना में भी 2.5-3 लाख है। इसी संख्या के बल पर साल 2016 में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल’ (निषाद) पार्टी की स्थापना संजय निषाद ने की थी। साल 2018 में हुए उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में जब सपा के टिकट पर राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण ने जीत दर्ज की जिसके बाद ये पार्टी खूब चर्चा में रही थी। इसी के बल पर सपा-बसपा ने बीजेपी को गोरखपुर के उपचुनाव में हराया था जो योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है।
वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस समय समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ने निषाद उम्मीदवारों को टिकट दिया था। इस वजह से वोट बंटे और इसका फायदा सीधे बीजेपी को हुआ था। अब एक तरफ जहां निषाद पार्टी खुद एनडीए में शामिल होने की तैयारी कर रही है। तो दूसरी तरफ निषाद पार्टी के सपा-बसपा गठबंधन से अलग होने से निषाद जाति से जुड़ा समीकरण बिगड़ चुका है। ऐसे में निश्चित ही इससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा आगामी लोकसभा चुनाव में फायदा होने वाला है। स्पष्ट रूप से बीजेपी की कुछ सीटें अब कहीं नहीं जाने वाली हैं। हालांकि, अगर निषाद पार्टी अकेले भी चुनाव लड़ती है तो भी भारतीय जनता पार्टी को ही फायदा होगा क्योंकि सपा-बसपा और निषाद पार्टी की लड़ाई में पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी बीजेपी बाजी मारने में कामयाब हो सकती है। वहीं अखिलेश यादव जो बड़े-बड़े दावें कर रहे थे उनके दावों की हवा जरुर निकल गयी है। आने वाले दिनों में ये स्पष्ट हो जायेगा कि निषाद पार्टी अकेले चुनावी मैदान में उतरेगी या बीजेपी के साथ। जो भी लेकिन बीजेपी को हराने के ख्याली पुलाव पका रहीं विपक्षी पार्टियों के लिए यी एक बड़ा झटका जरुर है।